deltin51
Start Free Roulette 200Rs पहली जमा राशि आपको 477 रुपये देगी मुफ़्त बोनस प्राप्त करें,क्लिकtelegram:@deltin55com

Jagran Dev Deepawali: आस्था का आलोक, राप्ती के आंचल में उतरा देवलोक

cy520520 2025-11-6 12:37:06 views 872

  



आशुतोष मिश्र, जागरण, गोरखपुर। एक ओर राप्ती की शांत जलधारा, दूसरी ओर श्रद्धा का अनवरत प्रवाह। नदी किनारे आस्था का ऐसा संगम जहां जन मन के एकीकार भाव का उजास है। गुरु गोरक्षनाथ घाट पर उमंग और उल्लास की तरंगें ऐसी, जैसे स्वयं राप्ती अपनी लहरों में दिव्यता बहा रही है। हर कदम पर खुशी झिलमिला रही है। हर नयन में उत्सव की ज्योति चमक रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इस सम्मोहनी माहौल में शाम पौने पांच बजे दैनिक जागरण के ‘दिव्य दीपोत्सव’ का पहला दीप जलता है। यह लौ देखते ही देखते पूरे शहर की आस्था को आलोकित करने वाली किरण बन जाती है। कुछ ही पलों में सवा लाख दीपों की रोशनी से अचिरावती का आंचल सुनहरी चादर ओढ़ कर आया है। चहुंओर आस्था का ऐसा आलोक छाया है, मानो राप्ती के आंचल में देवलोक उतर आया है।

  

लहरों पर झिलमिलाते दीप, आकाश में उड़ते कैमरे और घाट पर श्रद्धा की हिलोर। अनगिनत चेहरे, असंख्य दृश्य। लेकिन, सबके बीच एक साम्य- हर कोई पल प्रति पल के हर दृश्य को मानस में संजोने को आतुर। कोई इसे अपने कैमरे में कैद कर रहा है, तो कोई इन दृश्यों को निहार कर कण-कण में बिखरी दिव्यता को अपनी आत्मा में बसाने में मग्न। बच्चे उत्साह से दीये थामे हैं। भक्त शिव मंदिर को दीपों से सजा रहे हैं। हर कोई इस आयोजन का हिस्सा बनकर गौरवान्वित हैं।

  

धीरे-धीरे शाम गहरा रही है, लेकिन दीप रश्मियों के उजाले से उत्सव का ताप और बढ़ रहा है। सवा छह बजे, जैसे ही राप्ती आरती प्रारंभ होती है, पूरा घाट एक सुर में \“\“हर हर गंगे\“\“ और \“\“हर हर महादेव\“\“ के उच्चघोष से गूंज उठता है। दीपों की कतारें जल में प्रतिबिंबित होती हैं, हवा में धूप और भक्ति की सुगंध घुल जाती है। दृश्य ऐसा मानो देवताओं संग आकाशगंगा अचिरावती के आंचल में उतर आई हो।

  

आस्था के इस अद्भुत उत्सव में सवा लाख दीपों का सामूहिक प्रकाश मात्र एक रिकार्ड नहीं, बल्कि गोरखपुर की सांस्कृतिक चेतना का पुनर्जागरण है। इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने सांसद जगदंबिका पाल, शिक्षक विधायक ध्रुव त्रिपाठी, विधायक विपिन सिंह, प्रदीप शुक्ल, महापौर डा. मंगलेश कुमार जैसे जनप्रतिनिधियों का यही मानना है। जगदंबिका पाल इसे गोरखपुर की आध्यात्मिक पहचान का उत्सव बताते हैं। वह कहते हैं-यह दीपोत्सव सिर्फ दीयों का नहीं, हमारी परंपरा और संस्कृति का उजास है।

  

रात अब पूरी रौ में आ चुकी है। घाट अब भी रोशनी में नहा रहा है। भीड़ कम नहीं हुई है, क्योंकि जो अकेला लौटा, वो कुछ ही देर में अपने परिवार के साथ लौट आया है। आस्था के इस अविरल प्रवाह से गोरखपुर की राप्ती इस रात केवल नदी नहीं, श्रद्धा की वह झील बन चुकी है जिसमें हर दीप एक आस्था, हर ज्योति एक भाव बनकर जल रही थी।
like (0)
cy520520Forum Veteran

Post a reply

loginto write comments

Explore interesting content

cy520520

He hasn't introduced himself yet.

210K

Threads

0

Posts

710K

Credits

Forum Veteran

Credits
70765