जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। 28 दिन के इंतजार के बाद भी बंटी का यकीन अब तक नहीं टूटा। मिट्टी की दीवारों पर लटके मोहन के कपड़े हर दिन हवा में हिलते हैं, जैसे अब भी उसका इंतजार कर रहे हों। गांव की औरतें जब बंटी के पास बैठती हैं तो शब्द नहीं, केवल सन्नाटा बोलता है। किसी की गोद में खेलता बच्चा देख बंटी का चेहरा बुझ जाता है। बंटी के लिए अब हर बच्चे में मोहन की झलक है, हर आवाज में उसकी पुकार सुनाई देती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पर उम्मीद अब भी कायम है- क्योंकि मां का दिल हारना नहीं जानता। बंटी का मानना है कि मोहन कहीं ना कहीं सुरक्षित है और एक दिन वापस आएगा। यही विश्वास उन्हें हर सुबह जगाता है, हर शाम दीपक जलाने की ताकत देता है। पूरे गांव में लोग उनके साथ खड़े हैं -कोई रोज शाम दीया जलाने में मदद करता है तो कोई मंदिर में मोहन की सलामती की प्रार्थना करता है। दर्द के बीच पनपी यह उम्मीद अब सिर्फ एक मां की नहीं, पूरे गांव की बन चुकी है। मुरादाबाद के छजलैट तिराहे पर बंटी और पति अंकित सिंह की झोपड़ी अब पहचान बन गई है।
यह वही झोपड़ी है, जहां से मोहन गायब हुआ था। उस दिन बंटी चारपाई पर दोनों बेटों को खिला रही थीं। बड़ा बेटा रोहन खिलौना पकड़े बैठा था और मोहन पास में मुस्कुरा रहा था। पलभर को वह अंदर पानी लेने गईं और लौटकर देखा तो चारपाई खाली थी, जहा मेरा बच्चा बैठा था वहां सिर्फ उसका छोटा खिलौना पड़ा था... मैं भागती रही, चिल्लाती रही पर किसी ने नहीं देखा उसे कौन ले गया। बंटी की आवाज टूट जाती है। आंसू अब उनके चेहरे पर स्थायी हैं। रात के सन्नाटे में झोपड़ी के दरवाजे पर एक छोटी सी रोशनी टिमटिमाती है।
बंटी उसे संभालती हैं, आंसू से भरी आंखों से आसमान की ओर देखती हैं। कहती हैं कि भगवान, मेरा मोहन लौटा दो... बस एक बार गोद में सो जाए। घटना की जानकारी पर एसपी देहात कुंवर आकाश सिंह, सीओ अभिनव द्विवेदी और फोरेंसिक टीम मौके पर पहुंची थीं। डाग स्क्वाड, ड्रोन, 200 से अधिक सीसीटीवी फुटेज, ग्रामीणों से पूछताछ सब हुआ। पर मोहन का कोई सुराग नहीं मिला। एसपी देहात कुंवर आकाश सिंह कहते हैं हमने हर दिशा में जांच बढ़ाई है, टीमें लगातार सक्रिय हैं। जल्द किसी ठोस नतीजे की उम्मीद है।
हर सुबह दरवाजा खोलती हूं... सोचती हूं शायद आज लौट आएगा
बंटी अब दवाइयां नहीं बेचतीं। झोपड़ी में सिर्फ मोहन की छोटी टोपी, दो कपड़े और टूटा खिलौना रखा है। वह हर सुबह दरवाज़ा खोलती हैं जैसे उम्मीद करती हों कि शायद किसी मोड़ से मोहन भागता हुआ आएगा। पड़ोसी दुकानदार कहते हैं कि पहले हर शाम मोहन की किलकारियां गूंजती थीं, अब उसकी मां की सिसकियां आती हैं। अंकित सिंह कहते हैं कि हम किसी से दुश्मनी नहीं रखते।
अगर किसी ने मजाक या लालच में हमारा बच्चा उठा लिया है, तो भगवान के लिए लौटा दो। बस एक बार देख लूं उसे। मन बहुत ही विचलित होता है। मां बंटी कहती हैं कि हर दिन दरवाजे पर दीपक रखती हूं। जब तक वो लौटेगा नहीं, दीपक बुझने नहीं दूंगी। कभी लगता है अभी आवाज देगा, मां और फिर सन्नाटा छा जाता है। लोग कहते हैं उम्मीद छोड़ दो... पर मैं मां हूं, उम्मीद कैसे छोड़ दूं?
पड़ताल में यह तथ्य आए सामने
17 अक्टूबर को शाम लगभग पांच बजे मोहन झोपड़ी के सामने चारपाई पर था। पिता अंकित सिंह एटीएम गए थे, मां झोपड़ी के भीतर थी। किसी अज्ञात व्यक्ति ने मोहन को उठा लिया हालांकि अभी तक कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं मिला। पुलिस ने तीन विशेष टीमें, एक एसओजी यूनिट लगाई। 200 से अधिक कैमरों की जांच, ड्रोन सर्वे, जंगल में सर्च आपरेशन चला। अब तक कोई ठोस सुराग नहीं मिला।
बच्चों की सुरक्षा को लेकर गांव में डर और सवाल
छजलैट और आसपास के गांवों में इस घटना के बाद खौफ का माहौल है। लोगों ने अपने बच्चों को कान के बाहर अकेला छोड़ना बंद कर दिया है। कई महिलाएं कहती हैं कि हम भी तो अपने बच्चों को घर के पास भी खेलने नहीं देते हैं। खेलता है तो नजर भी रखी जाती है। अब दिल नहीं करता उन्हें बाहर भेजने का। |