search

54 साल पहले का एक युद्ध जिसमें फेल हो गई थी पाकिस्तानी फौज की एक बड़ी प्लानिंग

cy520520 2025-12-30 23:27:17 views 45
  

1971 में भारतीय वायुसेना ने कैसे तोड़ा पाकिस्तान का जैसलमेर पर कब्जे करना का सपना। फोटो- भारत-पाकिस्‍तान बॉर्डर जागरण  



डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। 54 साल पहले 4 दिसंबर 1971 की रात भारतीय फौज की एक टुकड़ी और पाकिस्तानी टैंक रेजिमेंट के बीच जो युद्ध हुआ था, उसने इतिहास का रुख मोड़ दिया था। लोंगेवाला युद्ध और भारतीय वायुसेना एक दूसरे के पूरक के रूप में पहचाने जाते हैं। राजस्थान के रेगिस्तान में लड़ी गई लोंगेवाला की लड़ाई ने यह साबित कर दिया था कि आधुनिक युद्ध में वायुसेना की भूमिका केवल सहायक नहीं, बल्कि निर्णायक होती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

यह युद्ध एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इसकी वजह है बॉलीवुड। साल 1997 में इसी लोंगेवाला युद्ध पर एक फिल्म आई थी, जिसका नाम था बॉर्डर और 2026 में रिलीज होने वाली है बॉर्डर-2 फिल्म। यह फिल्म भी 1971 के ही एक युद्ध की कहानी पर बनी हुई बताई जा रही है। हालांकि असल कहानी तो इसके रिलीज होने पर ही पता चलेगी।

लेकिन बॉर्डर-2 फिल्म के साथ ही भारत-पाकिस्तान का युद्ध दोबारा सर्च इंजन पर खोजा जाने लगा है। आज हम आपको लोंगेवाला युद्ध की कहानी का वह पहलू भी बताएंगे जो फिल्म में नहीं दिखाया गया था। फिल्म से इतर आइए जानते हैं इस लड़ाई के बारे में और कैसे भारतीय रक्षा बलों ने पाकिस्तानी फौज की रणनीति को फेल कर दिया था।
पाकिस्तान की रणनीति क्या थी?

1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने पश्चिमी मोर्चे पर एक साहसिक लेकिन जोखिम भरी योजना बनाई। दिसंबर की शुरुआत में पाकिस्तानी सेना ने जैसलमेर सेक्टर में भारी संख्या में टैंकों और लगभग 2000 सैनिकों के साथ भारतीय सीमा में घुसपैठ की। उनका लक्ष्य था लोंगेवाला होते हुए रामगढ़ और जैसलमेर पर तेजी से कब्जा करना, ताकि भारत को रणनीतिक और मनोवैज्ञानिक दबाव में डाला जा सके।

स्थानीय इलाकों में यहां तक कहा जाने लगा था कि पाकिस्तानी सेना कुछ ही दिनों में जैसलमेर पहुंच जाएगी। लेकिन यह आत्मविश्वास जल्द ही पाकिस्तान की बड़ी भूल साबित हुआ।

  

लोंगेवाला युद्ध स्‍मारक में रखा भारतीय सेना का लड़ाकू विमान हंटर। फोटो - जागरण
लोंगेवाला पोस्ट कहां है?

लोंगेवाला की सीमा चौकी पर उस समय 23 पंजाब रेजिमेंट की एक छोटी टुकड़ी तैनात थी। भारतीय जवानों के पास सीमित हथियार थे। कुछ मशीनगन, मोर्टार, कंधे से दागे जाने वाले रॉकेट लॉन्चर और एक रिकॉयलेस गन। भारी टैंकों के सामने यह ताकत नाकाफी लगती थी। इसी बीच रात की शांति को भंग करती टैंकों के इंजनों की आवाज सुनाई देने लगी। गश्ती दल ने धीरे-धीरे आगे बढ़ते पाकिस्तानी टैंकों की आहट सुनी, जो बिना लाइट जलाए रेतीले रास्ते से बढ़ रहे थे।

संसाधन सीमित थे, लेकिन हौसला मजबूत। भारतीय गश्ती दल ने दुश्मन की मौजूदगी भांप ली और तुरंत उच्च अधिकारियों को सूचना दी गई। रेतीले इलाके में आगे बढ़ रहे पाकिस्तानी टैंकों की गति बहुत धीमी थी। यही देरी भारतीय सेना के लिए एक अहम अवसर बन गई। लोंगेवाला पोस्ट से मदद की गुहार लगाई गई और वायु सेना को अलर्ट किया गया।

  
भारतीय वायु सेना का निर्णायक हमला

सुबह होते-होते पाकिस्तानी फौज और टैंकों का हमला तेज हो गया था। टैंकों ने गोलाबारी शुरू कर दी जिससे चौकी के ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा। इसी समय भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को यह स्पष्ट हो गया कि थल सेना के दम पर इस हमले को लंबे समय तक रोके रखना मुश्किल होगा। तब उम्मीद की आखिरी किरण बनी भारतीय वायुसेना।

रात के समय उड़ान की सीमाओं के कारण वायुसेना तुरंत हमला नहीं कर सकी, लेकिन सुबह होते ही जैसलमेर एयरबेस से हंटर लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरी। इधर सूरज की पहली किरणें रेगिस्तान पर पड़ीं, उधर भारतीय हंटर विमानों ने पाकिस्तानी टैंकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया।

हवा से हमला पाकिस्तानी सेना के लिए पूरी तरह अप्रत्याशित था। खुले रेगिस्तान में बिना किसी हवाई सुरक्षा के टैंक आसान लक्ष्य बन गए। भारतीय पायलटों ने बेहद कम ऊंचाई से उड़ान भरते हुए रॉकेट और तोपों से लगातार हमले किए। देखते ही देखते कई टैंक आग की लपटों में घिर गए और आगे बढ़ती टैंक कॉलम में अफरा-तफरी मच गई।

  

दिन चढ़ने के साथ-साथ वायुसेना के हमले और सटीक होते गए। पाकिस्तानी टैंकों ने बचने के लिए धुआं छोड़कर दिशा बदलने की कोशिश की, लेकिन रेगिस्तान में उड़ती धूल ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दीं। इंजन ओवरहीटिंग के कारण कई टैंक बीच रास्ते ही जवाब दे गए। कुछ टैंकों को उनके चालक दल को वहीं छोड़कर पीछे हटना पड़ा।

दोपहर तक स्थिति पूरी तरह बदल चुकी थी। भारतीय वायुसेना ने बड़ी संख्या में पाकिस्तानी टैंक और वाहन नष्ट कर दिए थे। बिना एयर कवर के यह बड़ा सैन्य अभियान पाकिस्तान के लिए भारी नुकसान में बदल गया। अंततः पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने का फैसला लेना पड़ा और लोंगेवाला पर कब्ज़े का सपना वहीं टूट गया।
लोंगेवाला की जीत का असर

इस लड़ाई में पाकिस्तान के अधिकांश टैंक या तो नष्ट हो गए या छोड़ दिए गए। सैन्य इतिहासकारों के अनुसार, दूसरे विश्व युद्ध के बाद किसी एक संघर्ष में टैंकों का इतना बड़ा नुकसान दुर्लभ माना जाता है। इस हार ने न केवल पाकिस्तान की सैन्य रणनीति को झटका दिया, बल्कि उसके सैनिकों के मनोबल पर भी गहरा असर डाला।

  

लोंगेवाला युद्ध स्‍मारक में प्रदर्शनी में रखा पाकिस्‍तानी सेना का टैंक। फोटो- जागरण

लोंगेवाला की लड़ाई में मिली सफलता का प्रभाव केवल पश्चिमी मोर्चे तक सीमित नहीं रहा। इस हार के बाद पाकिस्तान की आक्रामक रणनीति टूट गई और भारत को पूर्वी मोर्चे पर पूरी ताकत झोंकने का मौका मिला, जिसका परिणाम बांग्लादेश के गठन के रूप में सामने आया।
क्यों ऐतिहासिक है लोंगेवाला की लड़ाई?

Battle of Longewala को आज इसलिए याद किया जाता है क्योंकि यह दिखाता है कि सही समय पर लिए गए फैसले, मजबूत नेतृत्व और हवाई ताकत युद्ध की दिशा बदल सकती है। यह जीत भारतीय सैन्य इतिहास में एक मील का पत्थर मानी जाती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए रणनीति और साहस का प्रतीक बनी हुई है।

  

यह भी पढ़ें- जब 120 जवानों ने 4000 पाकिस्‍तानी सैनिकों को खदेड़ा, छोड़ने पड़े थे टैंक-तोप और वाहन ; क्‍या है लोंगेवाला युद्ध की कहानी?
like (0)
cy520520Forum Veteran

Post a reply

loginto write comments
cy520520

He hasn't introduced himself yet.

410K

Threads

0

Posts

1410K

Credits

Forum Veteran

Credits
140441

Get jili slot free 100 online Gambling and more profitable chanced casino at www.deltin51.com