जागरण संवाददाता, कुशीनगर। नाराणी नदी के जिस तट से राकेट के प्रक्षेपण से नवाचार व शोध की चमक पूरे देश को दिखी, अब उसी नदी के तीरे बसे गांवों की गोद में जंगली धान का खजाना भी मिला है। जिसने भविष्य में धान की अनेक नई प्रजातियों के विकास को लेकर संभावनाओं की नई राह खोली है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एनबीपीजीआर (राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो) नई दिल्ली के वरिष्ठ विज्ञानी डा. सुधीर अहलावत व नैनी कृषि संस्थान के प्रोफेसर वैदूर्य प्रताप शाही ने कुशीनगर जनपद में तीन दिन तक सर्वेक्षण किया।
बताया कि सर्वेक्षण में गंडक नदी के किनारे रामपुर बरहन, दरोगाडीह व लक्ष्मीपुर गांवों में धान की प्राचीन किस्में मिलीं हैं। इनमें खेड़ा, सेंगर, भदई आदि प्रजाति शामिल हैं। तरकुलवा व रामकोला क्षेत्र के दोआब में जंगली धान झारन जैसी महत्वपूर्ण प्रजाति पाई गई है।
यह पौष्टिक होने के साथ ही जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपटने तथा धान की नई किस्मों के प्रजनन में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। विज्ञानियों ने बताया कि सर्वेक्षण में उन्होंने धान की अति प्राचीन प्रजातियों की तलाश की। खेड़ा, सेंगर, भदई जैसी प्राचीन धान की प्राजतियों की इस क्षेत्र में बोआई मिलना महत्वपूर्ण तो है ही सबसे महत्वपूर्ण है झारन का मिलना।
यह बाढ़ या किसी भी प्रकार की आपदा में स्वत: फलते हैं, विपरीत जलवायु का असर इनपर नहीं पड़ता है। पौष्टिकता में इसका कोई जवाब नहीं है। कुशीनगर की झारन धान की यह किस्म एनबीपीजीआर नई दिल्ली को दी जाएगी। हजारों वर्ष पुरानी धान की इस किस्म के अनुवांशिक गुणों संग प्रजनन कर इसी प्रकार की धान की नई प्रजाति विकसित की जाएगी, जो किसी भी जलवायु में स्वत: पैदा हो सकेगी।
बताया कि एनबीपीजीआर में वर्तमान में पांच लाख से अधिक जंगली धान की प्रजातियां संरक्षित हैं, उन पर शोध किया जा रहा है। डा. अहलावत व प्रो. शाही ने बताया कि कुशीनगर जिले में धान की जैविक संपदा अत्यंत समृद्ध है।
इनका संरक्षण विज्ञानियों व किसानों के संयुक्त प्रयास से किया जाना चाहिए। इससे किसानों की आर्थिक दशा तो बदलेगी ही यहां की आर्थिकी भी नया रूप लेगी। एनबीपीजीआर का मुख्य कार्य इसी प्रकार के प्राचीन किस्मों की तलाश, संवर्द्धन करना है। उसी के तहत कुशीनगर का सर्वेक्षण किया गया। |