साइको टेस्ट में फेल लोको पायलट चला रहा था ट्रेन
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में मंगलवार को हुए ट्रेन हादसे में रेल प्रशासन की गंभीर लापरवाही उजागर हुई है। जांच में यह सामने आया है कि लोको पायलट विद्यासागर अनिवार्य मनोवैज्ञानिक परीक्षा (साइको टेस्ट) पास किए बिना ही यात्री ट्रेन का परिचालन कर रहे थे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
नियमों की अनदेखी करते हुए अधिकारियों ने जानबूझकर उन्हें ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। चालक के मानसिक संतुलन और त्वरित निर्णय क्षमता का आकलन करने वाली परीक्षा में फेल होने के बाद भी अयोग्य व्यक्ति को परिचालन की जिम्मेदारी देना हादसे का महत्वपूर्ण कारण हो सकता है।
रेल प्रशासन की गंभीर लापरवाही उजागर
यह गंभीर चूक सामने आने के बाद रेल मंडल के वरिष्ठ अधिकारियों में खलबली मची है। हादसे में विद्यासागर समेत 11 लोगों की जान गई थी।विद्यासागर मालगाड़ी के चालक थे और उन्हें एक माह पूर्व पैसेंजर ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी दी गई थी। रेलवे के नियमों के अनुसार किसी भी चालक को मालगाड़ी से पैसेंजर ट्रेन में पदोन्नत करने के पहले साइको टेस्ट पास करना अनिवार्य होता है।
विद्यासागर 19 जून को इस परीक्षा में फेल हो गए थे, जिसके कारण सहायक चालक रश्मि राज को उनके साथ रखा गया था।रेलवे संरक्षा आयुक्त (आरएससी) बीके मिश्रा ने गुरुवार को इस मामले से जुड़े 19 कर्मचारियों के बयान दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू की। पूछताछ रेल मंडल कार्यालय के सभाकक्ष में हो रही है, जिसमें तीन डिप्टी सीआरएस, संरक्षा विभाग के अधिकारी और काउंसलर शामिल हैं। शेष कर्मचारियों के बयान सात नवंबर को दर्ज किए जाएंगे।
इन अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल
रेलवे में डीआरएम स्तर पर प्रमोशन का पैनल बनता है। विद्यासागर सहायक लोको पायलट थे, जो मालगाड़ी चला सकते थे। प्रमोशन देकर उन्हें लोको पायलट बनाया गया था। डीआरएम स्तर से प्रमोशन का अनुमोदन होने के बाद फाइल स्थापना शाखा में जाती है।
वहां वरिष्ठ मंडल विद्युत अभियंता, परिचालन इसे अंतिम रूप देते हैं। प्रमोशन संबंधी सभी मापदंड पूरा करने के बाद पैसेंजर ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी दी जाती है। साइको टेस्ट में विद्यासागर के फेल होने के बाद भी उन्हें पैसेंजर ट्रेन के परिचालन की जिम्मेदारी दे दी गई। |