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ट्रंप को लगेगा 100 अरब डॉलर का झटका? टैरिफ नीति पर सुप्रीम सुनवाई कल; क्यों अहम है ये मामला?

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डोनल्ड ट्रंप. अमेरिका के राष्ट्रपति। (फोटो- रॉयटर्स)



जेएनएन, नई दिल्ली। अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट बुधवार से सुनवाई शुरू करेगी कि क्या राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया के तमाम देशों पर पारस्परिक शुल्क लगाने के लिए इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनोमिक पावर्स एक्ट (आइईईपीए) के तहत दी गई शक्तियों की सीमा लांघी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

अगर ट्रंप प्रशासन कोर्ट में यह केस हार जाता है तो पारस्परिक शुल्क अवैध हो जाएंगे और अमेरिका को आयातकों को करीब 100 अरब डालर रिफंड करने की प्रक्रिया शुरू करनी होगी। आइये जानते हैं सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई कितनी अहम है और वैश्विक व्यापार को यह कैसे प्रभावित कर सकता है।
ट्रंप प्रशासन ने पारस्परिक शुल्क को बनाया हथियार

डोनाल्ड ट्रंप ने दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद पारस्परिक शुल्क को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया। उन्होंने उन देशों पर भारी भरकम शुल्क लगा दिया, जिनके साथ अमेरिका का व्यापार घाटा अधिक था या जो देश उनके हिसाब से अपनी नीतियों में बदलाव नहीं कर रहे थे। ट्रंप प्रशासन ने काफी अधिक पारस्परिक शुल्क लगाने की धमकी देकर बहुत से देशों के साथ व्यापार समझौतों को अंतिम रूप दिया है। भारत के साथ व्यापार समझौते पर अमेरिका की बातचीत अग्रिम चरण में है।
आयातकों को देना होगा रिफंड

अगर ट्रंप प्रशासन सुप्रीम कोर्ट में केस हार जाता है तो पारस्परिक शुल्क अवैध माने जाएंगे और अमेरिका को अमेरिकी आयातकों को करीब 100 अरब डालर की राशि लौटाने की प्रक्रिया शुरू करनी होगी। अकाउंटिंग फर्म पीडब्ल्यूसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर के अंत तक कुल पारस्परिक शुल्क संग्रह 108 अरब डॉलर रहा है। इसमें चीन की हिस्सेदारी सबसे अधिक 34 अरब डॉलर है। वहीं, भारतीय आयातकों ने 487 मिलियन डालर शुल्क का भुगतान किया है।
देश, अनुमानित शुल्क

  • चीन और हांगकांग- 34.8 अरब डालर
  • मेक्सिको- 6.20 अरब डॉलर
  • कनाडा- 2.19 अरब डालर
  • ब्राजील- 632.37 मिलियन डालर
  • भारत- 487.27 मिलियन डालर
  • जापान- 359.57 मिलियन डालर
  • बाकी सभी देशों पर पारस्परिक शुल्क- 64.95 अरब डालर
  • कुल- 108.01 अरब डालर

निचली अदालतें खारिज कर चकी हैं शुल्क

तीन निचली अदालतें पहले ही ट्रंप प्रशासन के खिलाफ फैसला सुना चुकी हैं। इस मामले की पहली सुनवाई इलिनोइस के उत्तरी जिले के अमेरिकी जिला न्यायालय में हुई थी। न्यायालय ने अप्रैल में सरकार की दलील को खारिज कर दिया था। जून में अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार न्यायालय (सीआइटी) ने भी यह फैसला सुनाया था कि आइईईपीए राष्ट्रपति को सामान्य शुल्क लगाने का अधिकार नहीं देता। संघीय सर्किट के लिए अमेरिकी अपील न्यायालय ने अगस्त में फैसला सुनाया था कि कांग्रेस ने कार्यपालिका को इतने व्यापक अधिकार कभी नहीं सौंपे थे।
व्यापारिक समझौतों पर पड़ेगा असर

दिल्ली स्थित थिंक टैंक जीटीआरआई ने एक रिपोर्ट में कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ट्रंप के आपातकालीन अधिकारों के इस्तेमाल को खारिज कर देता है और पारस्परिक शुल्क वापस लेने के लिए मजबूर करता है, तो इसका असर अमेरिका की सीमाओं से कहीं आगे तक जाएगा।

यह फैसला यूरोपीय संघ, जापान, दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन जैसे प्रमुख साझेदारों के साथ हाल हुए व्यापारिक समझौतों की नींव हिला देगा। ये सभी समझौते इन्हीं शुल्कों के दबाव और पारस्परिक रियायतों पर आधारित हैं। यह व्यापार समझौते पर भारत के साथ चल रही अमेरिका की बातचीत को भी बाधित करेगा। (स्त्रोत: रिसर्च डेस्क)

यह भी पढ़ें: क्या टैरिफ नीति पर ट्रंप को लगेगा झटका? भारतीय मूल के वकील नील कत्याल ने SC में दी राष्ट्रपति को चुनौती
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