दिल्ली में प्रदूषण का हाल जस का तस, सरकारें बदलीं पर नहीं बदली हवा

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दिल्ली में 2025 में भी \“अच्छी\“ हवा का एक भी दिन नहीं मिला, सरकार बदलने पर भी प्रदूषण का स्तर जस का तस है। जागरण



संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी की नियति कहें या फिर प्रदूषण की रोकथाम के हवाहवाई उपायों का नतीजा.. 2024 के बाद 2025 में भी दिल्ली वासियों को एक भी दिन \“\“अच्छी\“\“ (जब एक्यूआइ 50 से नीचे हो) हवा नहीं मिली। विचारणीय यह कि इस साल दिल्ली में सरकार भी बदल गई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

कल तक आप सरकार पर जो भाजपा सवाल खड़े कर रही थी, अब वही सत्ता में है। लेकिन प्रदूषण फिर भी वहीं का वहीं है। यमुना की सफाई को लेकर किए गए दावे भी अभी तक एक आस ही है। पूरी कब होगी, पता नहीं। इसी तरह ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण कभी किसी सरकार की प्राथमिकता में रहा ही नहीं। साल भर यह तय सीमा से ज्यादा रहता है।
वायु प्रदूषण:-

फरवरी के दौरान दिल्ली में नई सरकार का गठन हुआ। पर्यावरण मंत्री भी नए बने। लेकिन वह कृत्रिम वर्षा को ही जादुई छड़ी मानकर चलते रहे। इसी चक्कर में प्रदूषण से जंग के लिए कोई समर एक्शन प्लान तो आया ही नहीं, विंटर एक्शन प्लान भी देरी से जारी हो पाया। लंबी जद्दाेजहद के बाद अक्टूबर में कृत्रिम वर्षा का ट्रायल हो भी गया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। विशेषज्ञों ने इसे पूरी तरह फ्लाप और करोड़ों रुपये की बर्बादी बताया।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने दिल्ली व एनसीआर के लिए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) को और कड़ा कर दिया।अब हवा खराब होने पर पहले चरण में ही अगले चरण के कदम लागू कर दिए जाते हैं। नवंबर के तीसरे सप्ताह में किए गए यह बदलाव तुरंत प्रभाव से लागू कर दिए गए। इसमें मेट्रो बस की सेवाएं बढ़ाने, दफ्तर का समय बदलने और वर्क फ्राम होम की सुविधाओं की बात निर्धारित चरण से पहले लागू करने को कहा गया है। इसके बावजूद हालात काबू में भी नहीं ही आए।
जल प्रदूषण:-

यमुना को स्वच्छ बनाने का काम शुरू, परिणाम का इंतजार

यमुना दिल्ली की जीवनरेखा है, लेकिन पिछले लगभग 30 वर्षों से अधिक समय से नदी को स्वच्छ व अविरल बनाने का प्रयास ही हो रहा है। पानी का प्रवाह कम होने और हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के शहरों की गंदगी और औद्योगिक अपशिष्ट डाले जाने से यह नाले में बदल जाती है। दिल्ली में यमुना का मात्र दो प्रतिशत हिस्सा इसके कुल प्रदूषण का 79 प्रतिशत भार वहन करता है। तीन यमुना एक्शन प्लान बनाने के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं है। छठ पूजा में हरियाणा के हथिनी कुंड बैराज से अधिक पानी छोड़ने से कुछ दिनों तक नदी साफ रही। उसके बाद फिर से प्रदूषण के कारण कालिंदी कुंज के पास जहरीला झाग तैर रहा है।

रेखा गुप्ता सरकार ने केंद्र सरकार के सहयोग से नदी को वर्ष 2029 तक साफ रखने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिए 45 सूत्री कार्य योजना तैयार की है। इसमें ड्रेन प्रबंधन, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, सीवरेज प्रबंधन, पुराने एसटीपी के उन्नयन और नए एसटीपी व डीएसटीपी का निर्माण, पारिस्थितिकी प्रवाह बढ़ाना, डूब क्षेत्र से अतिक्रमण हटाना, नदी के तटों का विकास व रिवर फ्रंट का निर्माण शामिल है। इस पर अनुमानित खर्च 10,087 करोड़ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री नदी की सफाई कार्य की समीक्षा बैठक कर चुके हैं। इस दिशा में जमीनी स्तर पर काम शुरू कर दिया गया है पर परिणाम सामने आने का इंतजार ही है।
ध्वनि प्रदूषण:-

दिल्ली के लोगों का सुकून छीन रहा ध्वनि प्रदूषण, मानक से ज्यादा हो रहा शोर

दिल्ली में भी ध्वनि प्रदूषण लोगों का सुकून छीन रहा है। ध्वनि प्रदूषण का मानक दिन में 55 डेसिबल और रात में 45 डेसिबल है, लेकिन दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की वेबसाइट के आंकड़े को देखें तो दिल्ली में औसत से ज्यादा शोर हो रहा है। दिन में दिल्ली के कई इलाकों में 80 डेसिबल और रात में 70 डेसिबल तक शोर हो रहा है।

डीपीसीसी की ओर से दिल्ली में 26 स्थान पर रोजाना ध्वनि प्रदूषण नापा जाता है। रोजाना इसका आंकड़ा भी जारी होता है। आंकड़े देखें तो दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण औसत से ज्यादा है। करोल बाग इलाके में ध्वनि प्रदूषण सबसे ज्यादा रहता है। यहां भीड़भाड़ और वाहनों का दबाव ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है। वहीं, कनाट प्लेस में रात के वक्त ध्वनि प्रदूषण हो रहा है जिसके पीछे की वजह यहां पर क्लबों में तेज आवाज में डीजे बजता है और दिन में भीड़भाड़ भी रहती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली की सड़कों पर वाहनों का दबाव ज्यादा होता है। जाम की स्थिति में लोग हार्न बजाते हैं। बाजारों में भी विभिन्न तरीके का शोर होता रहता है। अशोक विहार, पूठ खुर्द बवाना, रोहिणी और मंदिर मार्ग भी ध्वनि प्रदूषण के हाट स्पाट में से हैं, जहां औसत डेसिबल का स्तर बहुत ज्यादा दर्ज किया जाता है। इस साल दीवाली पर तो तीन साल का रिकार्ड टूट गया।
दिल्ली को बदलना होगा प्रदूषण से लड़ने का तरीका

दिल्ली की हवा 2025 में एक बार फिर हमारे फेफड़ों पर भारी पड़ी है। रोज़ के आंकड़े बताते हैं कि पूरे साल का औसत पीएम 2.5 करीब 92 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा (19 दिसंबर 2025 तक), जो हमारे तय मानकों से कई गुना ज्यादा है। अक्सर यह भ्रम बना दिया जाता है कि प्रदूषण सिर्फ सर्दियों की समस्या है, जबकि सच यह है कि दिल्ली और इलाक़े की हवा साल भर गंदी रहती है; फर्क सिर्फ इतना है कि सर्दियों में यह खतरनाक स्तर तक पहुंचकर दिखने लगती है और मानसून की वर्षा के कुछ माह को छोड़ दें तो लोगों को कभी असली राहत नहीं मिलती।


साल के कुछ महीनों में हवा तेज चलने और वर्षा होने से प्रदूषण कुछ दिनों के लिए कम हो जाता है, लेकिन यह राहत भी आधी‑ अधूरी है, क्योंकि वर्षा के बाद भी वायु प्रदूषण का स्तर शायद ही कभी भारतीय मानकों को छू पता है।

नीतियों की तस्वीर और उलझी हुई दिखती है। एक तरफ कोयला आधारित बिजलीघरों के लिए प्रदूषण मानकों को ढीला किया गया, जिससे आने वाले सालों में वायु प्रदूषण का बोझ कम होने के बजाय बढ़ने का खतरा है। दूसरी तरफ, पुराने वाहनों पर लगी रोक हटने से फिर वही पुराने, ज़्यादा धुआं छोड़ने वाले वाहन सड़कों पर लौटने की राह पर था हालांकि दिसंबर में दिल्ली में बीएस छह से कम वाली गाड़ियों के प्रवेश पर रोक और चल रहे इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने की घोषणा की गई, जो अच्छे कदम हैं, लेकिन जब तक कुल उत्सर्जन घटाने के इन साफ और कठोर पैमानों पर सभी को कस कर नहीं परखा जाएगा, तब तक दिल्ली की हवा में स्थायी सुधार सिर्फ कागज़ों और प्रेस कान्फ़्रेंस तक ही सीमित रहने का खतरा बना रहेगा।

-सुनील दहिया, संस्थापक और प्रमुख विश्लेषक, एनवायरकैटालिस्ट्स


राजधानी में प्रदूषण का एक जनवरी से 21 दिसंबर तक का आंकलन (दिन)

    श्रेणी 2016 2017 2018 2019 2020 2021 2022 2023 2024 2025
   
   
   संतोषजनक से मध्यम
   110
   151
   159
   182
   227
   197
   163
   206
   207
   200
   
   
   खराब से गंभीर
   236
   206
   198
   175
   131
   160
   194
   151
   151
   152
  
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