नई दिल्ली। निवेश हर कोई करना चाहता है, क्योंकि ज्यादा से ज्यादा रिटर्न प्राप्त करना है, भविष्य के लिए एसेट जुटाने है, और अपनी इच्छाओं को पूरा करना है। लेकिन सच्चाई है कि लोग आज भी बेहतर निवेश के ऑप्शन ढूंढ रहे हैं। क्योंकि मार्केट किस ओर करवट लेगा किसी को नहीं पता। ऐसे में निवेश के ऑप्शन जो पहले बेहद आकर्षक थे, वो जियो पॉलिटिक्स और आर्थिक मंदी के कारण उबाऊ बन जाते हैं। इसलिए, रिटेल निवेशकों की समस्या होती है कि उनके लिए निवेश का बेहतर ऑप्शन क्या है, जहां समय कम देना पड़े और निवेश पर बेहतर रिटर्न मिले। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
म्यूचुअल फंड मुख्य रूप से एक लोकप्रिय निवेश का विकल्प है, क्योंकि यहां आपके पैसे को प्रोफेशनल मैनेजर मैनेज करता है, आपके पैसे को जरूरत के हिसाब से डायवर्सिफाई करता है और सबसे जरूरी चीज, आप जब चाहे इसे बेच सकते हैं। हालांकि, बहुत लोगों को लगता है कि म्यूचुअल फंड में फंड मैनेजर आपके पैसे को केवल इक्विटी यानी स्टॉक मार्केट में निवेश करता है। लेकिन सच्चाई है कि म्यूचुअल फंड केवल इक्विटी नहीं है। इसमें आपको निवेश के कई विकल्प मिलते हैं, जैसे डेट फंड, हाइब्रिड फंड और फंड ऑफ फंड।
आप अपने रिस्क एपेटाइट के हिसाब से इन फंडों में निवेश कर सकते हैं। इस विषय पर Jagran Business की कंसल्टिंग एडिटर Geetu Moza ने Wealthyworld Pathways Pvt. Ltd. के फाउंडर Sunil Bahri के साथ शानदार बातचीत की। सुनिल ने दर्शकों को म्यूचुअल फंड इक्विटी के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारी दी। लेकिन साथ ही, उन्होंने यही भी बताया कि म्यूचुअल फंड केवल इक्विटी नहीं, बल्कि इसमें कई और विकल्प भी है।म्यूचुअल फंड निवेश पर गीतू मोजा और सुनील बाहरी की शानदार बातचीत का वीडियो-
म्यूचुअल फंड में इक्विटी के अलावा कौन-कौन से एसेट क्लास है?
म्यूचुअल फंड में इक्विटी के अलावा डेट, हाइब्रिड और फंड ऑफ फंड में निवेशकों का पैसा लगाया जाता है, लेकिन इसका चुनाव निवेशक ही करता है। इक्विटी- इसमें स्टॉक मार्केट में पैसा लगाया जाता है। डेट म्यूचुअल फंड - इसमें ट्रेजरी बॉन्ड, सरकारी प्रतिभूतियां, कमर्सल पेपर्स, मनी मार्केट आदि में पैसा लगाया जाता है। आप इसमें लंबे समय के लिए पैसा लगा सकते हैं। हाइब्रिड म्यूचुअल फंड - यह इक्विटी और डेट का मिश्रण है, इसके जरिए निवेशक दोनों में पैसा लगा सकते हैं। इसमें दो कैटेगरी है - एग्रेसिव हाइब्रिड और कंजर्वेटिव हाइब्रिड। इसके अलावा निवेशकों को मल्टी-एसेट फंड, फंड ऑफ फंड और ईटीएफ जैसे निवेश के ऑप्शन भी मिलते हैं।
म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय एसेट एलोकेशन कैसे करें?
म्यूचुअल फंड में एसेट एलोकेशन इस बात पर तय होता है कि आपका लक्ष्य क्या है, आप कितना रिस्क ले सकते हैं और कितने समय के लिए निवेश करना चाहते हैं। यह एसेट एलोकेशन के तीन मुख्य कारक हैं। म्यूचुअल फंड में हर निवेश ऑप्शन का फायदा और नुकसान है। हमें संतुलन बनाकर चलना चाहिए।
“अगर सीजन में बदलाव आता है तो लोगों का मूड भी बदलता है। जैसे कुछ समय पहले इक्विटी मार्केट चल रहा था, तो लोग वहां निवेश कर रहे थे। अब गोल्ड और सिल्वर बढ़ रहा है तो लोग इनमें निवेश करना चाहते हैं। लेकिन यह निवेश का सही तरीका नहीं है“ - सुनिल बाहरी
एक आदर्श पोर्टफोलियो कैसे बनाएं?
आदर्श पोर्टफोलियो के लिए आपको अपने गोल को स्पष्ट करना चाहिए, जोकि तीन तरह के होते हैं। शॉट टर्म (एक से पांच साल) , मिड टर्म (पांच से सात साल ) और लॉन्ग टर्म गोल (सात साल से ऊपर)। इस पर सुनिल बाहरी कहते हैं “अगर आपके बच्चे की शिक्षा पर खर्च आज से 10 साल बाद होने वाला है, और आप अपना पैसा डेट में निवेश करते हैं तो वह पैसा कभी ग्रो नहीं कर पाएगा, यहां आपको इक्विटी में निवेश करना चाहिए। इसे आसान भाषा में कहे तो मंजिल पर पहुंचने के लिए सही वाहन का चुनाव करना बहुत जरूरी है।“
निवेशक मार्केट साइकिल को कैसे पहचाने?
इकोनॉमिक इंडिकेटर को एनालाइज करके, प्राइस ट्रेंड और सेंटीमेंट को पहचानकर, और वोलैटिलिटी, अल्फा और बीटा जैसे मैट्रिक्स का उपयोग करते हुए फंड के ऐतिहासिक प्रदर्शन का मूल्यांकन करके निवेशक म्यूचुअल फंड में मार्केट साइकिल को पहचान सकते हैं।
“मार्केट साइकिल या मार्केट मूड के हिसाब से अपना एसेट एलोकेशन नहीं करना चाहिए। अगर मार्केट साइकिल के हिसाब से एसेट एलोकेशन करना सही होता तो हर कोई करोड़पति होता। इसकी जगह रीबैलेंसिंग करना बेहतर है।“ - सुनिल बाहरी |