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पहले नौकरी का झांसा, फिर जंगल में कर लेते हैं कैद! थाइलैंड से म्यांमार तक चीन के सिंडिकेट का खौफनाक खेल

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म्यांमार से डिपोर्ट किए गए सचिन ने बयान की खौफनाक कहानी। जागरण



विनय त्रिवेदी, गुरुग्राम। चाइनीज सिंडिकेट द्वारा भारत के युवाओं को नौकरी देने के बहाने थाइलैंड के बैंकाक बुलाकर वहां से जंगलों के रास्ते उनकी म्यांमार में अवैध घुसपैठ कराई जाती थी। पांच सौ किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करने में गिरोह के लोग 20 से ज्यादा गाड़ियों का इस्तेमाल करते थे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

बैंकाक से म्यांमार तक पहुंचने में तीन दिन और दो रातों का समय लगता था। इस दाैरान लोगों को घने जंगलों में रुकवाया जाता था। गिरोह के लोगों के पास हथियार भी होते थे, ताकि कोई युवा उनके चंगुल से भाग न सकें। बीते दिनों म्यांमार सेना की तरफ से छह, 10, 18 और 19 नवंबर को चार बार में एक हजार से ज्यादा लोगों को भारत डिपोर्ट किया गया। इनमें से डिपोर्ट किए गए गुरुग्राम के एक पीड़ित युवक ने दैनिक जागरण के साथ अपनी आपबीती साझा की।

पटौदी के भोड़ाकला गांव में रहने वाले 20 वर्षीय सचिन ने बताया कि उन्होंने इसी साल बीए पास किया था। वह नौकरी की तलाश कर रहे थे। सितंबर के महीने में उन्होंने अपने बड़े भाई के माध्यम से उनके मित्र योगेश से संपर्क किया। योगेश उस समय थाइलैंड में था। उसने कहा कि वह थाइलैंड में नौकरी लगवा देगा। इसके बाद योगेश ने एक साथी के बारे में जानकारी दी और उसकी टेलीग्राम आईडी बताई।

यह आईडी लूकस के नाम से थी। लूकस वही एजेंट था, जिसे गुरुग्राम साइबर पुलिस ने बीते दिनों पकड़ा था। इसका असली नाम संदीप कुमार है। संदीप ने टेलीग्राम पर ही बातचीत की और सचिन से इंटरव्यू के नाम पर एक वीडियो मंगवाया। इसमें कहा गया कि उसे अपने बारे में अंग्रेजी में इंट्रोडक्शन देना है।

उसे डाटा एंट्री की जाॅब और 80 हजार रुपये सैलरी मिलने के बारे में बताया गया। बातचीत होने के बाद सचिन से थाइलैंड की हवाई टिकट के लिए 20 हजार रुपये ट्रांसफर कराए गए। सचिन ने बताया कि जब वह 14 अक्टूबर को बैंकाक पहुंचे तो योगेश और संदीप वहां मिले।

दोनों ने एक अन्य गाड़ी में उन्हें बिठाया। उसमें तीन और युवा शामिल थे जो भारत से ही गए थे। ये लोग जंगल के रास्ते करीब 50 किलोमीटर तक लेकर गए। यहां से उन्हें एक अन्य गाड़ी में बिठाया गया। वह तीन दिन तक जंगल के रास्ते ही चलते थे।

इस दौरान गिरोह के लोगों ने करीब 20 गाड़ियां बदलीं। दो रात घने जंगलों में ही रुकना पड़ा। इस दौरान उनके मन में भी कई बुरे ख्याल आए और भागने की भी सोची। लेकिन गिरोह के लोगों के पास हथियार होने से वह डर के कारण नहीं भाग सके।
एक साल से पहले नौकरी छोड़ने पर मांगते हैं लाखों रुपये

सचिन ने बताया कि बैंकाक और म्यांमार सीमा पर उन्हें एक नदी पार कराई गई। सीमा में घुसपैठ के साथ ही गिरोह के दूसरे लोग उन्हें वहां से लेकर म्यावाड़ी के केके पार्क पहुंचे। यहां एक रूम में रखा गया। कुछ पेज का बांड साइन कराने के लिए कहा गया।

इस दौरान जब उन्होंने पढ़ा तो पता चला कि एक साल से पहले काॅल सेंटर छोड़ने पर सात लाख रुपये जमा करने होंगे। यहीं उन्हें यह भी पता चला कि उन्हें साइबर ठगी करने वाले काॅल सेंटर में काम कराया जाएगा। सचिन ने बताया कि उनके जैसे सैकड़ों युवा वहां काम कर रहे थे। सभी को डरा धमकाकर काम कराया जाता है। यह एक तरीके से मानव तस्करी जैसा है।
कर्ज लेकर परिवार ने भेजे चार लाख

सचिन ने बताया कि जब उन्होंने काम से इनकार कर दिया तो उनसे चार हजार डालर यानी करीब चार लाख रुपए मांगे गए। जान के डर से उन्होंने परिवार को यह बात बताई। परिवार में पिता श्रमिक का काम करते हैं। पैसे न होने से पिता ने सूदखोरों से ब्याज पर चार लाख रुपये लेकर गिरोह द्वारा दिए गए बैंक खातों में ट्रांसफर किए। इसके बाद गिरोह के लोगों ने उन्हें म्यांमार सीमा के पास छोड़ दिया। यहां से उन्हें सेना ने पकड़ लिया और भारत डिपोर्ट कर दिया।
एआई से बनवाते थे युवतियों के फोटो

गुरुग्राम साइबर पुलिस ने इस मामले में दो आरोपियों संदीप कुमार और मुकुल को रविवार को हिसार से गिरफ्तार किया था। इन दाेनों को भी म्यांमार से डिपोर्ट किया गया था। इनसे रिमांड पर पूछताछ जारी है। पता चला है कि चाइनीज सिंडिकेट के लोग एजेंटों की पहचान न हो, इसलिए उन्हें चाइनीज नाम दे देते हैं।

पूछताछ में यह भी पता चला कि गिरोह के लोग एआई से युवतियों की फोटो बनाकर लोगों को दोस्ती का आफर देकर जाल में फंसाते थे। इसके बाद निवेश के नाम पर उनसे लाखों रुपये ट्रांसफर कराए जाते थे। पकड़े गए दोनों आरोपितों के मोबाइल फाेन में सैकड़ों ऐसी युवतियों के फाटो और वीडियो पाए गए, जिन्हे एआई से बनाया गया था।

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