Mewat: सरपंच से बैंक मैनेजर तक सांठगांठ, ठेकेदारों की मिलीभगत से मजदूरों का हक लूटा

Chikheang 2025-11-10 12:37:37 views 1149
  

नूंह जिले में मनरेगा योजना में ठेकेदारी प्रथा से भ्रष्टाचार बढ़ रहा है।



मोहम्मद मुस्तफा, नूंह। जिले में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना में ठेकेदारी प्रथा के चलते भ्रष्टाचार चरम पर है। ठेकेदार, अधिकारियों से मिलीभगत करके, पंचायतों में सरपंचों द्वारा कराए जाने वाले कामों को कम करके विकास के नाम पर सरकार को चूना लगा रहे हैं। यह प्रथा सबसे ज़्यादा मनरेगा योजना में व्याप्त है, जिसमें मजदूरों को 100 दिन का रोजगार देने का वादा किया गया है, लेकिन मिलीभगत के कारण न केवल मजदूरी का भुगतान हो रहा है, बल्कि ज़मीनी स्तर पर काम भी नहीं हो रहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

ठेकेदार, अधिकारियों से मिलीभगत करके, कागज़ों पर काम शुरू कर देते हैं और जब शिकायत की जाती है, तो उसे टाल देते हैं। तय कमीशन के चक्कर में ब्लॉक स्तर के अधिकारी भी कोई कार्रवाई नहीं करते। ऐसा नहीं है कि सरकार को विकास राशि नहीं मिलती; मिलती तो है, लेकिन वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है। इससे न केवल सरकार को चूना लगता है, बल्कि विकास राशि का दुरुपयोग भी होता है।

सरकार को इस योजना में पारदर्शिता लाने के लिए सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है। गौरतलब है कि नूंह जिला पिछले साल भी मनरेगा घोटाले को लेकर सुर्खियों में रहा था। अधिकारियों ने जब इसकी जाँच की तो मामला उजागर हुआ। हालाँकि, सख्त कार्रवाई न होने के कारण, मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार अब तक पकड़ से बाहर है।

ब्लॉक स्तर के अधिकारियों को इस मामले की पूरी जानकारी है, लेकिन उपायुक्त और सरकार अभी भी इस सांठगांठ से अनजान हैं। इस योजना में न केवल गाँव का सरपंच शामिल है, बल्कि ठेकेदार से लेकर एबीपीओ, जेई, बीडीपीओ, लेखाकार और बैंक मैनेजर तक सभी कथित तौर पर शामिल हैं। सूत्रों का कहना है कि यह एक मिलीभगत है, जिसमें शामिल सभी लोग केवल अपने कमीशन के बारे में चिंतित हैं। गौरतलब है कि पिछले कार्यकालों में, सरपंच, सचिव और अन्य अधिकारी मनरेगा घोटालों के लिए जेल जा चुके हैं।
यह सब कैसे शुरू होता है?

मनरेगा योजना के तहत, ठेकेदार पहले कमीशन आधारित सड़क निर्माण के लिए गाँव के सरपंच से एक लिखित प्रस्ताव प्राप्त करता है। फिर उस कार्य के लिए एक कार्य संहिता बनाई जाती है। फिर जेई, एसडीओ और बीडीपीओ के माध्यम से कार्य पंचायत सीईओ के पास जाता है, जहाँ से अनुमति मिलती है। यह अनुमति मिलने के बाद, ठेकेदार कागज़ों पर काम शुरू कर देता है।

काम शुरू करने के लिए, ग्रामीणों को कागज़ों में मज़दूर दिखाया जाता है और उनके नाम से जॉब कार्ड बनाकर उनकी उपस्थिति दर्ज की जाती है। उनकी जानकारी के बिना उनके नाम पर बैंक खाते खोल दिए जाते हैं। पैसा जमा होने के बाद, कमीशन के लिए बैंक मैनेजर से मिलीभगत करके मज़दूर की जानकारी के बिना ही पैसा निकाल लिया जाता है। सरकार ने पिछले एक साल से ठेकेदारों का भुगतान भी रोक रखा है।



मनरेगा योजना के तहत काम की निगरानी केवल सरपंच ही कर सकता है। अगर ठेकेदार काम करते पाए जाते हैं, तो उनकी जाँच की जाएगी। अगर कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो कार्रवाई ज़रूर की जाएगी।
- रविंद्र चौहान, लोकपाल, नूंह
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