कल शाम एक फेसबुक पोस्ट पर नजर गई। पढ़कर बड़ा ही धक्का लगा। पोस्ट में सूचना थी कि मिजोरम की राजधानी आईजोल की रहने वाली युवा पत्रकार एजरीला डैलीडिया फनाई की अपने ही घर में मौत हो गई है। इस दुखद खबर की जानकारी तब मिली, जब आइजोल सहित पूरा मिजोरम 25 दिसंबर 2025 के दिन क्रिसमस मना रहा था। मिजोरम में ईसाइयों की आबादी करीब 90 फीसदी है, बौद्ध, हिंदू और बाकी अल्पसंख्यक मिलकर करीब दस फीसदी।
इस ईसाई बहुल राज्य में एजरीला डैलीडिया फनाई की मौसी ने क्रिसमस की पूर्व संध्या पर अपने घऱ में आयोजित होने वाली एक पार्टी में उसे बुलाया था। जब देर शाम तक डैली वहां नहीं पहुंची और फिर उसका फोन भी नहीं उठा, तो सबको चिंता हुई। अगली सुबह फिर से उसका संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन फोन पर कोई जवाब नहीं। उसके बाद आशंका से घिरे रिश्तेदार डैली के घर पहुंचे। घर का दरवाजा अंदर से बंद था, उसे तोड़ा गया। कमरे के अंदर गये तो फर्श पर डैली की लाश, लेकिन शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं। उसकी मौत का कारण हार्ट अटैक होना बताया जा रहा है।
कम उम्र में हार्ट अटैक का शिकार क्यों हो रहे हैं लोग
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आजकल कम उम्र में लोग हार्ट अटैक के शिकार हो रहे हैं। लेकिन डैली एकदम स्वस्थ थी, स्वभाव से भी काफी हंसमुख, यार- दोस्त उसके मिलनसार स्वभाव और जिंदादिली के कारण काफी इज्जत करते थे, पसंद करते थे।
फिर डैली को हार्ट अटैक क्यों। जो सूचनाएं आ रही हैं तमाम परिचितों के जरिये, उसके मुताबिक पिछले कुछ महीनों से डैली डिप्रेशन के दौर से गुजर रही थी। इसी साल जून में उसकी मां का देहांत हो गया था और उसके दो प्यारे कुत्ते भी कुछ समय पहले मर चुके थे। खालीपन का अहसास और अकेलापन शायद डैली की मौत की वजह बना।
सवाल ये उठता है कि एजरीला डैली फनाई को मैं क्यों याद कर रहा हूं। एक ही बार मिला था उससे, आईआईएमसी एलुमनाई एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में, जो आइजोल में आयोजित हुआ था 27 मई 2022 को। मिजोरम सब चैप्टर की ये मीटिंग 27 मई की शाम को आयोजित हुई थी, होटल रिजेंसी में। पूरे देश में हर साल होने वाले आईआईएमसी के पूर्व छात्रों के मिलन समारोह के आयोजन से मैं भी जुड़ा था 2022 के साल में, इसलिए आइजोल जाना हुआ था मेरा।
इसी दौरान एजरीला डैली फनाई से मेरी पहली मुलाकात हुई थी, जो अब उसके देहांत के साथ ही आखिरी भी हो गई। उसने अपना परिचय डैली के तौर पर दिया था 27 मई 2022 के उस दिन। जो बातचीत हुई, उससे पता चला कि वो भारतीय जनसंचार संस्थान, जो आईआईएमसी के तौर पर ही ज्यादा मशहूर है, उसके नई दिल्ली कैंपस में 2010-11 में पढ़ी थी।
कैसे शुरू हुआ डैली का सफर
वर्ष 2010-11 के उस सत्र में अंग्रेजी पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाली डैली ने आईआईएमसी से निकलने के बाद थोड़े समय दिल्ली में पत्रकारिता की और फिर आइजोल आ गई। जब मैं 2022 में उससे मिला, तो वो आकाशवाणी के लिए काम कर रही थी। बाद के दिनों में उसने कई डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए काम किया। उसका आखिरी आर्टिकल इसी 18 दिसंबर को पब्लिश हुआ था।
आइजोल में रहने के दौरान डैली आईआईएमसी के आइजोल कैंपस से भी जुड़ी थी। न सिर्फ आईआईएमसी के एलुमनाई के तौर पर वो मौजूदा छात्रों का मनोबल बढ़ाती थी, बल्कि कांट्रैक्ट बेसिस पर नये विद्यार्थियों को पढ़ाने का भी काम किया था, जो पत्रकारिता को अपना कैरियर बनाने की चाह रखते हुए आईआईएमसी के इस कैंपस पहुंचते थे।
डैली के साथ मेरी पहली मुलाकात
27 मई 2022 के दिन जब मैं आइजोल में डैली से मिला था, पहली नजर में ही मैं उसके व्यक्तित्व का कायल हो गया था। कितना कुछ जानती थी डैली मिजो सोसायटी के बारे में, मिजोरम के बारे में। मिजोरम के बारे में मेरी जो भी राय बनी, जानकारी हासिल हुई, उसका मुख्य आधार रही डैली। डैली का अंदाजे बयां भी खास, सब कुछ खुल कर बोलने वाली, बिना लाग-लपेट के।
आईआईएमसी के पूर्व छात्रों का मिलन कार्यक्रम शाम में था। मैं तो सुबह- सुबह आइजोल पहुंच गया था। इसलिए दिन का सदुपयोग करने का हमने मन बनाया। पूरे दिन डैली हमारे साथ रही, आइजोल शहर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक, सब जगह लेकर गई, दिखाया और बताया। कार में बैठे रहने के दौरान भी डैली की रनिंग कमेंट्री जारी रही। मैं चातक की तरह उसके मुंह में निकले एक- एक शब्द को सुन रहा था, समझ रहा था। मिजोरम की ये मेरी पहली यात्रा थी, उसके बाद कभी गया भी नहीं। इसलिए डैली जो भी बता रही थी, मेरा ज्ञानवर्धन हो रहा था।
ये तो मैं जानता था कि मिजोरम राज्य की बहुसंख्यक आबादी ईसाई है, लेकिन चर्च का कितना असर समाज जीवन पर है, ये तो डैली के जरिये ही पता चला। डैली बता रही थी, हर रविवार के दिन सभी इसाइयों का चर्च में जाना अनिवार्य है। इसलिए रविवार के दिन पूरे मिजोरम में बंद जैसे हालात दिखते हैं। कुछ भी खुला नहीं होता, यहां तक कि राज्य का एकमात्र एयरपोर्ट भी, जो राजधानी आइजोल के बाहरी हिस्से में है, उस पर भी रविवार के दिन ताला लग जाता था। ये हालात मुझे भी समझ में आये थे, जब मैं आइजोल पहुंचा था। आप चाहकर भी देश के किसी हिस्से से रविवार के दिन मिजोरम में हवाई मार्ग से नहीं जा सकते थे। रविवार के दिन एक भी फ्लाइट आइजोल के लिए नहीं होती थी। इस तरह के हालात शायद ही कही और थे उस वक्त। अब जाकर इस परिस्थिति में बदलाव आया है। रविवार के दिन भी फ्लाइट आ जा रही हैं, पिछले दो साल से।
मिजोरम के आइजोल एयरपोर्ट का नियंत्रण भी अब एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ले रही है, इसकी प्रक्रिया शुरु हो चुकी है। हाल तक इसका संचालन राज्य प्रशासन करता था और यहां सुरक्षा के लिए राज्य पुलिस के ही जवान तैनात रहते थे, जो एयरपोर्ट की चौकसी के अलावा इनर लाइन परमिट भी इश्यू किया करते थे। नॉर्थ ईस्ट के कई राज्यों में भारत के दूसरे हिस्से के लोगों को आते समय आईएलपी लेना होता है, जो सामान्य तौर पर सात दिनों के लिए इश्यू किया जाता है। अब आइजोल के इस एयरपोर्ट पर सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ की तैनाती हो चुकी है, एयरपोर्ट के रणनीतिक महत्व के तहत भी ये आवश्यक है। मई 2022 में जब मैं आइजोल पहुंचा था, तो यहां सिर्फ तीन दिन दिल्ली से डायरेक्ट फ्लाइट आती थी यहां के लिए, टिकटें भी काफी महंगी होती थी, बाकी दिन गुवाहाटी या कोलकाता होकर आना पड़ता था।
मिजोरम में चर्च का गहरा असर
चर्च समाज-जीवन के हर हिस्से को प्रभावित करता है मिजोरम में, डैली बता रही थी मिजोरम की विधानसभा के आगे से गुजरते हुए। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनने लगा था, 21 जून के दिन, तब भी मिजोरम में इसको लेकर उत्साह कम होता था। कारण था चर्च का विरोध। वर्ष 2018 में मिजोरम के चर्च ने आधिकारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का विरोध किया था, इसे हिंदू धर्म से जुड़ा हुआ बताया था। मजे की बात ये थी कि राज्य के पहले मिजो चीफ सेक्रेटरी, 1959 बैच के आईएएस अधिकारी फाका, जो 2022 में 92 वर्ष के थे, अपने दीर्घ जीवन का रहस्य ही योग को बताते थे।
यही नहीं, मेरे आइजोल से आने के करीब तीन हफ्ते बाद 21 जून 2022 को मिजोरम पुलिस की तरफ से आयोजित हुए योग शिविर में जो युवती इंस्ट्रक्टर के तौर पर आई थी, वो वहीं के एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर थी, चुपचाप वो अपने मरीजों को योग करने की सलाह देती रहती थी। खुलकर वो ये सलाह नहीं दे सकती थी, चर्च का इतना दबाव था। ये बात मुझे डैली ने ही नहीं, मिजोरम के तत्कालीन डीजीपी देवेश चंद्र श्रीवास्तव ने भी बताई थी। मिजोरम में बहुत सारे लोग चुपचाप योग करते हैं, लेकिन चर्च के दबाव के कारण खुलकर सामने आने से बचते हैं।
वर्ष 2022 में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का जो आयोजन हुआ था, मूल तौर पर वो सिर्फ मिजोरम पुलिस और असम राइफल्स का कार्यक्रम बन कर रह गया था, महज सौ- डेढ़ सौ जवान उसमें शामिल हुए थे। राज्य के मुख्यमंत्री, पुलिस और मिजोरम टूरिज्म के हैंडल से कुछ ट्वीट योग दिवस को लेकर जरूर हुए थे, लेकिन चर्च का सहयोग नहीं होने के कारण ये कार्यक्रम राज्यव्यापी नहीं बन सका था। श्रीवास्तव और उनकी आईएएस अधिकारी पत्नी जो तब मिजोरम में टूरिज्म सेक्रेटरी थीं, व्यक्तिगत रुचि लेकर ही कुछ कर पाए।
ये घटना ये बताने के लिए काफी है कि मिजो समाज पर चर्च का किस कदर नियंत्रण है। चर्च के बाद मिजोरम में दूसरी ताकतवर संस्था है, यंग मिजो एसोसिएशन। वाईएमए का सदस्य राज्य का अमूमन हर व्यक्ति है। इस संस्था को भी चर्च ने ही शुरू कराया था। प्रभाव के लिहाज से मिजोरम में राज्य प्रशासन तीसरे नंबर पर आता है और वहां की पुलिस चौथे नंबर पर। शिकायतें पहले वाईएमए के पास जाती हैं, समाधान भी जल्दी वही करने के लिए आगे बढ़ते हैं, पुलिस के पास कम ही मामले आते हैं। चर्च और वाइएमए खुलकर कभी राजनीतिक बयानबाजी नहीं करते, लेकिन ये तय करते हैं कि किस इलाके से कौन विधायक चुना जाएगा। संकेत में सबको बता दिया जाता है। डैली से ये सब कुछ सुनकर मुझे लग रहा था कि हम जैसे पत्रकार, जो दिल्ली में बैठे हुए हैं, मिजोरम के बारे में कितना कम जानते हैं।
डैली बता रही थी कि मिजोरम में टूरिज्म को प्रोमोट किया जाना कितना आवश्यक है। अगर यहां टूरिस्ट आएंगे, तो लोगों के लिए रोजगार के और भी कई विकल्प पैदा होंगे। लोगों के पास सरकारी नौकरी और खेती के अलावा कोई काम नहीं है। बड़ी फैक्ट्रियां हैं नहीं, छोटे मोट कुटीर उद्योग हैं, इसलिए रविवार को चर्च के चंगुल से बाहर निकलने का कोई जरिया नहीं। अगर बाहर से लोग आएंगे घुमने – फिरने तो मिजोरम का मिजाज भी बदलेगा, जो फिलहाल क्लोज्ड सोसायटी के तौर पर है।
अपने राज्य और यहां के लोगों को लेकर काफी गंभीर थी डैली। दलील दे रही थी, मिजोरम का सड़क संपर्क भी ठीक करने की जरूरत है। एक मात्र सिल्चर से आने वाली सड़क की हालत ठीक है। उस पर भी अगर एक बड़ा पत्थर गिर जाए, तो मिजोरम देश के बाकी हिस्से से कट जाता है। सिल्चर से आने वाले रास्ते में कोई तकलीफ हो जाए, बंद हो जाए, तो मिजोरम में सामान जायज-नाजायज तरीके से म्यांमार और बांग्लादेश से आता है। मणिपुर और त्रिपुरा को जोड़ने वाली सड़कें भी तब काफी खराब थीं, जीप भी उन पर मुश्किल से चल पाती थी। डैली कह रही थी, अगर सड़कें ठीक होंगी तो न सिर्फ बाहर से लोग मिजोरम का रुख करेंगे आसानी से, बल्कि मिजोरम के लोगों के लिए भी रविवार की छुट्टी के दौरान बाहर निकलने का मौका होगा।
डैली खुद जिंदादिल युवती थी, इसलिए युवाओं की जरूरत को समझती थी। बता रही थी, मिजोरम में नाइट लाइफ नहीं के बराबर है, शाम के सात बजे सन्नाटा छा जाता है। वहां पर लोगों के लिए रिक्रिएशन, मनोरंजन के तौर पर कुछ हो, इसके बारे में सबको सोचना चाहिए। डैली का तर्क था कि अगर लोग इन सब गतिविधियों में लिप्त होंगे, तो समाज और खुला हो जाएगा, जिसमें संकीर्णता काफी है। चर्च का असर भी कम होगा।
डैली के जरिये जो जानकारी मिली, उससे अंदाजा लगा कि मिजो सोसायटी काफी अंतर्मुखी है, बाहरी दुनिया से संपर्क कम है, इसलिए दूसरी चुनौतियां भी हैं। परिवार के अंदर इनसेस्ट (घर के अंदर के सदस्यों के बीच शारीरिक संबंध) के मामले काफी हैं। मिजोरम पुलिस ने जो महिला हेल्पलाइन शुरु की थी तब, उसमें ज्यादातर शिकायतें इसी तरह की आती थीं। इससे भी मुक्ति मिलेगी, अगर मनोरंजन की बाकी गतिविधियां बढेंगी। चर्च इनसेस्ट के ज्यादातर मामलों को सामने नहीं आने देता, अंदर ही अंदर सुलझाने की कोशिश करता है।
इनसेस्ट के साथ ड्रग्स का भी इस्तेमाल काफी है मिजो सोसायटी में। ज्यादातर लोग ड्रग्स लेते हैं, खास तौर पर युवा। इन सबका मिलाजुला असर ये है कि मिजोरम को एड्स कैपिटल ऑफऱ इंडिया का तमगा हासिल है। इस स्थिति को बदलने के लिए भी कुछ किया जाना चाहिए, चिंतित थी डैली।
डैली का मानना था कि चर्च के दबाव में मिजोरम को ड्राइ स्टेट बना दिया गया आधिकारिक तौर पर। चर्च को लगा कि अगर लोग शराब वगैरह ज्यादा पीएंगे, तो चर्च से विमुख होंगे, उनका धर्म की तरफ झुकाव कम होगा। इसलिए दबाव डालकर शराबबंदी करवाई गई। चर्च के पास अमूमन हर कमाने वाले इसाई की तनख्वाह का दस प्रतिशत हर महीने जाता है। यहां तक कि पुलिस वाले भी अपनी तनख्वाह से दस प्रतिशत राशि चर्च को डोनेट करते हैं। शराबबंदी हटने की हालत में चर्च को इस आर्थिक मामले में भी नुकसान की आशंका दिखती है। हालांकि आम आदमी विरोध मे था, खास कर युवा, लोग चोरी छिपे शराब पीते ही थे।
क्या मिजोरम में टूरिज्म की राह में इनर लाइन परमिट एक बड़ी बाधा है?
डैली का यही मानना था। डैली का कहना था कि इसको खत्म तो नहीं किया जा सकता, मिजोरम जैसे राज्यों के लिए ये काफी इमोशनल इश्यू है। खास तौर पर असम और त्रिपुरा में जिस तरह से बाहर से लोग आकर बसे हैं, उसके बाद यहां के लोगों को अपने कल्चर और पहचान को बचाने के लिए इनर लाइन परमिट जरूरी लगता है। हालांकि इसे आसान बनाया जा सकता है। इनर लाइन परमिट का एक खास डिजिटल एप बनाया जा सकता है। आप एयरलाइन या ट्रेन टिकट बुक करते ही लगे हाथों इसके लिंक पर भी जा सकते हैं और इसे ऑनलाइन हासिल कर सकते हैं, ऐसा उसका सुझाव था। अरुणाचल, मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड का साझा इनर लाइन परमिट एप बनाया जा सकता है। ये ज्यादा मुश्किल काम नहीं है। फिलहाल इनर लाइन परमिट सात दिनों का मिलता है, इसे बढ़ाकर न्यूनतम चौदह दिन का कर देना चाहिए, फी भी थोड़ी घटाई जा सकती है। अभी सबको मैनुअली फॉर्म भरकर परमिट हासिल करना पड़ता है।
डैली का मानना था कि मिजोरम में चूंकि टूरिस्ट आते ही कम हैं, इसलिए होटल की सुविधा भी काफी कम है। टूरिस्ट कम इसलिए आते हैं कि सुविधाएं कम हैं, आना मुश्किल है, आईएलपी का झंझट है और टिकट काफी महंगे हैं। सारी चीजें एक साथ जुड़ी हैं, उपर से मौसम की अलग परेशानी। टूरिस्ट सीजन सिर्फ आठ महीने का हो सकता है। मानसून में हालात काफी बुरे रहते हैं, सड़कें तक खराब हो जाती हैं, चट्टानें खिसक जाती हैं। इसलिए आवश्यक है कि कनेक्टिविटी बढ़े, इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक किया जाए और टूरिज्म को प्रोमोट किया जाए। इसी से मिजोरम और यहां के लोगों का देश के बाकी हिस्सों से संपर्क और संबंध मजबूत होगा।
डैली को मिजोरम की सामाजिक संरचना की भी अच्छी जानकारी थी। वो खुद मुस्लिम पिता और ईसाई मां की संतान थी। डैली बता रही थी कि गैर इसाइयों में चकमा हैं, जो बौद्ध धर्म को मानते हैं, नेपाली मूल के हिंदू हैं कुछ। दोनों की कुल मिलाजुलाकर संख्या भी दस प्रतिशत से कम है। ईसाई 2011 की जनगणना के मुताबिक ही 88 प्रतिशत थे, पिछले दस वर्षों में ये संख्या और बढी ही है। चकमा और हिंदू नेपालियों का धर्मांतरण करने की भी कोशिश लगातार जारी है। ब्रु आदिवासी जो हिंदू धर्म मानते थे पहले, वो भी तेजी से ईसाई बन रहे हैं।
हिंदुओं के लिए काफी मुश्किल है, मुश्किल से दो- तीन छोटे- छोटे मंदिर हैं, इसाइयों के मुकाबले गरीबी काफी है, अपने मंदिरों में पुजारी रखने का खर्च भी हिंदू नहीं उठा सकते। इसलिए ज्यादातर समय मंदिर के कपाट बंद ही रहते हैं। मिजोरम सेंट्रल यूनिवर्सिटी कैंपस के पास एक नेपाली हिंदू गांव है, लेकिन इनके पास मृत्यु होने पर अंतिम क्रिया के लिए आधिकारिक श्मशान भी नहीं है।
डैली बता रही थी कि बीजेपी की छवि हार्डकोर हिंदू पार्टी की है। इसलिए ईसाई थोड़ा भागते हैं। अगर बीफ वगैरह को लेकर बीजेपी नेताओं के बयान कम हो जाएं, तो उनका डर धीरे- धीरे कम हो सकता है। इस बारे में सोचा जाना चाहिए। ईसाई समुदाय के अंदर भी काफी आपस की लड़ाई है। कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट में, प्रोटेस्टेंट की बहुतायत है। इन दोनों के बीच आपसी संबंध ठीक नहीं, एक-दूसरे में शादियों से बचते हैं, चर्च तो अलग हैं ही। प्रोटेस्टेंट के अंदर भी ढेर सारे खेमे हैं। आपस में भी एक- दूसरे को अपने फोल्ड में लाने की लड़ाई चलते रहती है।
डैली के जरिये पता चला कि सामान्य जनता, खास तौर पर युवा, चर्च के जबरदस्त प्रभाव से अंदर से खुश नहीं हैं, लेकिन सामाजिक दबाव में खुलकर बोलते नहीं। डैली का कहना था कि भले ही बीजेपी की छवि हार्डकोर हिंदूत्ववादी पार्टी की हो, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर युवा मिजो वर्ग के बीच काफी सकारात्मक छवि है। वो सोचते हैं कि ये बात ठीक है मोदी अपने धर्म की बात करते हैं, लेकिन इससे उनका क्या नुकसान है, उनके इलाके का विकास तो हो ही रहा है, उन्हें अवसर प्राप्त हो रहे हैं।
डैली का मानना था कि चर्च के कारण मिजोरम में अंग्रेजी का जोर है, हालांकि युवा हिंदी सीखना चाहते हैं। मिजोरम सेंट्रल यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग है, यहां से भी युवाओं को हिंदी सीखने में मदद मिलती है। उसके मुताबिक, हिंदी की वजह से मिजोरम और यहां के लोगों को देश की मुख्यधारा में जुड़ने में भी आसानी हो सकती है। यही नहीं, वो टूरिज्म को भी इस दिशा में उपयोगी मानती थी। उसके मुताबिक टूरिज्म बढ़ने पर राज्य में संस्कृति का बदलाव होगा, अगर बाहर के लोगों का आना-जाना बढ़ेगा, खानपान की प्रवृति भी बदलेगी, यहां के लोग भी बाहर आने-जाने में लगेगें, जो फिलहाल मिजोरम से कम ही बाहर निकलते हैं। इसका सकारात्मक असर होगा।
डैली की ये सभी बातें याद करते हुए उसके साथ व्हाट्सअप पर हुए आखिरी चैट पर निगाह जाती है। यह उसके एक लेख का था, जिसमें उसने मिजोरम में एक प्राचीन मूर्ति खुदाई के दौरान हासिल होने के बारे में रिपोर्ट छापी और इसे लेकर मैंने बधाई थी। 21 जुलाई 2022 के दिन हुए इस चैट में डैली ने लिखा था कि इस आर्टिकल के कारण उसको काफी ट्रॉलिंग का सामना करना पड़ा है, क्योंकि इस ईसाई बहुल राज्य में ढेर सारे लोग इस तथ्य को स्वीकार करने में असहज महसूस कर रहे हैं कि यहां कोई प्राचीन हिंदू मूर्ति मिली है। आगे लिख रही थी वो, उसकी आलोचना करने वाले लोग ये चाहते हैं कि स्थानीय पत्रकार मेनस्ट्रीम मीडिया में इस तरह की रिपोर्टिंग करने से बचें। लेकिन डैली को इस तरह की ट्रौलिंग और आलोचना से कहां फर्क पड़ता था, वो थी ही इतनी बिंदास, अपनी लेखनी में भी, और अपने बोल में भी। |