असम बीटीसी चुनाव के नतीजों में भाजपा को मिली हार।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) के चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को करारा झटका लगा है। परिषद में पिछले पांच वर्षों से विपक्ष में रही बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) ने इस बार 40 में से 28 सीटें जीतकर भारी बहुमत हासिल किया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
भाजपा को पांच और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) को सात सीटें मिली हैं, जो पांच-छह महीने बाद होने वाले असम विधानसभा चुनाव में भाजपा-यूपीपीएल गठबंधन के लिए सबक है। बीटीसी चुनाव को विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जाता है। बीपीएफ की जीत संकेत देती है कि विधानसभा का मुकाबला आसान नहीं होगा और भाजपा को सत्ता में वापसी के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी होगी।
क्यों अहम है बीटीसी का चुनाव?
असम की राजनीति में बीटीसी चुनाव का असर हमेशा विधानसभा पर दिखता रहा है, क्योंकि 126 में से 19 विधानसभा सीटें इसी क्षेत्र में आती हैं। यही वजह है कि यहां का जनादेश पूरे राज्य की दिशा तय करता है। इस बार बीपीएफ ने जिस तरह भाजपा और यूपीपीएल को पछाड़ते हुए प्रचंड जीत दर्ज की है, उसने विपक्ष को नई ऊर्जा और हौसला दिया है।
ताजा नतीजों ने तोड़ा मिथक
भाजपा ने पिछले एक दशक में असम की राजनीति में गहरी पैठ बनाई थी। लोकसभा और विधानसभा में लगातार अच्छे प्रदर्शन ने उसे भरोसा दिला दिया था कि विपक्ष उसके सामने टिक नहीं पाएगा। लेकिन बीटीसी का ताजा परिणाम इस मिथक को तोड़ता दिखता है। संदेश साफ है कि मतदाता स्थानीय मुद्दों और नेतृत्व को प्राथमिकता दे रहे हैं।
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कांग्रेस की जगी उम्मीदें
पिछले चुनाव में भाजपा ने बीपीएफ के साथ गठबंधन कर परिषद का चुनाव लड़ा था। बीपीएफ को 17 और भाजपा को नौ सीटें मिली थीं। हालांकि, परिणाम आने के बाद भाजपा ने बीपीएफ से नाता तोड़कर 12 सदस्यों वाली यूपीपीएल के साथ गठबंधन कर लिया। इसके बाद बीपीएफ पांच वर्षों तक विपक्ष में रही। बदले हालात में विधानसभा चुनाव में बीपीएफ भाजपा के साथ हाथ मिलाने के लिए शायद ही तैयार हो पाए। ऐसे में बीटीसी चुनाव में खाता भी नहीं खोल सकी कांग्रेस को बीपीएफ से नई उम्मीदें मिल सकती हैं। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में 126 में से 29 सीटें जीती थीं।
बीटीसी के नतीजों ने बीपीएफ के साथ-साथ पूरे विपक्ष को मजबूती दी है। कांग्रेस और एआईयूडीएफ जैसे दल इसे भाजपा के खिलाफ बढ़ते असंतोष के रूप में देख रहे हैं। माना जा रहा है कि यदि विधानसभा चुनाव में सभी भाजपा विरोधी दल एकजुट होकर उतरते हैं, तो सत्तारूढ़ गठबंधन के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है।
भाजपा के लिए चुनौती
भाजपा के लिए यह हार केवल परिषद की सत्ता गंवाने तक सीमित नहीं है। रणनीतिक दृष्टि से अहम इस क्षेत्र में झटका विधानसभा चुनाव को भी प्रभावित कर सकता है। यहां की नाराजगी राज्य के अन्य हिस्सों तक असर डाल सकती है। भाजपा ने यूपीपीएल के साथ गठबंधन को स्थानीय समीकरण साधने का जरिया माना था, लेकिन नतीजों ने दिखा दिया कि यह फॉर्मूला काम नहीं आया। अब भाजपा को अपने संगठन और कार्यकर्ताओं को फिर से सक्रिय करना होगा। संदेश साफ है कि मतदाता स्थानीय मुद्दों और नेतृत्व को तवज्जो देते हैं।
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