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झाड़-फूंक के नाम पर खून! 7 साल से भी कम समय में 69 हत्याएं; आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सबसे ज्यादा मामले

deltin33 2025-12-6 16:08:58 views 532

  

झाड़-फूंक के नाम पर खून



शेषनाथ राय,  भुवनेश्वर। अंधविश्वास के खिलाफ सख्त कानून होने एवं जागरूकता अभियान चलाए जाने के बावजूद प्रदेश में झाड़-फूंक (गुनी-गारड़ी) के संदेह में हत्या का सिलसिला थम नहीं रहा है। आज भी ओडिशा में झाड़-फूंक के शक में लोगों की हत्या हो रही है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

पिछले 6 साल 10 महीनों में ओडिशा में झाड़-फूंक के संदेह में 69 लोगों की हत्या की गई है। इसी अवधि में कुल 535 मामले दर्ज हुए हैं। चालू वर्ष जनवरी से अक्टूबर तक 6 लोगों की हत्या की गई है, यह जानकारी ओडिशा पुलिस की रिपोर्ट से मिली है।
हर साल औसतन 76 झाड़-फूंक से जुड़े मामले

एक आकलन के अनुसार, हर साल औसतन 76 झाड़-फूंक से जुड़े मामले दर्ज हो रहे हैं, जिनमें से 10 हत्या के मामले होते हैं।इसे रोकने के लिए सरकार ने ‘झाड़-फूंक निषेध विधेयक’ लाया था। लेकिन आज भी बहुत से लोग इस कानून को लेकर जागरूक नहीं हैं।

आदिवासी आबादी वाले क्षेत्रों में ऐसे मामलों की संख्या अधिक है, यह बात एससीआरबी रिपोर्ट से पता चली है।हर साल अंधविश्वास और कुप्रथाओं के कारण हत्याएं हो रही हैं।
2013 में ‘गुनी-गारड़ी (झाड़-फुंक) निरोध विधेयक’

इसे देखते हुए राज्य सरकार ने 2013 में ‘गुनी-गारड़ी (झाड़-फुंक) निरोध विधेयक’ लाया था।आदिवासी क्षेत्रों में ऐसी घटनाएं अधिक होने के कारण पहले वहीं जागरूकता बढ़ाने के उपाय किए गए थे।

28 फरवरी 2019 को केन्दुझर जिले में झाड़-फूंक पीड़ितों की याद में एक प्रतिमा (महिला की) स्थापित की गई थी। उस समय के पुलिस महानिदेशक डॉ. राजेंद्र प्रसाद शर्मा ने इसका अनावरण किया था।कहा जाता है कि यह अपने तरह की पहली प्रतिमा थी। इस अवसर पर एक जागरूकता रथ का भी शुभारंभ किया गया था।
2018 में पूरे देश में 134 लोगों की हत्या

2018 में पूरे देश में 134 लोगों की हत्या की गई थी, जिनमें अधिकतर महिलाएं थीं। सिर्फ केन्दुझर जिले में ही उस वर्ष 18 लोगों को झाड़-फूंक के संदेह में मार दिया गया था। लेकिन उसके बाद राज्य सरकार ने इस दिशा में वैसी कोई ठोस पहल नहीं की।

आदिवासी क्षेत्रों की बात छोड़ें, राजधानी भुवनेश्वर में भी झाड़-फूंक के नाम पर जान जा रही है। कोरापुट, कालाहांडी, रायगढ़ा, सुंदरगढ़, मयूरभंज, केन्दुझर, नवरंगपुर, मालकानगिरी, नुआपड़ा, गंजाम, कंधमाल जैसे आदिवासी बहुल जिलों में ऐसी घटनाएं ज्यादा हो रही हैं। कोरापुट, मालकानगिरी और केन्दुझर के विभिन्न थानों में दर्ज हुए मामलों में 25 प्रतिशत मामले झाड़-फूंक से जुड़े हैं।

एससीआरबी रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 82 मामले दर्ज हुए, जिनमें 13 हत्याएं थीं।2020 में 94 मामले, जिनमें 14 हत्याएं।2021 में 79 मामले, इनमें 12 हत्याएं।2022 में 103 मामलों में 8 हत्या के मामले थे।  
2024 में 62 मामले दर्ज हुए

इन मामलों में 13 महिलाओं सहित 89 लोगों को गिरफ्तार किया गया।2023 में 70 मामले दर्ज हुए, जिनमें 9 हत्याएं थीं। 70 मामलों में 2 महिलाओं सहित 52 लोगों को गिरफ्तार किया गया। मयूरभंज में सबसे अधिक 26 मामले दर्ज हुए और 13 लोग गिरफ्तार हुए।2024 में 62 मामले दर्ज हुए, जिनमें 7 हत्या के मामले थे। झाड़-फूंक से जुड़े मामलों में 48 लोगों को गिरफ्तार किया गया।  

मयूरभंज में सबसे ज्यादा 16 मामले दर्ज हुए और 7 गिरफ्तारियां हुईं। सुंदरगढ़ में 8 और नवरंगपुर में 7 मामलों में 4 लोगों को गिरफ्तार किया गया।2025 के जनवरी से अक्टूबर (10 महीने) में झाड़-फूंक से जुड़े 43 मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें 6 हत्या के मामले हैं।
पुरानी सोच वाले लोगों में झाड़-फूंक का संदेह कम नहीं हो रहा

सबसे बड़ी बात यह है कि भुवनेश्वर के आसपास भी झाड़-फूंक के कारण एक व्यक्ति की हत्या हुई। इतने कानून होने के बाद भी राजधानी में अंधविश्वास के कारण हो रही हत्या कई सवाल खड़े करती है।

इस बारे में सेवानिवृत्त एसपी शशिभूषण शतपथी कहते हैं कि कानून तो है और पुलिस कार्रवाई भी कर रही है, फिर भी पुरानी सोच वाले लोगों में झाड़-फूंक का संदेह कम नहीं हो रहा है।इस अंधविश्वास के कारण कई परिवार बर्बाद हो रहे हैं।  

इसे रोकने का सबसे बड़ा हथियार युवा पीढ़ी है।उन्हें अपने क्षेत्र में जागरूकता फैलानी चाहिए।लेकिन आज जब युवा जागरूकता के लिए आगे आते हैं, तो उन्हें भी विभिन्न तरीकों से दबाया जाता है।
हर जगह झाड़ा-फूंक चल रहा

वरिष्ठ वकील विश्वप्रिय कानूनगो कहते हैं कि अभी भी अवैज्ञानिक सोच बनी हुई है—चाहे शहर हो या गांव। हर जगह झाड़ा-फूंक चल रहा है। सरकार सिर्फ कानून बना देने भर से कुछ नहीं होगा। यह देखना जरूरी है कि कानून का क्रियान्वयन सही से हो रहा है या नहीं।

शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति हर क्षेत्र में इस समस्या पर काम करने की आवश्यकता है। सिर्फ जागरूकता अभियान चलाने से सब ठीक हो जाएगा, ऐसा सोचना गलत है। अंधविश्वास को पूरी तरह खत्म करने के लिए एक विशेष टास्क फोर्स बननी चाहिए।इसके साथ ही यह भी पता लगाना होगा कि इन घटनाओं के पीछे असली ‘मास्टरमाइंड’ कौन हैं।
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