शीर्ष 10 माओवादी निशाने पर। (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बस्तर के जंगलों में एक युग का अंत हो चुका है। 1.80 करोड़ के इनामी माड़वी हिड़मा का मंगलवार को मुठभेड़ में मारा जाना, माओवादी नेटवर्क के लिए सबसे बड़ा आघात है। देशभर में माओवादी हिंसा के प्रतीक हिड़मा के खात्मे ने बस्तर में लाल आतंक के खिलाफ निर्णायक युद्ध की शुरुआत कर दी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने माओवादी हिंसा को समाप्त करने के लिए मार्च 2026 की समय सीमा निर्धारित की है और अब इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केवल कुछ ही शीर्ष माओवादी बचे हैं। इस वर्ष माओवादी संगठन को कई करारे झटके लगे हैं। प्रमुख नेता जैसे बसवा राजू, गुडसा उसेंडी, कोसा और सुधाकर मारे जा चुके हैं। इसके अलावा, भूपति, सुजाता, रूपेश समेत 300 से अधिक माओवादियों ने मुख्यधारा में लौटकर आत्मसमर्पण किया है।
उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने हिड़मा के खात्मे को एक बड़ी उपलब्धि बताते हुए कहा कि जब तक एक भी माओवादी हिंसक बंदूक लिए खड़ा रहेगा, तब तक यह अध्याय समाप्त नहीं होगा। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि माओवादी हथियार छोड़कर मुख्यधारा में नहीं लौटते, तो उनका हश्र भी बसवा राजू और हिड़मा जैसा होगा।
अब शीर्ष 10 माओवादी निशाने पर
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, बस्तर में माओवाद के खिलाफ चल रही यह अंतिम लड़ाई अब कुछ हिंसकों के हाथों में सिमट गई है। ये सभी दंडकारण्य के कोर इलाकों में सक्रिय हैं और पिछले चार दशकों से गुरिल्ला युद्ध की रणनीति का पालन कर रहे हैं। हिड़मा के बाद हिंसक दल नंबर-एक की कमान अब बारसे देवा के हाथ में है, जबकि पश्चिम बस्तर में संगठन की गतिविधियों का जिम्मा पापाराव के पास है।
सुरक्षा बलों के निशाने पर अब शीर्ष 10 माओवादी हैं, जिनमें मल्लाजी रेड़डी, रामदेर, बारसे देवा, पापाराव, मुचाकी एर्रा, सुजाता, जी. पावनंदम रेड्डी, रवि, नुने नरसिम्हा रेड्डी और मंगतु शामिल हैं। बता दें कि पिछले दो वर्षों में 2,000 से अधिक माओवादियों के समर्पण और 450 से अधिक माओवादी हिंसक मारे गए हैं।
आइजीपी बस्तर, सुंदरराज पी ने कहा कि बस्तर में माओवादी अब अंतिम सांसें गिन रहे हैं। बचे हुए हिंसकों से बार-बार समर्पण की अपील की जा रही है। यदि वे अब भी बंदूक नहीं छोड़ते हैं, तो सुरक्षा बल के जवान उन्हें वैसा ही सबक सिखाएंगे। |