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यमुना प्रदूषण पर नाराज HC ने कहा- नौकरशाहों के चक्रव्यूह में फंसी है सरकार, ऐसा ही रहा तो खत्म कर देंगे DSIIDC

cy520520 2025-11-27 02:06:29 views 651

  



जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। यमुना प्रदूषण के मुद्दे के प्रति निष्क्रियता को देखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए दिल्ली सरकार को जमकर फटकार लगाई है। योजना पर योजना बनाने के बावजूद भी जमीनी स्तर पर इसे अंतिम रूप नहीं दे पाने पर अदालत ने सख्त नाराजगी व्यक्त की है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
जाल में फंस रही

अदालत ने दिल्ली सरकार पर गंभीर सवाल उठाते हुए टिप्पणी की कि सरकार नौकरशाहों के चक्रव्यूह में फंसी हुई है और अदालत भी इनके जाल में फंस रही है। शनिवार को सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह व न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने चेतावनी दी कि अदालत बस यही कहेगी कि अगर यह इसी तरह चलेगा तो दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कार्पोरेशन (डीएसआईआईडीसी)को खत्म कर दें।
रिपोर्टें दो साल बाद आईं

अदालत ने यह टिप्पणी यमुना प्रदूषण से जुड़े मामले में डीएसआईआईडीसी, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) और दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) द्वारा दायर स्थिति रिपोर्ट पर गौर किया। पीठ ने नोट किया कि कैबिनेट का निर्णय तो साल 2023 में लिया गया था, लेकिन डीएसआईआईडीसी की रिपोर्टें दो साल बाद आईं।

अदालत ने इसे हैरान कर देने वाली स्थिति बताते हुए यमुना जल प्रदूषण के मुद्दे पर डीएसआईआईडीसी, नगर निगम दिल्ली (एमसीडी) और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के अधिकारियों की तीन सदस्यीय समिति गठित की।
योजना पर कोई कार्रवाई नहीं की

अदालत ने टिप्पणी कि डीएसआईआईडीसी की किसी भी सलाहकार की किसी भी योजना को अंतिम रूप नहीं दिया गया है, कोई भी योजना प्रस्तुत नहीं की गई है और न ही योजना पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

अदालत ने यह भी कहा कि 2.5 करोड़ अटके हुए हैं और मिनट्स में कोई समय सीमा नहीं है। इन सभी 27 इलाकों में कोई काम नहीं हो रहा है, इसलिए इतनी प्रदूषण है और यह हैरान करने वाला है।

अदालत ने डीएसआईआईडीसी को निर्देश दिया कि वह दो सप्ताह के भीतर एमसीडी को 2.5 करोड़ का भुगतान जारी करे। अदालत ने कहा कि इस दो करोड़ के लिए देखिए कि तीन करोड़ लोग इस हवा और पानी से कितना प्रभावित हो रहे हैं।
संयुक्त रूप से की जाए जांच

अदालत ने निर्देश दिया कि पेश की गई ले-आउट योजनाओं की जांच डीएसआइआइडीसी, एमसीडी और डीडीए द्वारा संयुक्त रूप से की जाए। अदालत ने कहा कि एक तीन दस्यीय टीम होगी जो बैठकों में लेआउट योजनाओं की जांच करेगी, अनुमोदन प्राप्त करेगी और फिर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
सीईटीपी में विभिन्न खामियां

डीपीसीसी की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा कि सीईटीपी में विभिन्न कमियां हैं और यह स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। अदालत ने कहा कि शोधित पानी पार्कों और घास के मैदानों में जाने की बजाय फिर से सीवेज सिस्टम और यमुना में जा रहा है और इससे पूरा उद्देश्य ही विफल हो रहा है। पीठ ने कहा कि सुनिश्चित करें कि पाइपलाइन इस तरह बिछाई जाएं कि शुद्ध पानी वहीं जाए।
डीजेबी बताए किए जा रहे कार्य

डीजेबी की स्थिति रिपोर्ट पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा कि पहला मुद्दा यह है कि क्या सीवेज को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) द्वारा शुद्ध किया जा रहा है। दूसरा मुद्दा यह है कि शुद्ध करने के बाद यह नाले में चला जाता है और अप्राकृतिक पानी के साथ मिल जाता है।

अदालत ने डीजेबी को रिपोर्ट दाखिल कर यह बताने को कहा कि एसटीपी को बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए गए और शेष एसटीपी के लिए ऐसे क्या कदम उठाए जाएं जिससे पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित हो और कमियां दूर की जा सकें।

यह भी पढ़ें- दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय हथियार तस्करी का भंडाफोड़, चीन-तुर्किये में बने पिस्टल पाकिस्तान से भेजे जा रहे थे भारत
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