मनोज त्रिपाठी, लखनऊ। लोक कलाकारों को वितरित करने के लिए पिछले मार्च माह में की गई वाद्य यंत्रों की खरीद में संस्कृति विभाग के कई अधिकारियों ने मिलीभगत करके 24.38 लाख रुपये डकारने की तैयारी की थी। वाद्य यंत्रों की गुणवत्ता और वास्तविक कीमत की जांच में इसका राजफाश हुआ है। नतीजतन शासन ने वाद्य यंत्रों की वास्तविक कीमत के आधार पर 2,70,73,002 रुपये की खरीद की स्वीकृति प्रदान की है। पहले अधिकारियों ने 2,95,11,100 रुपये में इन वाद्य यंत्रों की खरीद का बिल शासन को उपलब्ध कराया था। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
राज्य सरकार ने लोक कलाकारों को निश्शुल्क वाद्य यंत्रों का वितरण करने की योजना लागू की है। इसके तहत राज्य की ग्राम पंचायतों के जरिए लोक कलाकारों को हर वर्ष वाद्य यंत्रों का वितरण किया जाता है। इसी योजना के तहत पिछले वित्तीय वर्ष के अंत में अधिकारियों ने वाद्य यंत्रों के 825 सेट खरीदे थे।
मार्च के अंतिम सप्ताह में हुई इस खरीद को आनन-फानन में शासन ने भी स्वीकृति दे दी थी। वाद्य यंत्रों के सेट में तबला, हारमोनियम, घुंघरू व ढोलक सहित पांच प्रकार के वाद्य यंत्र शामिल किए गए थे। खरीद में घोटाले की भनक लगने पर तत्कालीन प्रमुख सचिव मुकेश कुमार मेश्राम ने विशेष सचिव रवींद्र कुुमार की अध्यक्षता में समिति का गठन कर प्रारम्भिक जांच कराई थी।
जांच में दोषी पाए गए तत्कालीन सहायक निदेशक डा. राजेश अहिरवार और वैयक्तिक सहायक कुलदीप को निलंबित कर शासन ने भुगतान पर रोक लगा दी थी। साथ ही वाद्य यंत्रों की खरीद की प्रक्रिया, गुणवत्ता और वाद्य यंत्रों की वास्तविक कीमत की जांच के लिए अलग-अलग समितियों का गठन किया था। फिलहाल वाद्य यंत्रों की गुणवत्ता और वास्तविक कीमत की जांच पूरी की जा चुकी है। इस जांच रिपोर्ट में 24.38 लाख रुपये का घालमेल सामने आया है। नतीजतन शासन ने इसकी कटौती कर कंपनी को भुगतान करने के निर्देश दिए हैं।
वहीं वाद्य यंत्रों की खरीद प्रक्रिया में बरती गई अनियमितता की जांच अभी जारी है। शासन ने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि वाद्य यंत्रों की खरीद के लिए समिति का गठन किया जाए। समिति वास्तविक कीमत, गुणवत्ता और कंपनी का चयन करेगी। अधिकारियों ने इसकी परवाह किए बिना ही वाद्य यंत्रों की खरीद की थी। इसलिए खरीद प्रक्रिया की जांच में कई और अधिकारियों व कर्मचारियों का नपना तय माना जा रहा है। |