कई विनिंग सीटों पर उम्मीदवार बदल सकता है महागठबंधन
पवन कुमार मिश्र, पटना। विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। ऐसे में राजद, कांग्रेस, भाकपा-माले जैसे घटक दलों वाला महागठबंधन 20 वर्ष से पड़े सूखे को खत्म करने के लिए रणनीति में बदलाव कर रहा है। जिन सीटों पर जो पार्टी या महागठबंधन मजबूत वहां तो मिलकर लड़ेंगे ही, जिन सीटों पर स्थिति कमजोर है, उसे भी समान रूप से बांटा जाएगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इसी क्रम में मंगलवार को घटक दलों के साथ सीट बंटवारे पर हुई बैठक में तेजस्वी प्रसाद व लालू प्रसाद ने इसके संकेत दिए। बैठक से निकली खबरों के अनुसार राजद ने पालीगंज व घोसी जहां भाकपा-माले के विधायक हैं और आरा जहां वे दूसरे नंबर पर रहे थे, उस पर वीटो लगा दिया।
माले की सीट पर राजद की नजर
चर्चा है कि राजद पालीगंज, घोसी व आरा सीट पर अपने प्रत्याशी खड़े करने पर अडिग है। राजद नेताओं-कार्यकर्ताओं के अनुसार प्रदेश में तेजस्वी प्रसाद के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनाने के लिए घटक दलों के प्रत्याशी चयन पर भी नजर रखी जा रही है।
वहीं, राजद के इस निर्णय से भाकपा-माले के नेताओं में आक्रोश देखा जा रहा है। वे घोसी के अलावा कोई अन्य सीट छोड़ने पर राजी नहीं हो रहे हैं। सीट बंटवारे की घोषणा में देरी का यह भी एक कारण है।
बुधवार को भी कई चरणों में महागठबंधन के नेताओं ने बैठक कर सीटों पर सहमति बनाने पर मंथन किया। दोनों दलों के नेताओं का कहना है कि शुक्रवार को पहले चरण के प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी जाएगी।
सीट बंटवारे में सहयोगी दलों के समीकरणों की समीक्षा
प्रदेश की राजनीति में विनिंग सीट का अर्थ अब जातीय समीकरण के बजाय गठबंधन की सामंजस्य क्षमता से तय होता है। पालीगंज, आरा व घोसी में भी भाकपा-माले प्रत्याशियों की जीत या दूसरे नंबर पर रहने का कारण यही सामंजस्य था।
राजद इस बार 2020 जैसी बड़ी जीत से भी आगे निकलने के लिए जीतने वाली व अपेक्षाकृत कमजोर सीटों को बराबरी से बांटने पर जोर दे रहा है।
राजद कार्यकर्ताओं का कहना है कि गत चुनाव में महागठबंधन के घटक दलों को कई ऐसी सीटें दी गई थी, जहां अपनी पार्टी के प्रत्याशी आसानी से जीत सकते थे। इस बार विनिंग व कमजोर सीटों की समीक्षा के बाद समान अनुपात में ऐसी सीटों का बंटवारा किया जा रहा है।
जीतने योग्य सीटों पर ध्यान
महागठबंधन ने 2020 में सीट साझेदारी में जनाधार की ताकत के बजाय विचारधारात्मक संतुलन को प्राथमिकता दी थी। इस बार राजद का पूरा ध्यान स्पष्ट रूप से जीतने योग्य सीटों पर है।
इसीलिए पालीगंज, घोसी व आरा जैसी सीटों पर पार्टी नेतृत्व अपने प्रत्याशी उतारने के पक्ष में है। वहीं, भाकपा-माले इस प्रस्ताव से असहमत है। पार्टी का कहना है कि जो सीटें मेहनत व संघर्ष के दम पर जीती गईं, उन्हें राजनीतिक समझौते के तहत छोड़ने से महागठबंधन का ही नुकसान होगा।
हमारे कार्यकर्ता इन इलाकों में जमीनी आंदोलन से जुड़े हैं। अगर सीटें छीनी गईं, तो कार्यकर्ताओं के मनोबल पर खराब प्रभाव पड़ेगा। राजद की रणनीति को भांपने के लिए राजग के राजनीतिक विश्लेषक भी जुटे हैं।
भाजपा-जदयू में भी उन विधायकों के टिकट काटने की चर्चा तेज है, जिनके प्रति क्षेत्र में असंतोष है। वे महागठबंधन के नए चेहरों के सामने मजबूत प्रत्याशी खड़ा करने पर मंथन कर रहे हैं। |