पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार में फुट ओवरब्रिज अब बाजार बन गया है।
जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली। आनंद विहार बस अड्डा और रेलवे स्टेशन यमुनापार क्षेत्र का सबसे बड़ा बस अड्डा है। स्टेशन के बाहर बने फुट ओवरब्रिज (एफओबी) को पुल कहना गलत होगा। यह फुट ओवरब्रिज पूरी तरह से बाजार में तब्दील हो चुका है। हजारों पैदल यात्री आनंद विहार से कौशांबी तक फुट ओवरब्रिज के जरिए आवागमन करते हैं। पीडब्ल्यूडी का यह पुल अब रेहड़ी-पटरी का बाजार बन चुका है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधि और अधिकारी इस स्थिति से बेखबर नजर आ रहे हैं। आरोप है कि फुट ओवरब्रिज पर कब्जा करने वाले लोग अपना कब्जा बनाए रखने के लिए दिल्ली पुलिस, नगर निगम और पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों को हर महीने मोटी रकम देते हैं। कड़वी सच्चाई यह है कि जब भी कोई बड़ा नेता आनंद विहार का निरीक्षण करता है, तो यह बाजार गायब हो जाता है। इससे पता चलता है कि सरकारी विभाग सिर्फ दिखावे के लिए काम करते हैं। उन्हें फुट ओवरब्रिज का इस्तेमाल कर जान जोखिम में डालने वाले पैदल यात्रियों की जान की कोई परवाह नहीं है।
दिल्ली सरकार और नगर निगम बदल चुके हैं, लेकिन सत्ता में आई कोई भी पार्टी इस फुट ओवरब्रिज से अवैध रेहड़ी-पटरी बाजार नहीं हटवा पाई है। त्योहारों के दौरान फुटओवरब्रिज पर इतनी भीड़ होती है कि पैदल यात्रियों को खड़े होने की भी जगह नहीं मिलती। फिर भी, यहाँ बाज़ार लगते हैं।
अगर भगदड़ मच जाए या कोई बड़ा हादसा हो जाए, तो कौन ज़िम्मेदार होगा? राहगीरों का कहना है कि उन्होंने सड़क किनारे बाज़ार देखे हैं। लेकिन, यमुना किनारे आनंद विहार फ़ुटओवर ब्रिज ही एकमात्र ऐसा पुल है जहाँ अवैध रूप से बाज़ार लगते हैं। अतिक्रमणकारी कुछ कह नहीं पाते। वे उन्हें धमकाते हैं, कहते हैं कि जहाँ चाहो शिकायत कर लो, और अतिक्रमण हटाने के बदले पैसे का लालच देते हैं।
अवैध बाजार के आगे भाजपा पार्षद भी बेबस
जागरण संवाददाता ने आनंद विहार वार्ड की भाजपा पार्षद डॉ. मोनिका पंत से सीधे तौर पर पूछा कि माफिया ने फ़ुटओवर ब्रिज पर कब्जा क्यों कर लिया है। बाज़ार लग रहा है, और निगम में सत्ताधारी उसी पार्टी की पार्षद अतिक्रमण नहीं हटा पा रही हैं। उन्होंने जवाब दिया कि वे वार्ड समिति की बैठकों में कई बार फ़ुटओवर मार्केट का मुद्दा उठा चुकी हैं।
उनसे पूछा गया, “जब कोई मंत्री आता है, तो बाज़ार हटवा दिया जाता है। वे कौन अधिकारी हैं जो उस समय बाज़ार हटवा देते हैं, लेकिन आम दिनों में ऐसा नहीं कर पाते? अगर अधिकारी पार्षद की बात नहीं सुन रहे, तो वे किसकी बात सुन रहे हैं?“ |