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उत्तराखंड: राज्यपाल का आह्वान,हमें संकल्प लेना है कि द्वितीय पंक्ति के सुरक्षा प्रहरी के रूप में सेवा करेंगे

LHC0088 2025-11-28 22:07:54 views 704

  

उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि)।



राज्य ब्यूरो, जागरण देहरादून: राजभवन सभागार में उत्तराखंड में सुरक्षा और पर्यावरण चुनौतियां तथा पर्यटन विषय पर विमर्श कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने बतौर मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभाग किया।

राज्यपाल ने कहा कि हमें आज संकल्प लेना है कि हम उत्तराखंड में द्वितीय पंक्ति के सुरक्षा प्रहरी के रूप में सेवा करेंगे, पर्यावरण की रक्षा के लिए हम देवभूमि के प्राचीन संतों की तरह आचरण करेंगे तथा पर्यटन के उत्थान में हम अतिथि देवो भवः की अवधारणा को आत्मसात करेंगे। विशेष कर युवाओं और पूर्व सैनिकों को इसका दृढ़ निश्चय होकर संकल्प लेना चाहिए। मन में सभी को यह गांठ बांध लेनी चाहिए कि यदि राष्ट्र होगा तो समाज होगा, समाज होगा तो परिवार होगा।
उन्होंने उदाहरण दिया कि किस प्रकार से मुगलों और अंग्रेजों ने हमारे स्वाभिमान और हमारे मूल्यों पर कुठाराघात किया। इसलिए हमें एकता और आपसी तालमेल से राष्ट्र के उत्थान और विकसित भारत के लक्ष्य को साकार करना होगा। इसीलिए हमें अपनी चुनौतियों, अपनी खूबियों और अपनी मर्यादा की सीमा पता होनी चाहिए। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

राज्यपाल ने कहा कि 2014 के बाद हमारी टाप लीडरशिप ने आत्मनिर्भर भारत, सशक्त और समृद्ध भारत बनाने की दिशा में लगातार मजबूती से और दृढ़ता से ठोस निर्णय लिए हैं। आज हमारे पास प्रभावी और मजबूत लीडरशिप है, युवा शक्ति की मैन पावर है और मेहनती लोग हैं।

इसीलिए हमें विकसित भारत निर्माण के संबंध में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के सर्वांगीण विकास के लिए पांच क्रांति की जरूरत है- हनी क्रांति, एरोमा क्रांति, मिलेट क्रांति, स्वयं सहायता समूह क्रांति और होमस्टे क्रांति।

लेफ्टिनेंट जनरल एके सिंह ने उत्तराखंड के विशेष संदर्भ में सुरक्षा क्रियान्वयन विषय पर संबोधन के दौरान कहा कि चीन-पाक गठजोड़, बांग्लादेश की पाकिस्तान से बढ़ती नजदीकी, सीमा पर तस्करी, साइबर हमले, नकारात्मक सोशल मीडिया, देश विरोधी टूलकिट, नकारात्मक प्रचार हमारी बाहरी और आंतरिक सुरक्षा के सबसे बड़े खतरे हैं।

आंतरिक खतरों से निपटने के लिए उन्होंने भारतीय जन समुदाय को प्रशिक्षित सुशिक्षित और जागरूक रहने तथा देश के प्रति निष्ठा, समर्पण और सेवाभाव को आत्मसात करने की अपील की।

मैती आंदोलन के प्रणेता पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने पर्यावरण विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि बांझ उत्तराखंड के पर्यावरण के केंद्र में है। अंग्रेजों ने कोयला बनाने के लिए बांझ के पेड़ों पर आरी चलाई तथा इसके स्थान पर रेजिन और औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए चीड़ की विदेशी प्रजातियां लगाई।

आज यहां बांझ के पेड़ सिमटकर 14 प्रतिशत के आसपास रह गए हैं, जबकि चीड़ के पेड़ 27 प्रतिशत से ऊपर पहुंच चुके हैं। बांझ के पेड़ घटे तो पहाड़ों में जल स्रोत सूख गए, जंगल में नमी कम हो गई, जिससे वन्यजीवों को ना तो जंगल में ना तो हरियाली मिल रही और न ही पीने को पानी, जिससे जंगली जानवर आबादी की ओर पलायन कर रहे हैं।

परिणाम स्वरुप मानव- वन्यजीव संघर्ष हो रहा है।चीड़ का पेड़ इस तरह से घुसपैठ कर चुका है कि स्थानीय देसी प्रजातियां सब गायब हो रही हैं। जंगल में आग लगने का सबसे बड़ा कारण भी चीड़ का ही पेड़ है। जंगल जलने से ब्लैक कार्बन बढ़ रहा है, ब्लैक कार्बन बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, ग्लेशियर पिघलने से हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में झीलें बन रही हैं। जो भूकंप की दृष्टि से खतरनाक साबित हो सकती हैं।

उन्होंने स्थानीय लोगों को चीड़ के पेड़ का इस शर्त पर पातन करने की अनुमति देने की सिफारिश की कि इसके बदले बांझ के पेड़ लगाए जाएं। जहां पर बरगद, पीपल, नीम इत्यादि के पेड़ पनप सकते हैं वहां पर इन पेड़ों को लगाया जाए। इसी तरह से उन्होंने लैंटाना और गाजर घास के आतंक का जिक्र करते हुए कहा कि इसने स्थानीय घास व झाड़ियों की सभी दूसरी प्रजातियों को खत्म कर दिया है।

उन्होंने कहा कि मखमली बुग्यालों में अब जंगली सूअर दिखने लगे हैं और बुग्यालों की खुदाई कर रहे हैं जिससे वहां पर जड़ी-बूटियों का अस्तित्व खतरे में है। साथ ही आने वाले समय में भूस्खलन को भी इसे बढ़ावा मिल सकता है।

उन्होंने मैती आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि एक वर्ष में बहुत सी शादियां होती है अगर सभी वर-वधु एक-एक पेड़ भी लगाएं व उसको बचाएं तो एक वर्ष में ही बहुत से पेड़ों का रोपण हो जाएगा, जो हरियाली बढ़ाने में उपयोगी होगा। उन्होंने लोगों को भावनात्मक रूप से मैती आंदोलन से जुड़ने की अपील की।

उत्तराखंड में पर्यटन की संभावना विषय पर कमांडर दीपक खंडूरी ने कहा कि उत्तराखंड में ग्रामीण पर्यटन, पारिस्थितिकी पर्यटन, झील पर्यटन, वैलनेस पर्यटन, आध्यात्मिक पर्यटन, साहसिक पर्यटन, एंग्लिंग पर्यटन, वन्यजीव पर्यटन जैसे अनेक पर्यटन आयाम तेजी से विकसित हो रहे हैं।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में अधिकतर पर्यटक नैनीताल, मसूरी, हरिद्वार, राजाजी पार्क में ही केंद्रित हो रहा है जिससे इन क्षेत्रों की कैरिंग कैपेसिटी ओवरलोड हो रही है। इससे यातायात, सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन करना बहुत चुनौतीपूर्ण हो रहा है। उन्होंने इसके लिए पर्यटन के विविधीकरण पर काम करने की आवश्यकता बताई।

उन्होंने कहा कि पर्यटकों को अलग-अलग क्षेत्र में डाइवर्ट करने के लिए अनेक जगह नए-नए टूरिस्ट डेस्टिनेशन विकसित करने होंगे। कहा कि केंद्र सरकार के सहयोग से और राज्य सरकार के अथक प्रयासों से उत्तराखंड में इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है। रोपवे, सड़क, हवाई और रेल कनेक्टिविटी का तेजी से और गुणवत्तापूर्ण तरीके से विस्तार किया जा रहा है।

उत्तराखंड के चारों ओर अनेक पर्यटक स्थल चयनित किए गए हैं और विकसित किया जा रहे हैं। पर्यटन के उत्थान और प्रबंधन के लिए अनेक मास्टर प्लान और सर्किट पर कार्य चल रहा है। जिससे उत्तराखण्ड पर्यटन के दृष्टिगत भी नंबर वन राज्य बनेगा।

कार्यक्रम का शुभारंभ संबोधन अध्यक्ष अखिल भारतीय पूर्व सैनिक परिषद ले. जनरल बी. के. चतुर्वेदी (सेनि) और समापन संबोधन कर्नल अजय कोठियाल (सेनि) ने किया।

कार्यक्रम में उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी, सैनिक अधिकारी सीके अहलूवालिया, प्रदीप जोशी, कर्नल त्यागी सहित बड़ी संख्या में सेवानिवृत्ति सैनिक अधिकारी, स्कूली छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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