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आदिकेदारेश्वर व शंकराचार्य मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद, पके चावल से ढका गया शिवलिंग

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विधि-विधान और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ आदि केदारेश्वर मंदिर तथा आदि गुरू शंकराचार्य मंदिर के कपाट बंद हो गए हैं। जागरण



संवाद सहयोगी, गोपेश्वर। श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की प्रक्रिया के अंतर्गत पंच पूजाओं के दूसरे दिन विधि-विधान और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ आदि केदारेश्वर मंदिर तथा आदि गुरू शंकराचार्य मंदिर के कपाट बंद हो गए हैं। भगवान शिव को परंपरानुसार अन्नकूट का भोग लगाते हुए पके चावलों से ढ़का गया। इस धार्मिक परंपरा के साक्षी बनने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु भी उपस्थित थे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

आदिकेदारेश्वर मंदिर के कपाट बंद होने की प्रक्रिया के तहत श्री बदरीनाथ मंदिर में भोग लगने के बाद रावल अमरनाथ नंबूदरी ने आदि केदारेश्वर मंदिर में अन्नकूट का भोग चढ़ाया। आदि केदारेश्वर मंदिर के शिवलिंग को पके चावलों से ढ़का गया तत्पश्चात रावल अमरनाथ नंबूदरी सहित धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, प्रभारी धर्माधिकारी स्वयंबर सेमवाल, वेदपाठी रविंद्र भट्ट एवं अमित बंदोलिया एवं आदि केदारेश्वर मंदिर के पुजारीगणों ने पूजा-अर्चना संपन्न कर ठीक दो बजे आदि केदारेश्वर मंदिर के कपाट शीतकाल हेतु बंद हो गए हैं। इसके बाद पूजा अर्चना के साथ आदि गुरु शंकराचार्य मंदिर के कपाट भी शीतकाल हेतु बंद हो गए हैं।

श्री बदरीनाथ - केदारनाथ मंदिर समिति ( बीकेटीसी) अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी ने कहा कि श्री बदरीनाथ धाम की यात्रा पर श्रद्धालुओं में उत्साह है। श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के पश्चात शीतकालीन यात्रा को प्रोत्साहित किए जाने को लेकर कार्ययोजना अमल में लाई जा रही है। उन्होंने कहा कि शीतकालीन यात्रा के दौरान शीतकालीन पूजा स्थलों में धर्मशालाओं में यात्रियों को ठहरने की व्यवस्था के साथ पूजा के लिए भी विशेष इंतजाम किए जाएगें।

इस अवसर पर बीकेटीसी मुख्य कार्याधिकारी, कार्यपालक मजिस्ट्रेट विजय प्रसाद थपलियाल , पूर्व अपर धर्माधिकारी सत्यप्रकाश चमोला,मंदिर अधिकारी राजेंद्र चौहान, ईओ नगर पंचायत सुनील पुरोहित, थाना प्रभारी नवनीत भंडारी प्रशासनिक अधिकारी कुलदीप भट्ट, ऋतेश सनवाल, प्रवेश मेहता,विकास सनवाल आदि मौजूद रहे।
भगवान शिव का धाम था बदरीनाथ

बदरीनाथ धाम को सभी लोग नारायण के धाम के रूप में जानते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह धाम पहले शिव का धाम था। भगवान नारायण ने इस धाम में आकर लोग कल्याण के लिए तपस्या करने को लेकर लीला रचते हुए धाम पर आधिपत्य जमाया था। शास्त्र मान्यता है कि बदरीनाथ धाम में भगवान नारायण ने बामणी गांव के पास लीलाढुंगी नामक शिला में नवजात का रूप धारण किया था।

बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल ने बताया कि शास्त्रों में वर्णन है कि बर्फ से लकदक बदरीनाथ धाम में शिला पर बच्चे को रोते देख वहां से गुजर रहे शिव पार्वती की दिल पसीज गया। मां पार्वती की जिद पर शिव नारायण रूपी बच्चे को अपनी गुटिया में ले आए , मान्यता है कि फिर नारायण ने कुटिया के द्वार को अंदर से बंद कर भगवान शिव को अपने यहां आने का प्रयोजन बताते हुए इस धाम को उनसे मांगा।

तब से यह धाम नारायण के धाम के रूप में जाना गया । आज भी बदरीनाथ मंदिर के ठीक सामने तप्त कुंड के रास्ते में भगवान शिव का मंदिर है। इसे आदिकेदारेश्वर के रूप में जाना जाता है। इसे आदि गुरू शंकराचार्य ने स्थापित किया था। यहीं पर शंकराचार्य मंदिर भी है। इस मंदिर के कपाट बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने से पूर्व बंद किए जाते हैं।
पंच पूजाओं के तीसरे दिन खडग पुस्तक होगी बंद

पंच पूजाओं के तीसरे दिन रविवार को पूजा अर्चना के बाद वेद ऋचाओं का वाचन बंद हो जायेगा। बदरीनाथ धाम में वेद ऋचाओं की वाचन पूजा अर्चना के दौरान प्रमुख अंग है। लेकिन पंच पूजाओं के तीसरे दिन वेद ऋचाओं का वाचन बंद होने के साथ खडग पुस्तक बंद हो जाती है। मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड ने बताया कि मंदिर समिति ने पंच पूजाओं के तीसरे दिन खडग पुस्तक को पूजा अर्चना के बाद बंद करने की धार्मिक परंपरा निर्वाहन की तैयारियां कर दी गई हैं। 25 नवंबर अपराह्न दो बजकर 56 मिनट पर श्री बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल हेतु बंद होने हैं।

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