सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को निर्देश
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी के \“ग्रीन लंग्स\“ की रक्षा करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को दिल्ली रिज मैनेजमेंट बोर्ड (डीआरएमबी) को वैधानिक दर्जा देने और इसे रिज व मार्फोलाजिकल रिज से संबंधित सभी मामलों के लिए एकल-खिड़की प्राधिकारी बनाने का निर्देश दिया। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
मार्फोलाजिकल रिज, रिज क्षेत्र का वह हिस्सा होता है जिसमें रिज जैसी विशेषताएं होती हैं, लेकिन यह अधिसूचित वन क्षेत्र नहीं होता। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने लंबे समय से चल रहे पर्यावरण से जुड़े टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत सरकार मामले में यह फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को निर्देश
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि कानूनी सुरक्षा और प्रभावी शासन के बिना रिज की पारिस्थितिक अखंडता गंभीर रूप से खतरे में पड़ जाएगी। पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए जस्टिस गवई ने तीन मुद्दों पर बात की।
इनमें वन अधिनियम के तहत दिल्ली रिज की अंतिम अधिसूचना जारी करना और नौ मई, 1996 से दिल्ली रिज और मार्फोलाजिकल रिज पर हुए अतिक्रमण को हटाना शामिल है। तीसरा मुद्दा मार्फोलाजिकल रिज की पहचान करना है। अदालत ने पिछले तीन दशकों में बार-बार न्यायिक निर्देशों के बावजूद रिज की रक्षा करने में तेजी की कमी के लिए दिल्ली सरकार की कड़ी आलोचना की।
रिज मैनेजमेंट बोर्ड को वैधानिक दर्जा
डीडीए के इस तर्क को खारिज करते हुए कि मार्फोलाजिकल रिज का कोई कानूनी आधार नहीं है, पीठ ने कहा कि यह इलाका भी उतना ही महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे बचाने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा-3(3) के तहत औपचारिक रूप से दिल्ली रिज मैनेजमेंट बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया।
फिर से गठित डीआरएमबी में केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों के शीर्ष अधिकारी, शहरी और वन विभागों के वरिष्ठ प्रतिनिधि और दो एनजीओ के सदस्य शामिल होंगे। केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति का एक प्रतिनिधि भी सदस्य होगा, जो समन्वय और जवाबदेही सुनिश्चित करेगा।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ) |