मतुआ बाहुल क्षेत्र में SIR से चिंता
राज्य ब्यूरो, जागरण, कोलकाता। चुनाव आयोग द्वारा वर्ष 2026 विधानसभा चुनाव से पहले बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की घोषणा के बाद से राज्य के मतुआ बहुल क्षेत्र में चिंता और दहशत का माहौल है। भाजपा और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस दोनों को शरणार्थियों के इस गढ़ में SIR के तहत बड़े पैमाने पर लोगों के मताधिकार से वंचित होने की आशंका है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
मतुआ बाहुल क्षेत्र में SIR से चिंता
बांग्लादेश की सीमा से लगे सीमावर्ती जिलों विशेषकर उत्तर 24 परगना, नदिया और दक्षिण 24 परगना की 40 से अधिक विधानसभा सीटों पर हिंदू शरणार्थी समुदाय मतुआ की निर्णायक उपस्थिति है। निर्वाचन आयोग द्वारा 2002 के बाद से पहली बार फर्जी, मृत तथा अपात्र मतदाताओं को सूची से बाहर करने के लिए एसआइआर कराए जाने के निर्णय ने समुदाय के बीच पहचान एवं नागरिकता को लेकर चिंताएं पैदा कर दी हैं।
जिन लोगों के नाम 2002 की मतदाता सूची में नहीं हैं, उन्हें अब पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज देने होंगे। लेकिन दशकों से बांग्लादेश से विस्थापित मतुआ समुदाय के हजारों मतदाताओं के पास वैध दस्तावेज नहीं हैं। इससे न केवल इस समुदाय के लोग बल्कि तृणमूल तथा भाजपा भी बेचैन है।
दस्तावेजों की कमी से मताधिकार का डर
केंद्रीय राज्यमंत्री और उत्तर 24 परगना के बनगांव से सांसद एवं भाजपा की ओर से मतुआ समुदाय के प्रमुख चेहरे शांतनु ठाकुर ने समुदाय के लोगों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश करते हुए कहा कि अगर शरणार्थी मतुआ के नाम हटाए जाते हैं तो चिंता की जरूरत नहीं है। उन्हें नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के तहत भारतीय नागरिकता मिल जाएगी।
दूसरी ओर, उनकी रिश्तेदार एवं तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा सदस्य ममता बाला ठाकुर ने अगले कदमों की रूपरेखा तैयार करने के लिए दो नवंबर को उत्तर 24 परगना जिले के ठाकुरनगर में समुदाय के नेताओं की एक बैठक बुलाई है। भाजपा विधायक सुब्रत ठाकुर ने माना कि 2002 से 2025 के बीच आए लोग दस्तावेज नहीं दिखा पाएंगे।
अनुमान लगाया कि राज्यभर में 30 से 40 लाख शरणार्थी सीएए के तहत पात्र हो सकते हैं। मतुआ महासंघ के महासचिव महितोष बैद्य ने केंद्र और राज्य सरकारों पर शरणार्थी हिंदुओं को भ्रमित और गुमराह करने का आरोप लगाया। |