जागरण संवाददाता, फरीदाबाद। सफेदपोश आतंकियों के गढ़ के रूप में सामने आई धौज गांव में स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी हरियाणा विधानसभा द्वारा पारित हरियाणा निजी विश्वविद्यालय अधिनिय\“ के तहत अस्तित्व में आई थी। यूनिवर्सिटी बनने से पहले वर्ष 1997 में यह संस्थान इंजीनियरिंग काॅलेज के रूप में स्थापित हुआ था। तब इसमें इंजीनियरिंग की एक हजार के करीब सीटें थी। साथ ही एक छोटी डिस्पेंसरी भी संचालित होती थी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
अल फलाह ट्रस्ट द्वारा संचालित करीब 78 एकड़ में फैले संस्थान में 2021 का इंजीनियरिंग काेर्स का अंतिम वर्ष था और उसके बाद इंजीनियरिंग के दाखिले बंद कर दिए गए थे। इसकी वजह इंजीनियरिंग के अपने ही जिले में कई अन्य संस्थान खुल जाने थे।
इस वजह से यहां दाखिले कम होने लगे थे। इसके बाद पूरी तरह से प्रबंधन का जोर मेडिकल काॅलेज एवं अस्पताल पर ही हो गया। मान्यता मिलने के बाद वर्ष 2016 में यहां मेडिकल की पढ़ाई शुरू हुई। बाद में यहां पैरामेडिकल के कोर्स भी शुरू हुए।
परिसर में 650 बेड का अस्पताल संचालित है, जहां मरीजों का न्यूनतम शुल्क पर उपचार किया जाता है। यहां चिकित्सीय जांच की आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। इनमें अल-फलाह यूनिवर्सिटी में डिप्लोमा कोर्स सहित ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और डाॅक्टरेट कोर्स करवाए जाते हैं।
एमबीबीएस की यहां 200 सीटें हैं और एमडी की 50 सीटें हैं। एमबीबीएस में दाखिले के बाद यहां 16 लाख रुपये प्रति वर्ष की फीस है, जबकि एमडी कोर्स की फीस ढाई लाख रुपये से 30 लाख रुपये है।
यूनिवर्सिटी के स्टाफ के अनुसार पहले दाखिले के लिए यहां जम्मू-कश्मीर के बच्चों की संख्या अधिक रहती थी, बाद में राजस्थान, हरियाणा, यूपी के युवाओं ने भी दाखिला लिया। यहां बड़ी संख्या में हिंदू छात्र भी पढ़ाई कर रहे हैं।
यूनिवर्सिटी की चांसलर डाॅ. भूपेंद्र कौर हैं। जनवरी-2025 में यहां प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आए थे।
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