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भारत के सबसे गरीब राज्य को नीतीश कुमार ने ‘जंगल राज’ से कैसे बाहर निकाला?

deltin33 2025-11-27 14:07:10 views 259

  

नीतीश कुमार(फाइल फोटो)



डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 202 सीटों पर जीत हासिल की है। इसके बाद नीतीश कुमार 10 वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ भी ले चुकी है। बिहार चुनाव में एनडीए की ये जीत बताती है कि 2005 से लेकर बिहार की जनता का नीतीश कुमार पर भरोसा अब भी बरकरार है।  विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

2005 में जब नीतीश कुमार जब जंगल राज का मुद्दा बनाकर चुनावी मैदान में उतरे थे तब बिहार की जनता को उनमें एक नई उम्मीद दिखी थी। जिसका असर ये हुआ कि 2005 के चुनाव में जदयू को 88 और बीजेपी को 55 सीटों पर जीत मिली। इस चुनाव में मिली बंपर जीत के साथ से ही नीतीश कुमार ने बिहार से जंगल राज के खात्मे की शुरुआत कर दी थी।  
क्या था जंगल राज ?

बिहार में 1990 से 2005 तक लालू यादव और उनके बाद  उनकी पत्नी राबड़ी देवी के राज में को जंगल राज का दौर कहा जाता है। उस दौर में बिहार में सरकार के गिरने और समाज के टूटने के इतिहास का एक काला अध्याय था। तब बिहार की पहचान जाति-आधारित प्राइवेट सेनाओं द्वारा किए गए नरसंहारों से की जाती थी, जैसे बारा (1992) और लक्ष्मणपुर बाथे (1997)।  
अटल बिहारी वाजपेयी जंगल राज को कैसे देखते थे?

1998 से 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने लालू और राबड़ी देवी के जंगल राज पर तंज कसते हुए कहा था कि ये घटनाएं देश के लिए शर्म की बात थी और देश के अंदर एक नाकाम सरकार थीं।

2003 में, पटना में एक सभा को संबोधित करते हुए, अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि, “बिहार में जंगल राज चल रहा है… यह सिर्फ बिहार का नहीं, पूरे देश का सवाल है”।

अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर राबड़ी देवी सरकार पर अपराधियों को बचाने और संस्थाओं को बर्बाद करने का आरोप लगाते थे।
नीतीश कुमार ने बिहार को जंगल राज से कैसे बाहर निकाला?

2005 में जब नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री का पद संभाला तो उन्हें बिहार के साथ ‘जंगल राज’ वाला टैग विरासत में मिला था। सत्ता में आते ही नीतीश कुमार ने सबसे पहले राज्य के कानून और व्यवस्था को ठीक किया। इसके लिए नीतीश कुमार ने फास्ट-ट्रैक कोर्ट बनाए, जिससे 2005 से 2010 के बीच 100,000 से ज्यादा अपराधियों को सजा हुई, जबकि इससे पहले के 15 साल में सिर्फ 20,000 अपराधियों को सजा हुई थी।

उन्होंने पुलिस विभाग में लगभग 70,000 नए कर्मचारियों की भर्ती करके फोर्स को दोगुना किया। साथ ही हथियारों को अपग्रेड करके, सैलरी बढ़ाकर और राज्य में 1,000 से ज्यादा नए पुलिस स्टेशन बनाकर पुलिस सिस्टम में बड़ा बदलाव किया।

जिसका असर ये हुआ कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के डेटा के मुताबिक, फिरौती के लिए किडनैपिंग 2004 में 411 से घटकर 2010 में 66 हो गई, और मर्डर रेट 11.4 से घटकर 6.2 प्रति 100,000 लोगों पर हो गया। बिहार में धीरी-धीरे इंडस्ट्रियलिस्ट, टीचर और डॉक्टर लौटने लगे।
सड़कें, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का निर्माण

सरकार में आते ही नीतीश कुमार ने रोड इंफ्रास्ट्रक्चर पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया। बिहार रोड कंस्ट्रक्शन डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य और केंद्र सरकार की अलग-अलग स्कीमों के जरिए उन्होंने 2005 से 2015 के बीच 50,000 किलोमीटर से ज्यादा हर मौसम में चलने वाली पक्की सड़कें बनाई। साथ ही 500 से ज्यादा आबादी वाले हर गांव को पक्की सड़क से जोड़ा।
बिजली

2005 से पहले बिहार बिजली किसी सपने की तरह हो गया। गांव तो छोड़िए शहरों में भी मुश्किल से 3-4 घंटे ही बिजली आती थी। नीतीश कुमार ने सत्ता में आते ही हर गांव तक बिजली पहुंचाने का काम किया। 2005 में जहां प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 70 kWh थी 2015 तक चार गुना बढ़कर 300 kWh से ज्यादा हो गई।
शिक्षा

नीतीश कुमार जब सत्ता में आए तो उस दौर में बिहार में चरवाहा विद्यालय हुआ करता था। बिहार की शिक्षा व्यवस्था को बदलने के लिए नीतीश कुमार नए स्कूल भवन बनाए साथ ही नए शिक्षकों की भी भर्ती की गई। इसके अलावा लड़कियों को स्कूल में पढ़ने के लिए साइकिल योजना की भी शुरुआत की।
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