Magh Mela Kalpvas Significance प्रयागराज में कल्पवास का महत्व, नियम और पूर्णता की अवधि निर्धारित है।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज। Magh Mela Kalpvas Significance जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति। पूर्वजों की तृप्ति व मोक्ष की प्राप्ति। कुछ इन्हीं संकल्पना को साकार करने के लिए तीर्थराज प्रयाग में संगम तीरे माहभर का अखंड तप कल्पवास तीन जनवरी पौष पूर्णिमा से आरंभ हो जाएगा। भजन, पूजन व अनुष्ठान का क्रम 15 फरवरी महाशिवरात्रि तक चलेगा। गृहस्थ नर-नारी तपस्वियों की भांति माहभर भजन-पूजन में लीन रहेंगे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
संगम तीरे कल्पवास अत्यंत पुण्यकारी
Magh Mela Kalpvas Significance संगम तीरे माघ महीने में कल्पवास अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। गृहस्थ समस्त मोह-माया से मुक्त होकर भजन-पूजन करेंगे। सुविधा की आस होगी, न किसी प्रकार की अपेक्षा। दिन में तीन बार गंगा स्नान, एक समय भोजन व दिनभर धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन, प्रवचन सुनने में समय व्यतीत करेंगे।
बसती है तंबुओं की नगरी
Magh Mela Kalpvas Significance शंकराचार्य, आचार्यनगर, दंडी स्वामीनगर, खाकचौक के महात्माओं के बीच कल्पवासियों का शिविर लगता है। इधर, संगम तीरे तंबुओं की नगरी बसाने का काम अंतिम दौर पर है। भूमि समतलीकरण करने के साथ बिजली का पोल गड़ चुके हैं। पानी की पाइप लाइन, पांटून पुल बनाने व चकर्डप्लेट बिछाने का काम लगभग पूरा हो चुका है।
मेला सात सेक्टर में बसाया गया है
Magh Mela Kalpvas Significance मेला क्षेत्र में शिविर लगने लगे हैं। संतों और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मेला क्षेत्र का विस्तार दिया गया है। पहली बार मेला सात सेक्टर में बसाया गया है। हर सेक्टर में संत व कल्पवासी रहेंगे। इसको लेकर प्रवचन का पंडाल सजने लगा है। रामलीला व रासलीला से भक्ति की बयार बहेगी। माघ मेला और कल्पवास के महात्म्य आप भी जानें।
अनादिकाल से चल रहा जप-तप
प्रयाग धर्म संघ के अध्यक्ष राजेंद्र पालीवाल कहते हैं कि अनादिकाल पुरानी परंपरा है प्रयागराज में कल्पवास। लोकतांत्रिक युग में राजसुख के इच्छुक कल्पवासी इस नगरी में नगण्य दिखते हैं, फिर भी जो राजसत्ता में हैं वह पुण्य लाभ की कामना के वशीभूत होकर कल्पवासियों के यज्ञ में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते। समय के साथ माघ मेले में भी बहुत कुछ बदला है। अगर कुछ नहीं बदला है तो कल्पवासियों का तप, होम, दान का नियम और संकल्प।
संतों के शिविरों में पहुंचते हैं कल्पवासी
प्रात: काल गंगा स्नान के उपरांत निकलता कल्पवासियों का झुंड संत-महात्माओं के शिविरों में जाकर आध्यात्मिक सुरसरिता का श्रवण करता है। फिर शाम को गंगा तट पर स्नान के बाद दीपदान। प्रात: स्नान के लिए निकलते वक्त शिविर में स्थापित तुलसी और शालिग्राम उसे कल्पवास की जिम्मेदारियों की याद दिलाते हैं। सायं लौटने पर शिविर के बाहर बोये गए जौ के बीज से निकल कर बढ़ता पौधा इस कल्प में उनके अर्जित पुण्य को बताता है।
लोग आत्मशुद्धि को आते हैं तीर्थराज : प्रो. गिरिजा शंकर
बीएचयू में ज्योतिष विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री के अनुसार पद्मपुराण में वर्णन आता है- सनकादि मुनियों को तीर्थराज प्रयाग की महिमा बताते भगवान शेष कहते है कि आप लोग ब्रह्मा जी के साक्षात मानसपुत्र हैं अतः अतिगोपनीय रहस्य आपसे बता रहा हूं।
मकरस्थे रवौ माघे प्रयागं माधवाज्ञया ।
तीर्थराज समायान्ति ह्यात्म संशुद्धि हेतवे ॥
अर्थात माघ मास में जब भगवान सूर्य मकर राशि में आते हैं तब भगवान माधव की आज्ञा से सभी त्रिलोक के लोग आत्मशुद्धि के लिए तीर्थराज प्रयाग में आते हैं ।
जगती त्रितय स्थानां पापकर्म निवारणे ।
तत्सामर्थ्य बलेनैव तीर्थानामस्ति पुण्यता ।
तमिमं सर्वतीर्थानां जानीध्वमधि पं परम् ॥
अर्थात तीनों लोकों के पाप दूर करने की शक्ति केवल तीर्थराज प्रयाग में है इन्हीं के प्रभाव से पृथ्वी के अन्य स्थल भी तीर्थ हो जाते हैं अतः आप लोग इन्हें तीर्थों का राजा समझें ।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है -
माघ मकर गत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई ॥
माघ और मकर से चान्द्र एवं सौर दोनों मासों का ऐक्य (एकता) किया है।
तीर्थराज में ही कल्पवास करने का विधान शास्त्रों में वर्णित
यही कारण है साधक लोग अपनी भावनानुसार कुछ पौष पूर्णिमा से कुछ मकर संक्रांति से एक मास का व्रत लेकर प्रयाग में कल्पवास करते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि मकर राशि का सूर्य अभिजित नक्षत्र जो भगवान नारायण को अतिप्रिय है उसमें प्रवेश करता है। यही से सूर्य का उत्तरायण भी आरम्भ हो जाता है। इसी समय भूमंडल तथा भानुमंडल का ऐक्य (एकता) सीधे तीर्थराज प्रयाग में घटित होता है। यही कारण है कि पूरे भूमंडल में कल्पवास केवल तीर्थराज में ही करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है।
राजसूय यज्ञ के बराबर मिलता है पुण्य : श्रीधरानंद
द्वारका शारदा पीठ के प्रतिनिधि व श्रीमनकामेश्वर महादेव मंदिर के महंत श्रीधरानंद ब्रह्मचारी के अनुसार माघ मास में समस्त सुख-सुविधाओं का त्याग करके जप-तप करने वाले व्यक्ति को राजसूय यज्ञ कराने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। संगम के पवित्र जल में माघ मास में बिना अंतर किए नियमित स्नान करने से मोक्ष प्राप्ति, पाप-मुक्ति और आध्यात्मिक शुद्धि की संकल्पना साकार होती है। वहीं इसका वैज्ञानिक महत्व संगम तट पर पृथ्वी के चुंबकीय प्रभाव और पंचतत्वों की शुद्धि से जुड़ा है, जिससे तन-मन को ऊर्जा और सकारात्मकता मिलती है। माघ मास में देवी-देवता अलग-अलग स्वरूपों में संगम क्षेत्र में प्रवास करते हैं। वह सद्कर्म करने वाले व्यक्ति को दर्शन देेकर उसका कल्याण करते हैं।
कल्पवास की महिमा पुराणों में है : आचार्य विद्याकांत
पाराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय के अनुसार पद्मपुराण, अग्नि पुराण व स्कंद पुराण में कल्पवास की महिमा का बखान किया गया है। बताया गया है कि प्रयागराज में माघ मास में देवता स्वर्गलोक से प्रयागराज आते हैं। यही कारण है कि उसमें किए गए अनुष्ठान का फल जल्द प्राप्त होता है। साधक को जीते-जी मोक्ष की प्राप्ति होती है, साथ ही उनके कुल तर जाते हैं।
पुराणों में कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं
1-असत्य (झूठ) न बोलना, 2-हर परिस्थिति में सत्य बोला, 3-घर-गृहस्थी की चिंता से मुक्त होना, 4-गंगा में सुबह, दोपहर व शाम को स्नान करना, 5-शिविर के बाहर तुलसी का बिरवा रोपना व जौ बोना, 6-तुलसी व जौ को प्रतिदिन जल अर्पित करना, 7-ब्रह्मचर्य का पालन करना, 8-खुद या पत्नी का बनाया सात्विक भोजन करना, 9-सत्संग में भाग लेना, 10- इंद्रियों में संयम रखना, 11-पितरों का पिंडदान करना, 12-हिंसा से दूर रहना, 13-विलासिता से दूर रहना, 14-परनिंदा न करना, 15-जमीन पर सोना, 16-भोर में जगना, 17-किसी भी परिस्थिति में मेला क्षेत्र न छोड़ना, 18-धार्मिक ग्रंथों व पुस्तकों का पाठ करना, 19-आपस में धार्मिक चर्चा करना, 20-प्रतिदिन संतों को भोजन कराकर दक्षिणा देना, 21-गृहस्थ आश्रम में लौटने के बाद कल्पवास के नियम का पालन करना।
12 वर्ष में पूर्ण होता है कल्पवास
कल्पवास करने वाले लोगों को लगातार 12 वर्ष संगम तीरे आकर भजन-पूजन करना पड़ता है। 12 वर्ष बाद कल्पवास पूर्ण माना जाता है। इसके बाद कल्पवासी सजियादान करते हैं। इसमें तीर्थपुरोहितों को गृहस्थी का समस्त सामान दान किया जाता है। इसके बाद तमाम लोग कल्पवास समाप्त कर देते हैं, जबकि कुछ उसके बाद भी आते रहते हैं। कल्पवास करने वाले लोगों का घर-परिवार से कोई संबंध नहीं रहता। सुख हो अथवा दु:ख, किसी भी परिस्थिति में कल्पवासी माघ मेला क्षेत्र छोड़कर नहीं जाते। मेला क्षेत्र छोड़ने पर उनका कल्पवास खंडित हो जाता है। ऐसे में उन्हें दोबारा नए सिरे से कल्पवास शुरू करना पड़ता है।
माघ मेला 2026 की स्नान की प्रमुख तारीख
तीन जनवरी : पौष पूर्णिमा स्नान पर्व (माघ मेला व कल्पवास का शुभारंभ)
14 /15 जनवरी : मकर संक्रांति स्नान पर्व
18 जनवरी : मौनी अमावस्या स्नान पर्व
23 जनवरी : वसंत पंचमी स्नान पर्व
1 फरवरी : माघी पूर्णिमा स्नान पर्व (कल्पवास का समापन)
15 फरवरी : महाशिवरात्रि स्नान पर्व (माघ मेला का समापन)
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