राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार से नक्सलियों के प्रभाव कम होने का असर इस विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल रहा है। कभी नक्सलियों का गढ़ रहे गया के इमामगंज विधानसभा क्षेत्र के छकरबंधा थाना अंतर्गत पिछुलिया और रोहतास जिले के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र रेहल गांव में पहली बार वोट डाले जाएंगे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इसके अलावा छकरबंधा के तारचुआ में भी विधानसभा चुनाव के दौरान पहली बार वोटिंग होगी। इसके पहले पिछले साल लोकसभा चुनाव में तारचुआ में मतदान की प्रक्रिया अपनाई गई थी।
पुलिस मुख्यालय के अनुसार, इस बार के विधानसभा चुनाव में कई दशकों के बाद ऐसा हुआ है, जब घोर उग्रवाद से प्रभावित जिलों में भी किसी भी मतदान केंद्र को स्थानांतरित नहीं किया गया है।
कभी नक्सल प्रभावित रहे जमुई के बरहट थाना क्षेत्र के चोरमारा ग्राम में भी कुल 1011 मतदाता दूसरे चरण में अपने मूल स्थल पर मतदान करेंगे। जमुई, मुंगेर और लखीसराय जिले के उग्रवाद प्रभावित पहाड़ी एवं दुर्गम स्थलों में चोरमारा नक्सलवाद गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा है।
यहां जनवरी-फरवरी, 2007 में सीपीआइ माओवादियों के द्वारा नौवें कांग्रेस का आयोजन भी किया गया था। इसमें माओवादी संगठन के शीर्ष नेता गणपति, प्रशांत बोस, किशन दा सहित 50 शीर्ष और करीब 200 अन्य उग्रवादी इसमें शामिल हुए थे।
पुलिस मुख्यालय के अनुसार, नक्सलियों का सफाया करने के उद्देश्य से वर्ष 2022 में जमुई के बरहट थाना क्षेत्र के चोरमारा और मुंगेर के लड़ैयाटाड़ थाना क्षेत्र के पैसरा में केंद्रीय बलों का कैंप बनाया गया था जिसके बाद नक्सल गतिविधियों पर नियंत्रण पाया जा सका।
वर्ष 2022 में नक्सलियों के तीन शीर्ष कमांडर अर्जुन कोड़ा, बालेश्वर कोड़ा और नागेश्वर कोड़ा, जबकि 2023 में नक्सली कमांडर सूरज मुर्मु ने हथियार के साथ सुरक्षा बल के समक्ष आत्मसमर्पण किया था।
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