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CJI Surya Kant: कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत? 53वें CJI के तौर पर ली शपथ, आर्टिकल 370 और पेगासस समेत इन फैसलों के रहे गवाह

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53nd CJI Surya Kant: जस्टिस सूर्यकांत ने सोमवार (24 नवंबर) को भारत के 53वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में जस्टिस सूर्यकांत को शपथ दिलाई। उन्होंने हिंदी में शपथ ली। जस्टिस सूर्यकांत को जस्टिस बीआर गवई की जगह न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर नियुक्त किया गया है। जस्टिस गवई रविवार (23 नवंबर) को रिटायर हो गए।



जस्टिस सूर्यकांत को 30 अक्टूबर को अगला CJI नियुक्त किया गया था। वह लगभग 15 महीने तक इस पद पर रहेंगे। वह 9 फरवरी 2027 को 65 वर्ष की उम्र होने पर यह पद छोड़ देंगे। उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई वरिष्ठ नेता इस समारोह में शामिल हुए।



जस्टिस सूर्यकांत का सफरनामा




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हरियाणा के हिसार जिले में 10 फरवरी, 1962 को मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे जस्टिस सूर्यकांत एक छोटे शहर के वकील से देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचे हैं। वह राष्ट्रीय महत्व और संवैधानिक मामलों के कई फैसलों और आदेशों का हिस्सा रहे। उन्हें कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से कानून में पोस्ट ग्रेजुएट में फर्स्ट स्थान प्राप्त करने का गौरव भी प्राप्त है। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में कई उल्लेखनीय फैसले देने वाले जस्टिस सूर्यकांत को पांच अक्टूबर, 2018 को हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।



सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में उनका कार्यकाल आर्टिकल 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने से जुड़े फैसले, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिकता के अधिकारों पर फैसले देने के लिए जाना जाता है। जस्टिस सूर्यकांत राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों से निपटने में राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों से संबंधित राष्ट्रपति के परामर्श पर हाल में सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ में शामिल हैं।



CJI सूर्यकांत के बड़े फैसले



वह उस पीठ का हिस्सा थे जिसने औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून को स्थगित रखा था। साथ ही निर्देश दिया था कि सरकार के समीक्षा करने तक इसके तहत कोई नई FIR दर्ज नहीं की जाएगी। जस्टिस सूर्यकांत ने चुनाव आयोग से बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर रखे गए 65 लाख मतदाताओं का ब्योरा सार्वजनिक करने को भी कहा था। उन्होंने निर्वाचन आयोग द्वारा चुनावी राज्य में मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया था।



जमीनी स्तर पर लोकतंत्र और लैंगिक न्याय पर जोर देने वाले एक आदेश में उन्होंने एक ऐसी पीठ का नेतृत्व किया जिसने गैरकानूनी तरीके से पद से हटाई गई एक महिला सरपंच को बहाल किया और मामले में लैंगिक पूर्वाग्रह को उजागर किया। उन्हें यह निर्देश देने का श्रेय भी दिया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन समेत बार एसोसिएशन में एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं।



जस्टिस सूर्यकांत उस पीठ का हिस्सा थे जिसने 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा चूक की जांच के लिए शीर्ष अदालत की पूर्व जस्टिस इंदु मल्होत्रा ​​की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की थी। उन्होंने रक्षा बलों के लिए वन रैंक-वन पेंशन योजना को भी बरकरार रखा था। इसे संवैधानिक रूप से वैध बताया। साथ ही सशस्त्र बलों में स्थायी कमीशन में समानता का अनुरोध करने वाली महिला अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी।



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जस्टिस सूर्यकांत उन सात जजों की पीठ में भी थे, जिसने 1967 के एएमयू के फैसले को खारिज कर दिया था। इससे उसके अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का रास्ता खुल गया था। वह उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने कुछ लोगों की निगरानी के लिए इजरायली जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस के कथित उपयोग की जांच के लिए साइबर एक्सपर्ट की एक समिति गठित की थी।
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