वर्ष 2020 व 2021 में नवंबर व दिसंबर माह तक हुए थे भालुओं के हमले। प्रतीकात्मक
अजय कुमार, उत्तरकाशी। इस वक्त जब भालुओं को शीत निंद्रा पर होना चाहिए, वह आबादी क्षेत्रों के आसपास मंडराने के साथ इंसानों पर हमलावर हैं। लेकिन यह पहली बार नहीं है।चार साल पहले वर्ष 2020 व 2021 में भी भालू इसी तरह शीत निंद्रा भूलकर हमलावर थे, तब भालुओं के हमलों की घटनाएं नवंबर व दिसंबर माह देखने को मिली थी और आज की ही तरह वन क्षेत्र लगे गांवों में ग्रामीण दहशत के साये में जीन को मजबूर थे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
दरअसल, वर्तमान समय में मानव-वन्यजीव संघर्ष की सबसे बड़ी वजह भालू बने हुए हैं। उत्तरकाशी जनपद की बात करें तो यहां भालुओं के हमलों की 13 घटनाएं घट चुकी हैं।इनमें सर्वाधिक उत्तरकाशी वन प्रभाग के भटवाड़ी विकासखंड के गांवों में हुई हैं, जिनमें अब तक दो महिलाओं की मौत हो चुकी है। चौंकाने वाली बात ये है कि जिस तरह भालू वर्तमान समय में आक्रमक व इंसानों पर हमलावर हैं, ठीक इसी तरह चार साल पहले भी भालू शीत निंद्रा पर जाने की बजाए हमलावर थे।
उत्तरकाशी वन प्रभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार तब वर्ष 2020 में भालुओं के हमलों की 6 हमले हुए थे। इनमें अक्टूबर व नवंबर पांच हमले दर्ज किए गए थे। वहीं, वर्ष 2021 में भी भालू के हमलों की 6 घटनाएं घटी थी, जिसमें से 2 घटनाएं नवंबर तथा 3 घटनाएं दिसंबर माह में हुई थी। तब भी शीतकाल में शीतनिंद्रा पर जाने की बजाए भालुओं के आक्रमक होने से वन विभाग के अधिकारियों ने हैरानी जताई थी। हालांकि भालुओं के स्वभाव में इस तरह के बदलाव को लेकर कोई अध्ययन नहीं हो पाया, जबकि तब भी हमलों पर वन विभाग ने भालुओं के बदले मिजाज को लेकर भारतीय वन्यजीव संस्थान से अध्ययन कराने की बात कही थी।
छह साल में अब तक 30 हमले, तीन मौत
उत्तरकाशी वन प्रभाग में वर्ष 2020 से लेकर अब तक भालू के हमलों की 32 घटनाएं हुई हैं। जिसमें तीन मौतें हुई हैं। वर्ष वार घटनाओं की बात करें को वर्ष 2020 में 6, 2021 में 6, 2022 में 5 (1 मौत सहित), 2023 में 1, 2024 में 4 तथा वर्तमान समय तक 8 घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें दो मौतें भी शामिल हैं।
भालुओं की शीतनिंद्रा को खाना, ठंड व बर्फ पड़ना जरूरी
भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डा.एस सत्याकुमार के अनुसार भालुओं के शीतनिंद्रा पर जाने के लिए जंगल में खाना मिलना, ठंड व बर्फ पड़ना जरूरी है। लेकिन जंगलों में फल-फूल खत्म होने और ठंड व बर्फबारी नहीं होने से भालू आवासीय बस्तियों का रूख कर रहे हैं, जहां उन्हें कूड़ेदान आदि में खाना मिल रहा है। हालांकि उन्होंने कहा कि प्रत्येक भालू शीतनिंद्रा पर जायें, यह जरूरी नहीं है।
पूरे पश्चिम हिमालय में दस साल से भालू दिसंबर माह में भी घूमते नजर आ रहे हैं। 50 साल पहले ऐसा नहीं होता था। जलवायु परिवर्तन के चलते जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल व उत्तराखंड आदि में गर्माहट व ठंड नहीं होने तथा बर्फबारी में देरी के चलते भालुओं का व्यवहार बदला है, वह शीत निंद्रा पर नहीं जा रहे हैं। जैसे ही बर्फबारी से ठंड बढ़ेगी तो भालू शीतनिंद्रा पर चले जाएंगे। - डा.एस सत्या कुमार, वरिष्ठ विज्ञानी भारतीय वन्यजीव संस्थान।
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