deltin33 • 2025-12-21 14:37:00 • views 580
बाजरा।
जागरण संवाददाता, एटा। शुक्रवार को मंडी परिसर में बाजरे को लेकर चला हाईवोल्टेज ड्रामा भले ही रात में खत्म हो गया, लेकिन उससे जुड़े सवाल अब भी हवा में तैर रहे हैं। मंडी स्थित खरीद केंद्र के बाहर सैकड़ों कुंतल बाजरा पूरे दिन लावारिस हालत में पड़ा रहा। हैरानी की बात यह रही कि न मंडी प्रशासन ने इसे अपना माना और न ही विपणन विभाग ने जिम्मेदारी ली। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठा कि जब कोई इसे अपना नहीं मान रहा, तो आखिर यह बाजरा किसका था? विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
दिनभर हंगामा, कोई दावेदार नहीं, अंधेरे में उठ गया सैकड़ों कुंतल बाजरा
मामला सामने आते ही मंडी के व्यापारी मंडी सचिव से मिले और परिसर में दिनभर हंगामा चलता रहा। व्यापारियों का साफ कहना था कि यदि बाजरा किसी का नहीं है, तो उसे मंडी में किस उद्देश्य से रखा गया। वहीं अधिकारी पूरे समय इससे पल्ला झाड़ते नजर आए। दिनभर चली खींचतान के बाद देर शाम कुछ लोग कथित तौर पर जुगाड़ लगाकर बाजरे की दावेदारी करने पहुंच गए। इस पूरे मामले की जड़ बाजरे की एमएसपी बताई जा रही है।
इस वर्ष सरकार ने बाजरा का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2775 रुपये प्रति कुंतल तय किया था, जो पिछले वर्ष की तुलना में काफी अधिक है। इसके उलट बाजार में व्यापारियों ने बाजरा 1900 से 2000 रुपये प्रति कुंतल तक खरीदा। एमएसपी और बाजार भाव के इसी भारी अंतर ने कथित खेल को जन्म दिया। आरोप हैं कि किसानों के बजाय व्यापारियों से भी बाजरा खरीदकर एमएसपी पर खपाया गया।
1900 में खरीदा, 2775 में बेचने की तैयारी, यहीं फंसा मामला
शुक्रवार को जो बाजरा लावारिस पड़ा मिला, उसके बारे में चर्चा रही कि वह बाहरी व्यापारियों का था। जैसे ही मंडी के स्थानीय व्यापारियों ने इस पर सवाल खड़े किए, वैसे ही रातोंरात वह बाजरा गायब कर दिया गया। सवाल यह भी है कि यदि बाजरा किसानों का था और बिक्री के लिए लाया गया था, तो वह पूरे दिन लावारिस क्यों पड़ा रहा? दिन में उसकी दावेदारी करने कोई क्यों नहीं आया? और यदि बाद में किसान सामने आए तो फिर उसे क्रय केंद्र पर विधिवत क्यों नहीं खरीदा गया? मात्रा को लेकर भी विरोधाभास साफ दिखा। व्यापारी जहां करीब एक हजार कुंतल बाजरा होने की बात कह रहे थे,
वहीं अधिकारी इसे केवल 300 कुंतल बता रहे हैं। यह अंतर भी संदेह को और गहरा करता है। सबसे बड़ी बात ये रही कि मामला जब गड़बड़ नहीं था तो फिर इस बाजरा में से व्यापारियों के हंगामा करने पर 50 कुंतल बाजरा गोशाला को क्यों दिया गया। यही कुछ ऐसे सवाल हैं जिनकी वजह से खाद्य एवं विपणन विभाग पर उंगलियां उठ रहीं हैं।
जिला विपणन अधिकारी सुभाष चंद्र के अनुसार इस बार लगभग 4000 किसानों से बाजरे की खरीद की गई है। संभव है कि उनमें कुछ व्यापारी भी शामिल हों। सरकार द्वारा निर्धारित खरीद लक्ष्य पूरा कर लिया गया है। उन्होंने बताया कि शुक्रवार को पड़े बाजरे की दावेदारी कुछ किसानों ने की थी, जो बाद में उसे उठा ले गए। हालांकि मंडी में पड़े बाजरा पर उठे तमाम सवाल यही संकेत देते हैं कि लावारिस बाजरे के पीछे कोई न कोई पेंच जरूर था, जिसने रातोंरात उठान को मजबूर कर दिया। |
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