हाईकोर्ट की पूर्व जस्टिस अरूणा जगदीसन करेंगी भगदड़ की जांच। फोटो - पीटीआई
डिजिटल डेस्क, चेन्नई। तमिलनाडु के करूर में मची भगदड़ (Karur Stampede) का शोर चेन्नई से लेकर दिल्ली तक सुनाई दे रहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तमिलनाडु सरकार से रिपोर्ट मांगी है। वहीं, सीएम स्टालिन ने मामले की जांच हाईकोर्ट की पूर्व जस्टिस अरूणा जगदीसन को सौंप दी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
करूर भगदड़ से पूरे देश में सनसनी फैल गई है। इस हादसे में 39 लोगों ने जान गंवा दी और 50 से ज्यादा लोग घायल हैं। वहीं, 2 घायलों की हालत गंभीर बताई जा रही है।
भगदड़ पर फौरन एक्शन लेते हुए तमिलनाडु सरकार ने हाई प्रोफाइल पैनल का गठन किया है, जिसकी जिम्मेदारी जस्टिस अरूणा जगदीसन (Justice Aruna jagadeesan) को दी गई है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब जस्टिस अरूणा इस तरह के संवेदनशील मामले की जांच करेंगी। इससे पहले भी वो कई मामलों की जांच कर चुकी हैं।
2018 हिंसा की जांच
2018 में तमिलनाडु के तूतीकोरिन में एंटी-स्टरलाइट प्रदर्शन के दौरान अचानक हिंसा भड़क गई थी। इस दौरान लोग स्टरलाइट कॉपर प्लांट का विरोध करने जुटे थे और पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए फायरिंग शुरू कर दी। इस घटना में 13 लोगों की मौत हो गई थी। मामले की जांच की जिम्मेदारी जस्टिस अरूणा को ही सौंपी गई थी। उनके कमीशन ने IPS अधिकारी समेत 17 पुलिसकर्मियों के खिलाफ एक्शन लेने का सुझाव दिया था।hapur-city-local,Fearing the mob,mob fear,police protection,funeral attendance,Simbhawali news,Sikhera village,land grabbing,death threats,Hapur police,family dispute,criminal complaint,Uttar Pradesh news
चेन्नई पुलिस को दी थी क्लीन चिट
हाईकोर्ट में सेवा के दौरान जस्टिस अरूणा चेन्नई पुलिस को क्लीन चिट देने वाली बेंच का हिस्सा रह चुकी हैं। फरवरी 2015 में पुलिस एनकाउंटर के दौरान 5 लोगों की मौत हो गई थी। पांचों पर बैंक लूटने का आरोप था। हालांकि, कई लोगों ने इसे फेक एनकाउंटर बताया था, जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी और अदालत ने पुलिस को क्लीन चिट दे दी थी।
पूर्व सीएम जयललिता की जांच
जस्टिस अरूणा तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता और उनके सहयोगियों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति से जुड़े मामले की भी जांच कर चुकी हैं। दरअसल जयललिता 6 बार राज्य की मुख्यमंत्री रह चुकी थीं। उनपर आरोप लगा था कि 1991-1996 के बीच उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए 66 करोड़ की संपत्ति जमा की थी। इस मामले की जांच भी जस्टिस अरूणा ने ही की थी।
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