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Kaal Bhairav Jayanti 2025 Katha: कालभैरव जयंती के दिन करें इस कथा का पाठ, पूजा होगी सफल

LHC0088 2025-11-12 11:06:42 views 929

  

Kaal Bhairav Jayanti Katha: कालभैरव अवतरण की महागाथा



दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। भक्ति, अनुशासन और भय-रहित जीवन का प्रतीक भगवान कालभैरव की जयंती आज यानी 12 नवंबर 2025, बुधवार (Kaal Bhairav Jayanti 2025) को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जा रही है। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव के क्रोधाग्नि से प्रकट हुए कालभैरव देव ने ब्रह्मांड में संतुलन और न्याय की स्थापना की थी। यह पावन तिथि साधना, आत्मसंयम और धर्मपालन की प्रेरणा देती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान कालभैरव की आराधना से भय, रोग और संकटों से मुक्ति मिलती है तथा जीवन में साहस और स्थिरता का संचार होता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

  
कालभैरव अवतरण की कथा


पौराणिक कथाओं (Kaal Bhairav Jayanti Katha) में वर्णन मिलता है कि एक बार सभी देवताओं के बीच यह चर्चा हुई कि त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं। इस प्रश्न पर जब मतभेद उत्पन्न हुआ, तब ब्रह्मा जी ने स्वयं को सर्वोच्च बताया और अहंकारवश भगवान शिव के प्रति कुछ अपमानजनक वचन कहने लगे। उनके इन वचनों से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे और भगवान शिव के तीसरे नेत्र से प्रचंड अग्नि प्रकट हुई जिससे भगवान कालभैरव का जन्म हुआ।

भगवान कालभैरव के जन्म ब्रह्मा जी के अहंकार का विनाश और सृष्टि में संतुलन की पुनर्स्थापना के लिए हुआ था। कहा जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने शिवजी के विरोध में अपना क्रोध व्यक्त किया, तब कालभैरव ने अपने त्रिशूल से उनके पांच में से एक सिर को धड़ से अलग कर दिया। इस घटना के बाद ब्रह्मांड में भय और श्रद्धा का अद्भुत संतुलन स्थापित हुआ। जिस दिन भगवान कालभैरव प्रकट हुए, वह दिन मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी, और तभी से यह दिन कालभैरव जयंती के रूप में श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है।
काशी नगरी के रक्षक


शिवपुराण के अनुसार, जब भगवान शिव (Kaal Bhairav Katha) ने काशी को मोक्षभूमि घोषित किया, तब उसकी रक्षा का उत्तरदायित्व उन्होंने भगवान कालभैरव को सौंपा। तभी से वे काशी के कोतवाल यानी रक्षक माने जाते हैं। मान्यता है कि बिना कालभैरव देव के दर्शन किए काशी यात्रा अधूरी रहती है। श्रद्धालु पहले कालभैरव मंदिर में दर्शन करते हैं, उसके बाद काशी विश्वनाथ और अन्नपूर्णा माता के दर्शन करते हैं। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाती है कि मोक्ष की नगरी में प्रवेश से पूर्व भय और अहंकार का त्याग आवश्यक है।
भक्ति और साधना का संदेश


भगवान कालभैरव भक्ति, अनुशासन और समय की मर्यादा के प्रतीक हैं। उनकी आराधना से व्यक्ति अपने भीतर की नकारात्मकता, भय और अहंकार पर विजय प्राप्त करता है। कार्तिक कृष्ण अष्टमी के दिन कालभैरव चालीसा, कालाष्टक स्तोत्र या महामृत्युंजय मंत्र का जप अत्यंत शुभ माना गया है। भक्तों का विश्वास है कि जो व्यक्ति सत्य, संयम और सेवा के मार्ग पर चलता है, उस पर कालभैरव देव की कृपा सदैव बनी रहती है। उनकी उपासना जीवन में साहस, आत्मबल और धर्म की रक्षा की प्रेरणा देती है।

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लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।
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