जागरण संवाददाता, देहरादून। उत्तराखंड में रोजाना करीब 1800 टन कचरा निकलता है। लेकिन, बड़े हिस्से में इसके उठान और निस्तारण की प्रक्रिया सवालों के घेरे में है। कचरे की यह चुनौती दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर और स्पैक्स की ओर से ‘द देहरादून डायलाग’ के अंतर्गत आयोजित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर तीसरे व्याख्यान में उठाई गई। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
व्याख्यान में वेस्ट वारियर्स सोसाइटी के प्रतिनिधि के रूप में मयंक शर्मा और नवीन कुमार सडाना ने कहा कि भारत में रोजाना लगभग 1.6 लाख टन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न करता है। इसमें से केवल 60 प्रतिशत कचरा ही संग्रहित होता है। वहीं, सिर्फ 20-25 प्रतिशत कचरे का ही संसाधन/प्रसंस्करण हो पाता है। उन्होंने चेतावनी दी कि इतनी विशाल मात्रा में अनियंत्रित कचरा भविष्य में बड़े पर्यावरण व स्वास्थ्य संकट को जन्म देगा।
इसके अलावा पर्यावरण संरक्षण से जुड़े व्यक्तियों ने कहा किउत्तराखंड प्रतिदिन 1,600 से 1,800 टन कचरा उत्पन्न होता है।
पर्वतीय भूगोल, सीमित भूमि, कठिन परिवहन, मौसम और पर्यटन दबाव के कारण यहां ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और चुनौतीपूर्ण हो जाता है। कहा गया कि पर्वतीय शहरों में विरासत कचरा (लीगेसी वेस्ट), प्लास्टिक लोड और लैंडफिल पर बढ़ती निर्भरता तुरंत हस्तक्षेप की मांग करती है। कार्यक्रम में चंद्रशेखर तिवारी, हरी राज सिंह, रानू बिष्ट, डा विजय गंभीर, डा बृज मोहन शर्मा, बलेन्दु जोशी, राम तीरथ मौर्या, डा यशपाल सिंह के साथ ही फूलचंद नारी शिल्प इंटर कॉलेज, माया देवी यूनिवर्सिटी, पीपुल्स साइंस इंस्टिट्यूट के छात्र–छात्राओं के साथ दून के नागरिकभी उपस्थित रहे।
कचरा कम करने और पृथक्करण पर बल
वक्ताओं ने कहा कि यदि घरों, संस्थानों और बाजार में 100 प्रतिशत स्रोत-स्तर पर कचरा पृथक्करण लागू हो जाए, तो राज्य का लगभग 40-50 प्रतिष्ठा कचरा स्थानीय स्तर पर ही निपट सकता है।
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