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Bihar Politics: पूर्व केंद्रीय मंत्री पर दांव लगाएगा राजद! इस सीट पर रोचक हुआ मुकाबला

Chikheang 2025-10-14 02:07:00 views 604

  

तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद यादव।



संवाद सहयोगी, जमुई। बीते चुनाव परिणाम को लेकर महागठबंधन खासकर राष्ट्रीय जनता दल जमुई में फूंक फूंक कर कदम रख रहा है। यही वजह है कि अभी तक मामला उलझा हुआ है। राजद की रणनीति नजदीकी मुकाबले में चकाई, झाझा और सिकंदरा में मिली शिकस्त को सत्ता से दूर कर देने के परिणाम की पुनरावृत्ति रोकने की है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

लिहाजा शीर्ष नेतृत्व झाझा में पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव पर दांव लगाने की योजना को मूर्त रूप देने में लगा है। हालांकि, जयप्रकाश इसके लिए तैयार नहीं हैं, यह बात राजनीतिक हल्के में सुनी जा रही है। इसके पीछे पारिवारिक बाध्यता को मुख्य कारक बताया जा रहा। वे संभवतः अपने अनुज पूर्व मंत्री विजय प्रकाश को मैदान में उतारने के पक्ष में हैं, लेकिन तेजस्वी यादव के जोर के आगे वह ना भी नहीं कर पा रहे हैं।

देखने वाली बात यह होगी कि अंतिम फैसला क्या होता है। वैसे पूर्व प्रत्याशी राजेंद्र यादव ने बाहरी और स्थानीय के मुद्दे को हवा देकर झाझा के मिजाज का संकेत दे दिया है। फिलहाल महागठबंधन के उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की ओर लोगों की नजरें टिकी है।

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि झाझा विधानसभा क्षेत्र राष्ट्रीय जनता दल के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। इस सीट पर लालू प्रसाद की सामाजिक न्याय की लहर (1995) में भी जनता दल को कामयाबी नहीं मिल पाई थी। तब कांग्रेस के डा रविंद्र यादव ने जनता दल के समाजवादी नेता शिवनंदन झा को शिकस्त दिया था।

राष्ट्रीय जनता दल को तो यहां कभी जीत नसीब हुआ ही नहीं। यह सब तब हुआ जब झाझा का समीकरण लालू प्रसाद के अनुकूल है। यादवों की बहुलता और ऊपर से मुसलमान मतदाताओं की ठीक-ठाक संख्या भी झाझा में राजद को कभी विधानसभा में प्रतिनिधित्व का अवसर नहीं दिया।

यहां यह बताना लाजिमी है कि वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में दामोदर रावत ने एनडीए की जो दीवार खड़ी की वह अब तक कायम है। 2015 के चुनाव में महागठबंधन का उम्मीदवार रहते हुए दामोदर रावत को भले हार का सामना करना पड़ा, लेकिन जीत एनडीए प्रत्याशी डॉ. रविंद्र यादव की ही हुई थी। उक्त चुनाव में एनडीए का सिर्फ झाझा में ही खाता खुला था। झाझा में एनडीए की दीवार के पीछे राजद के समीकरण के विरुद्ध अन्य की गोलबंदी हमेशा निर्णायक रहा है।
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