Zee5 पर रिलीज हुई \“साली मुहब्बत\“
प्रमुख कलाकार : राधिका आप्टे , दिव्येंदु शर्मा, अंशुमन पुष्कर, अनुराग कश्यप, शरत सक्सेना
लेखक : टिस्का चोपड़ा और संजय चोपड़ा
निर्देशक : टिस्का चोपड़ा
रिलीज प्लेटफार्म : जी5
अवधि : एक घंटा 45 मिनट
रेटिंग : तीन
स्मिता श्रीवास्तव, नई दिल्ली। फिल्म की शुरुआत में एक सवाल पूछा जाता है कि क्या महिलाओं की सुंदरता ही उनकी सबसे बड़ी क्वालिटी होती है? यही फिल्म का आधार सेट करते हैं कि आम सी दिखने वाली लड़की को सिर्फ सुंदरता के बल पर न आंका जाए। वह अपनी बुद्धि से कई लोगों को मात दे सकती है। साली मुहब्बत (Saali Mohabbat Movie) भी आम सी दिखने वाली लड़की की दिलचस्प कहानी है, जो Zee5 पर रिलीज हो चुकी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कहानी का आरंभ घर में एक पार्टी से होता है। कविता (राधिका आप्टे) Radhika Apte पाती है कि उसका पति किसी और आधुनिक लड़की के साथ संबंध में हैं। आम सी दिखने वाली कविता वहां पर मौजूद लोगों को फुर्सतगढ़ की स्मिता (राधिका आप्टे) की कहानी सुनाती है, जो अपने पति पंकज तिवारी (अंशुमन पुष्कर) के साथ अपने पिता के दिए घर में रहती है। बॉटनी में स्नातक स्मिता को प्रकृति से बहुत प्यार होता है।
पंकज ने गजेंदर भैयाजी (अनुराग कश्यप) से काफी कर्जा ले रखा होता है। वह चाहता है कि स्मिता अपने पिता का मुरादाबाद स्थित दूसरा घर बेच दे लेकिन वो राजी नहीं है। इस बीच स्मिता की मौसेरी बहन शालू (सौरसेनी मैत्रा Sauraseni Maitra) की नौकरी उसी शहर में लगती है। शालू उसके साथ उसके घर में रहती है। शालू की इंस्पेक्टर रतन पंडित (दिव्येंदु शर्मा) से नजदीकियां बढ़ती हैं। दूसरी ओर अपने जीजा साथ भी शालू संबंध बनाती है। स्मिता को शालू और पति की असलियत दिखती है। वह सबकुछ खामोशी से सहती है। फिर उसके पति और शालू का एकसाथ मर्डर हो जाता है। मामले की जांच इंस्पेक्टर रतन ही करता है। कविता के कहानी सुनाने की वजह क्या है यह आखिर का रहस्य है।
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तीन शॉर्ट फिल्मों का निर्देशन कर चुकीं टिस्का चोपड़ा ने साली मुहब्बत से फिल्म निर्देशन में कदम रखा है। उन्होंने अपने पति संजय चोपड़ा के साथ मिलकर फिल्म की कहानी लिखी है। कहानी की शुरुआत दिलचस्प तरीके से होती है। कहानी, शुरुआत में शांत लगती है, धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत करती जाती है। जब आपको लगता है कि पीड़ित मौन, असहाय है, तभी कहानी ट्विस्ट लेकर चौंकाती है। आखिर में, जैसे ही रहस्य सुलझाना शुरू होता है रतन की जांच से सच की एक ऐसी कड़ी सामने आती है जो न सिर्फ कहानी को नया मोड़ देती है बल्कि उन सभी बातों को भी चुनौती देती है जिन पर यकीन किया था। प्यार, नफरत, लालच और धोखे को लेकर गढ़ी कहानी में पात्रों की खुलती परतों के बीच पूर्वानुमान होता है, लेकिन वहीं पर कहानी अलग मोड़ लेती है।
जिंदगी के सबक समझाने के लिए पौधों को मेटाफर के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। यह दिलचस्प है और याद रहता है। करण कुलकर्णी का बैकग्राउंड म्यूजिक तनाव को गाढ़ा करने में मददगार होते हैं। पिया हरजाई रे गाना कर्णप्रिय है। सिनेमेटोग्राफर विदुषी तिवारी ने प्राकृतिक सुंदरता को बारीकी से कैमरे में कैद किया है। भैयाजी के बेटे मोंटू की उपस्थिति अबूझ है। इसी तरह कई सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं। जैसे शालू रतन के साथ समय बिताती है लेकिन पंकज के साथ संबंध क्यों बनाती है। उसका अतीत क्या है? पंकज को इतना कर्ज आसानी से कैसे मिल गया? पंकज का अतीत क्या है? टिस्का ने इसका दूसरा पार्ट बनने की बात कही है। संभवत: उसमें यह जवाब मिले।
बहरहाल फिल्म को खास वैभव विकास की कास्टिंग बनाती है। राधिका आप्टे ने स्मिता और कविता दोनों भूमिकाओं को पूरी शिद्दत से जीया है। उनके पात्र को बहुत बारीकी से गढ़ा गया है। उनकी आंखें कई बार बिना संवादों के बहुत कुछ कह जाती हैं। रतन की भूमिका में दिव्येंदु का अभिनय सराहनीय है। फिल्म 12th Fail और जामतारा सीरीज के अभिनेता अंशुमन पुष्कर के पात्र में कई शेड्स हैं। वह उसमें प्रभाव छोड़ते हैं। सौरसेनी मैत्रा पात्र के अनुरुप मासूम लगी हैं। सहयोगी भूमिका में आए शरत सक्सेना सीमित दृश्यों में अपना प्रभाव छोड़ते हैं। खलनायक की भूमिका में अनुराग कश्यप का पात्र दमदार नहीं बन पाया है। उनकी मौजूदगी एक कमरे में सीमित होकर रह गई है वह प्रभावी नहीं बन पाई है।
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