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उत्तराखंड सरकार ने जनजातियों को UCC से रखा बाहर, अब क्‍यों चर्चा में आया मामला?

deltin33 2025-10-10 03:06:36 views 141

  

स्वैच्छिक आधार पर विवाह पंजीकरण को लेकर समुदाय के कुछ लोगों ने दिया था प्रत्यावेदन। प्रतीकात्‍मक



राज्य ब्यूरो, जागरण, देहरादून। प्रदेश में जनजातीय समुदाय को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के दायरे में लेने को लेकर अभी सरकार की हिचक बरकरार है। जनजातीय समुदाय के एक प्रतिनिधिमंडल ने इस संबंध में स्वैच्छिक रूप से विवाह पंजीकरण की अनुमति देने के लिए शासन को प्रत्यावेदन दिया था। अभी समान नागरिक संहिता के मौजूदा प्रविधान में यह व्यवस्था नहीं है। साथ ही अनुसूचित जनजातियों के लड़के अथवा लड़की के सामान्य जाति की लड़की अथवा लड़के से विवाह करने पर पंजीकरण की व्यवस्था की गई है लेकिन इससे भविष्य में आने वाली समस्याओं के दृष्टिगत अभी इसे भी नियमावली के दायरे में नहीं रखा गया है।

प्रदेश में समान नागरिक संहिता इसी वर्ष फरवरी से प्रभावी हो चुकी है। संहिता में विवाह के साथ ही तलाक, लिव इन व उत्तराधिकार के पंजीकरण की व्यवस्था की गई है। अनुसूचित जनजातियों को इससे बाहर रखा गया है। प्रदेश में अभी भोटिया, जौनसारी, थारू, बोक्सा व राजी जनजातियां निवास करती हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

इनके अपने विवाह, तलाक व संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर अपनी अलग परंपराएं हैं। समान नागरिक संहिता के दायरे में आने के बाद यह परंपराएं निश्चित रूप से प्रभावित होंगी। इन परंपराओं को सुनिश्चित करने के लिए समान नागरिक संहिता में व्यापक बदलाव करना होगा। साथ ही अभी समान नागरिक संहिता के दायरे में आने के लिए जनजातीय समुदाय में एक राय भी नहीं है। इस विषय की संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार व शासन इस दिशा में जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहता।

यह देखा जा रहा है कि समान नागरिक संहिता के लागू होने के बाद जनजातीय समुदाय को किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं का समाधान यदि समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रहकर भी हो सकता है तो उस पर भी विचार किया जा रहा है।


यह एक वृहद विषय है। जनजातीय समुदाय के कुछ व्यक्तियों ने इस विषय को उठाया है। यह विषय बेहद जटिल है। इस पर विस्तृत चर्चा और प्रदेश के सभी जनजातीय समुदायों से चर्चा के बाद ही इस पर कोई निर्णय लिया जाएगा।
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शैलेश बगौली, सचिव गृह
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