जागरण संवाददाता, आगरा। आगरा से लखनऊ के मध्य 302 किमी लंबे लखनऊ एक्सप्रेसवे पर रात को सफर सुरक्षित नहीं है। एक्सप्रेसवे पर रात 12 बजे से सुबह आठ बजे तक हुए हादसों में 70 प्रतिशत मौतें हुई हैं।
रात में एक्सप्रेसवे रफ्तार के बजाय मौत का रास्ता बन जाता है। उप्र एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण यूपीडा द्वारा अधिवक्ता केसी जैन को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से यह स्थिति सामने आई है।
यूपीडा के अनुसार, इस वर्ष जनवरी से सितंबर तक एक्सप्रेसवे पर 1077 हादसे हुए, जिनमें से 583 हादसे रात में और 494 हादसे दिन में हुए। रात में 54 प्रतिशत और दिन में 46 प्रतिश्ता हादसे हुए। रात में हुए हादसों में मृत्यु दर, दिन के हादसों की मृत्यु दर से कहीं अधिक रही। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
रात में हुए हादसों में 66 और दिन में हुए हादसों में 28 मौतें हुईं। यमुना एक्सप्रेसवे पर भी रात का सफर सुरक्षित नहीं है। आइआइटी, दिल्ली ने 29 अप्रैल, 2019 को रोड सेफ्टी आडिट रिपोर्ट में आगाह किया था कि रात 12 बजे से सुबह छह बजे के बीच यमुना एक्सप्रेसवे पर अधिक घात हादसे होते हैं।
दिसंबर, 2012 से अगस्त, 2018 के मध्य यमुना एक्सप्रसेवे पर 272 जानलेवा हादसों में से 170 रात 12 से सुबह छह बजे के मध्य हुए। यह कुल हादसों का 63.23 प्रतिशत है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार रात 12 से तीन बजे के बीच 5.1 प्रतिशत हादसे और रात तीन बजे से सुबह छह बजे के मध्य 4.7 प्रतिशत हादसे हुए। देश में यह समय अपेक्षाकृत सुरक्षित पाया गया, लेकिन एक्सप्रेसवे पर यही समय सबसे जानलेवा साबित हो रहा है।
जनवरी से सितंबर तक लखनऊ एक्सप्रेसवे के आंकड़े (वर्ष 2025)
| कारण | कुल मौतें | रात 12 से सुबह आठ बजे के मध्य मौतें | प्रतिशत | | नींद या झपकी | 42 | 38 | 85.7 प्रतिशत | | ओपरस्पीडिंग | 21 | 13 | 61.9 प्रतिशत | | अन्य कारण | 27 | 15 | 55.5 प्रतिशत | | कुल | 94 | 66 | 70.21 प्रतिशत |
रात के सफर में मौत अधिक होने के कारण
- लंबे सफर में थकान से चालक नींद की गिरफ्त में आ जाते हैं।
- रात में ट्रैफिक कम होने से लोग 140-150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ी चलाते हैं।
- धीमे और तेज वाहन एक ही लेन में चलते हैं, जिससे दुर्घटना का जोखिम बढ़ता है।
- एक्सप्रेसवे पर रुकने, सोने या चाय पीने के लिए कोई सस्ती जगह नहीं है।
- खराब रोशनी और हाई-बीम का दुरुपयोग भी हादसों को बढ़ाता है।
- लंबा एकसार रास्ता होने से एकाग्रता कम होती है।
- सड़क पर पर्याप्त चेतावनी संकेतों की कमी है।
हादसे रोकने को उठाए जाएं यह कदम
- रात आठ बजे से सबह आठ बजे तक कारों के लिए गति सीमा 120 किमी प्रति घंटा से घटाकर 75 किमी प्रति घंटा की जाए।
- ड्राइवरों के रुकने की सुरक्षित व निश्शुल्क व्यवस्था हो। सरकार पेट्रो पंपों, जनसुविधाओं और टोल प्लाजा के पास निश्शुल्क डारमेटरी व विश्राम स्थल उपलब्ध कराए।
- रात में सरकार एक्सप्रेसवे पर सस्ती चाय व भोजन की सुविधा उपलब्ध कराए। सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से पांच रुपये में चाय और 20 रुपये में भोजन उपलब्ध कराया जाए।
- हर टोल प्लाजा व जनसुविधा केंद्र पर चमकते डिजिटल बोर्ड लगाएं जाएं, जिन पर रात की नींद, मौत की नींद न बने लिखा जाए।
- यूपीडा हर माह एक्सप्रेसवे पर होने वाले हादसों की रिपोर्ट व जांच परिणाम वेबसाइट पर सार्वजनिक करे, जिससे पारदर्शिता व जवाबदेही बनी रहे।
रात में एक्सप्रेसवे पर जो हो रहा है, वह सड़क हादसे नहीं, नींद व लापरवाही से हुई हत्याएं हैं। रात में गाड़ियों की रफ्तार 140 प्रति किमी घंटा पहुंच जाती है। हादसों के आंकड़ों का नियमित विश्लेषण कर उनके आधार पर आवश्यक पहल की जाए। अन्यथा एक्सप्रेसवे, एक्सप्रेस डेथवे कहलाने लगेगा।
-केसी जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता |
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