पटना विश्वविद्यालय  
 
  
 
राज्य ब्यूरो, पटना। राजभवन ने पटना विश्वविद्यालय के कुलपति को छुट्टी पर भेज कर उन पर लगे आरोपों की जांच का निर्णय लिया है।जबतक जांच पूरी नहीं हो जाती, कुलपति को दोषी नहीं कहा जा सकता है। अगर दोष प्रमाणित होता है तो उन्हें पद से भी हटाया जा सकता है। इस साल जनवरी में आरिफ मोहम्मद खान जब राज्यपाल बन कर आए थे तो उन्हें जानने वालों को उम्मीद थी कि विश्वविद्यालयों की स्थिति में सुधार होगा। उन्होंने विश्वविद्यालयों का मुआयना किया। महसूस किया कि इनकी हालत ठीक नहीं है। सुधारना होगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें  
 
नियमित पढ़ाई और समय पर परीक्षा-विश्वविद्यालयों के दो प्रमुख कार्य हैं।पढ़ाई के बारे में तो ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता है।लेकिन, विश्वविद्यालयों के सत्र अब तक नियमित नहीं हुए।राज्य के विश्वविद्यालयों की यह पुरानी बीमारी है। खेदजनक यह है कि इसमें कोई सुधार नहीं हुआ।  
 
असल में कुलाधिपति को बीमारी की जड़ पर प्रहार करना होगा। राज्य के विश्वविद्यालय लंबे समय से कुलपतियों की बहाली को लेकर बदनामी झेल रहे हैं। नियुक्तियों के सिद्धांत रूप में कुछ मानक तय किए गए हैं। लेकिन, व्यवहार में अलग मानकों पर नियुक्तियां होती हैं।  
 
जाति, धर्म, क्षेत्र के अलावा अन्य अघोषित योग्यताओं पर ध्यान दिया जाता है। इस प्रक्रिया से नियुक्ति हुए कुलपतियों का लक्ष्य अगर शैक्षणिक सुधार के अतिरिक्त कुछ रहता है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है।राज्यपाल अगर इसे समझ रहे हैं तो उनसे अपेक्षा की जा सकती है कि अगली नियुक्तियों में इस बीमारी का समुचित उपचार करें। |