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Gustaakh Ishq Review: ठहराव वाला है विजय-फातिमा का इश्‍क, क्या सच में दिल जीत पाई फिल्म?

Chikheang 2025-11-28 20:55:43 views 152

  

फिल्म देखने से पहले पढ़ें हमारा ये रिव्यू



फिल्‍म रिव्‍यू : गुस्‍ताख इश्‍क

प्रमुख कलाकार : विजय वर्मा, फातिमा सना शेख, नसीरूद्दीन शाह, शारिब हाशमी

निर्देशक : विभु पुरी

अवधि : दो घंटे आठ मिनट

स्‍टार : तीन

स्मिता श्रीवास्तव, नई दिल्ली। पीरियड फिल्‍म \“हवाईजादा\“ और वेब सीरीज \“ताज : डिवाइडेड बाय ब्‍लड\“ के बाद विभु पुरी ने गुस्‍ताख इश्‍क (Gustaakh Ishq review) का लेखन और निर्देशन किया है। दिल्‍ली से पंजाब आती-जाती यह प्रेम कहानी ठहराव के साथ चलती है। य‍हां पर दिल्‍ली की पुरानी गलियों से लेकर पंजाब की हरियाली और सर्दी का अहसास है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

कहानी 1998 में दिल्‍ली के दरियागंज से आरंभ होती है। नवाबुद्दीन सैफुद्दीन रहमान उर्फ पप्‍पन (विजय वर्मा) (Vijay Varma) अपने मां (नताशा रस्‍तोगी) और छोटे भाई जुम्‍मन (रोहन वर्मा) के साथ तंगहाली में जीवन व्‍यतीत कर रहा है। वह कर्ज में डूबे अपने मरहूम पिता की आखिरी निशानी प्रिंटिंग प्रेस को बचाना चाहता है। इस पर बवासीर, मर्दानगी के नुस्‍खे आदि के पोस्‍टर छापकर जीवन यापन कर रहा है। सड़कछाप लेखक फारुख (लिलीपुट) से शायर अजीज (नसीरूद्दीन शाह) (Naseeruddin Shah) का नाम सुनने के बाद पप्‍पन उसकी किताब छापना तय करता है। वह अजीज से मिलने मलेरकोटला जाता है।

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उसकी मुलाकात अजीज की बेटी मिनी (फातिमा सना शेख) (Fatima Sana Sheikh) से होती है। वह बताती है कि अजाज जिन्‍हें सब प्‍यार से बब्‍बा बुलाते हैं, वह अब नहीं लिखते। पप्‍पन हार नहीं मानता। वह अजीज से मिलकर शायरी सीखने के बहाने उनका शार्गिद बन जाता है। पप्‍पन का उनसे करीबी रिश्‍ता बन जाता है। शायरी सीखने के साथ मिनी उर्फ मन्‍नत को अपना दिल दे बैठता है। स्‍कूल में शिक्षक मिनी का भी अतीत है। धीरे-धीरे दोनों करीब आते हैं। हालांकि अजीज अपनी शायरियों को छपवाने से साफ मना कर देते हैं। इस बीच जुम्‍मन झूठ बोलकर उसे वापस दिल्‍ली ले आता है। वह छपाईखाने को बेचना चाहता है। पप्‍पन को अपनी अम्‍मी से अजीज के बारे में पता चलता है, जो उसके अब्‍बू के अजीज दोस्‍त हुआ करते थे। उसे उनकी जिंदगी की कुछ सच्‍चाइयों के बारे में पता चलता है। वह आखिरी कोशिश की उम्‍मीद में वापस बब्‍बा के पास आता है।

  

प्रशांत झा के साथ विभु ने कहानी, स्क्रीनप्‍ले और संवाद लिखे हैं। शुरुआत में कहानी धीमी गति से बढ़ती है। उर्दू शायरी, तहजीब और नफासत के साथ गढ़ी मिनी और पप्‍पन की प्रेम कहानी को स्‍थापित करने में विभु पुरी समय लेते है। वह किसी जल्‍दबाजी में नहीं होते। वह पुरानी यादों में ले जाते हैं जब प्‍यार के लिए छुपकर देखना अलग अहसास होता था। मध्‍यांतर के बाद कहानी जोर पकड़ती है। पप्‍पन का गुस्‍सा, अजीज का दर्द और पश्‍चाताप छलकता है। अपने स्‍वार्थ में डूबा पप्‍पन को इश्‍क के असली मायने बब्‍बा के जरिए विभु बखूबी समझाते हैं। हालांकि कुछ खामियां भी है। यह कहानी भले ही 1998 में सेट है (), लेकिन परदे पर देखते हुए लगता है कि यह पिछली सदी के सातवें या आठवें दशक की कहानी है।

  

फिल्‍म में अर्से बाद शायरी सुनने को मिलती है, लेकिन कहीं-कहीं यह उस स्‍तर की नहीं लगती जिस अव्‍वल दर्जे का शायर अजीज को बताया गया है। मिनी का अपने शौहर से तलाक हो चुका है पर कहानी उसके बारे में कोई खास जानकारी नहीं देती है। आर्थिक तंगी में जी रहे बब्‍बन की आंखों के आपरेशन के बाद मिनी अपनी नौकरी छोड़ देती है। ऐसे में लाइब्रेरी के लिए लोन को मिनी कैसे चुकाएगी इन प्रसंगों को बहुत सतही तौर पर दिखाया गया है। फिल्‍म के निर्माता प्रख्‍यात फैशन डिजाइनर मनीष मल्‍होत्रा हैं। बतौर निर्माता यह उनकी पहली है। मनीष के करीबी दोस्‍त फिल्‍ममेकर करण जौहर हैं। करण की फिल्‍मों में फैशन डिजायनर मनीष का जिक्र कई बार आया है। ऐसे में मनीष भी अपने दोस्‍त को याद करना नहीं भूले हैं। फिल्‍म के एक संवाद में करण की फिल्‍म कुछ कुछ होता है के गाने तूझे याद न मेरी आए...का जिक्र किया है। फिल्‍म का आकर्षण कई नयनाभिरामी दृश्‍य भी हैं। सिनेमेटोग्राफर मानुषनंदन दिल्‍ली से पंजाब के बीच कई मनोरम और एरियल दृश्‍यों को अपने कैमरे में खूबसूरती से कैद करते हैं।

  

कलाकारों की बात करें तो विजय वर्मा मंझे हुए कलाकार हैं। वह पहली बार रोमांटिक भूमिका में नजर आए हैं। उन्‍होंने पप्‍पन के स्‍वार्थी भाव के साथ प्रेम की भावनाओं को खूबसूरती से जिया है। हालांकि खालिस उर्दू के उच्‍चारण में वह फिसलते दिखे हैं। फातिमा सना शेख सुंदर दिखी हैं। वह मिनी के दर्द के साथ उसके अहसासों को खूबसूरती से जीती हैं। अजीज बेग की भूमिका में नसीरूद्दीन शाह फिल्‍म का आकर्षण हैं। शायर के साथ पिता की भूमिका में वह अपनी अदायगी के कई रंग दिखाते हैं। भूरे की संक्षिप्‍त भूमिका में शारिब हाशमी अपना प्रभाव छोड़ते हैं। फिल्‍म का खास आकर्षण गुलजार के लिखे गीत और विशाल भारद्वाज के संगीतबद्ध गाने हैं। हितेश सोनिक का बैकग्राउंड म्‍यूजिक कहानी साथ सुसंगत है। बहरहाल, यह कोई मसाला फिल्‍म नहीं है। यहां इश्‍क की गुस्ताखियां आपको महसूस करनी होगी।

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