अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत फिर बना रूस तेल का सबसे बड़ा आयातक: रिलायंस जहाज मोड़ने से क्या फर्क पड़ा?
नई दिल्ली। अमेरिका के रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगाने और रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसे प्रमुख भारतीय रिफाइनरों के जहाजों को अमेरिका की ओर मोड़ने के बावजूद, भारत अक्टूबर में रूस से कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक बना रहा। यूरोपीय थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने अक्टूबर में मॉस्को से 2.9 अरब डॉलर (लगभग 2.5 अरब यूरो) का कच्चा तेल खरीदा, जो कुल रूसी जीवाश्म ईंधन आयात का 81 फीसदी था। यह आंकड़ा सितंबर की तुलना में 11 फीसदी अधिक है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
यह आंकड़ा सबको हैरान कर रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि हाल के दिनों में खबर आई थी रिलायंस इंडस्ट्रीज, HPCL-मित्तल एनर्जी लिमिटेड और मंगलौर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड जैसे रिफाइनरों ने अस्थायी रूप से आयात रोक दिया। PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, इन कंपनियों ने अपने जहाजों को अमेरिकी बंदरगाहों की ओर मोड़ दिया। साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि भारत ने अमेरिकी टैरिफ के दबाव में रूसी तेल खरीद कम कर दी है।
अचानक नहीं रुक सकता रूस से तेल आयात?
तेल खरीद कोई आज ऑर्डर दिया, कल मिल गया वाली चीज नहीं है। यह 4 से 6 हफ्ते पहले तय होता है। यानी जो तेल अभी आ रहा है, उसकी डील सितंबर में ही हो चुकी थी। इसलिए अगर आज कोई फैसला भी लिया जाए, तो उसका असर नवंबर या दिसंबर के बाद दिखेगा। नया निर्यात डेटा अक्टूबर का है।
रूस से कब तक आयात हो सकता है कम
अभी जो डेटा आए हैं वह पहले की डील के हिसाबसे हैं। जो भी और जिन कंपनियों के जहाज अमेरिका की तरफ शिफ्ट हुए हैं उनके आंकड़े दिसंबर तक साफ हो सकते हैं। यानी जब दिसंबर के कच्चे तेल निर्यात के डेटा आएंगे तो हो सकता है कि रूस से निर्यात में कमी आए।
अमेरिका की तरफ जहाज मोड़ने के फैसले का दिसंबर तक दिखेगा असर
दिसंबर के लिए पांच बड़े रिफाइनरों जैसे रिलायंस, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, मंगलौर रिफाइनरी और एचपीसीएल-मित्तल ने रूसी तेल के ऑर्डर नहीं दिए। ये कंपनियां इस साल के रूसी आयात का दो-तिहाई हिस्सा थीं। केवल इंडियन ऑयल कॉर्प (IOC) और नायरा एनर्जी ने कुछ खरीदा है। वहीं IOC गैर-प्रतिबंधित विक्रेताओं से, जबकि रोसनेफ्ट की हिस्सेदारी वाली नायरा पूरी तरह रूसी तेल पर निर्भर रही।
स्पॉट मार्केट में गैर-प्रतिबंधित रूसी कार्गो 3-4 डॉलर प्रति बैरल छूट पर उपलब्ध हैं, लेकिन भारतीय खरीदार जटिल ड्यू डिलिजेंस प्रक्रिया से हिचक रहे हैं। ट्रंप के अगस्त में भारतीय आयात पर 50 प्रतिशत टैरिफ दोगुना करने और व्यापार वार्ताओं के दबाव में भारत अमेरिकी तेल खरीद बढ़ाने का वादा कर रहा है।
वैकल्पिक स्रोत और भविष्य
वैश्विक तेल अधिशेष के बीच भारत अमेरिका, सऊदी अरामको और अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी से आपूर्ति बढ़ा रहा है। IOC ने जनवरी-मार्च के लिए अमेरिका से 24 मिलियन बैरल मांगे, जबकि हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने जनवरी के लिए 4 मिलियन बैरल US और मध्य पूर्वी ग्रेड लिए। अबू धाबी सम्मेलन में सरकारी रिफाइनरों ने सऊदी और अबू धाबी अधिकारियों से आपूर्ति आश्वासन हासिल किए।
CREA की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि प्रतिबंध और जहाज मोड़ने से तात्कालिक झटका लगा, लेकिन सरकारी रिफाइनरों की सक्रियता और डिस्काउंट की वजह से अक्टूबर में भारत रूस तेल का सबसे बड़ा आयातक बना रहा। दिसंबर की कटौती से भविष्य में बदलाव संभव है, लेकिन भारत की ऊर्जा जरूरतें और सस्ते तेल का लालच इस रिश्ते को आसानी से नहीं तोड़ पाएगा।
भारत की तेल जरूरतें और रूस का रोल
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, और अपनी ज़रूरत का लगभग 87% तेल बाहर से खरीदता है। पहले, भारत ज्यादातर तेल मिडिल ईस्ट (इराक, सऊदी अरब, यूएई) से लेता था। लेकिन जब 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ और पश्चिमी देशों ने रूस पर पाबंदियां लगाईं, तब भारत को रूसी तेल सस्ते दामों में मिलने लगा।
रूसी तेल क्यों इतना जरूरी है?
रूसी तेल भारत के लिए सिर्फ सस्ता नहीं है, बल्कि तकनीकी रूप से भी फायदेमंद है। भारत की रिफाइनरियां (जहां कच्चे तेल से पेट्रोल, डीजल बनता है) इस तरह डिजाइन की गई हैं कि रूसी तेल से ज्यादा मिडिल डिस्टिलेट जैसे डीजल और जेट फ्यूल निकलते हैं।
भारत के रूसी तेल बंद करने से उतना ही ईंधन निकालने के लिए महंगा तेल खरीदना पड़ेगा, जिससे हर साल 3 से 5 अरब डॉलर का अतिरिक्त खर्च होगा। |
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