सांकेतिक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, आगरा। मधुमेह की बीमारी तेजी से बढ़ रही है, युवा भी मधुमेह से पीड़ित हो रहे हैं। जिन लोगों को मोटापे से मधुमेह की बीमारी हो रही है, वह नई दवा (जीएलपी-1 एगोनिस्ट) से ठीक ( रिवर्स ) हो सकती है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
12 प्रतिशत लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। मगर, यह दवा अभी महंगी है। शुक्रवार को मधुमेह दिवस पर बीमारी की रोकथाम और इलाज के लिए लोगों को जागरूक किया जाएगा।
उत्तर प्रदेश डायबिटिक फोरम के उपाध्यक्ष व आगरा डायबिटिक फोरम के वैज्ञानिक सचिव डा. अतुल कुलश्रेष्ठ ने बताया कि करीब 12 प्रतिशत लोग मधुमेह की चपेट में हैं। मधुमेह का एक बड़ा कारण मोटापा है।
पेट की चर्बी और लिवर पर चर्बी से पेनक्रियाज में बीटा सेल काम करना कम कर देती हैं इससे इंसुलिन कम बनता है। इसके कारण टाइप टू डायबिटीज ( मधुमेह ) हो रही है।
नई जीएलपी-1 एगोनिस्ट ग्रुप की दवा से शुगर का स्तर नियंत्रित रहने के साथ ही वजन भी कम होता है, इस दवा से खराब चर्बी शरीर से बाहर निकलती है। इससे पेट की चर्बी भी खत्म हो जाती है और फैटी लिवर की समस्या भी नहीं रहती है।
दवा के सेवन और जीवनशैली में बदलाव से मधुमेह की बीमारी ठीक हो जाती है दवा भी बंद हो जाती हैं। अभी यह दवा करीब 25 हजार रुपये महीने की है, आने वाले समय में दवा सस्ती हो सकती है।
आइएमए, आगरा के अध्यक्ष डा पंकज नगाइच ने बताया कि 25 से अधिक क्लीनिक पर मधुमेह दिवस पर शुक्रवार को शिविर लगाए जा रहे हैं। निश्शुल्क शुगर की जांच के साथ ही लोगों को जागरूक किया जाएगा।
मोटे बच्चों की गर्दन काली होना मधुमेह का लक्षण
एसएन मेडिकल कालेज में 18 वर्ष की आयु तक के मोटापे से पीड़ित ऐसे बच्चे जिनकी गर्दन की त्वचा का रंग काला पड़ गया (एकेंथोसिस निग्रिकन्स) गया था उस पर स्टडी की गई।
एसएन मेडिकल कालेज के मेडिसिन विभाग के डा. प्रभात अग्रवाल ने बताया कि 25 बच्चों में से 10 बच्चों में मधुमेह की बीमारी मिली, तीन बच्चे दो वर्ष बाद मधुमेह से पीड़ित हो गए। जबकि 12 बच्चों ने अपनी जीवनशैली में बदलाव और वजन कम कर लिया।
जिससे वे मधुमेह की बीमारी से बच गए। ज्यादा वजन वाले जिन बच्चों की गर्दन की त्वचा काली पड़ने लगे उन्हें शुगर की जांच जरूर करानी चाहिए।
बच्चों के दिन में चार बार लग रही इंसुलिन
जिन बच्चों में इंसुलिन बनती ही नहीं है उनमें टाइप वन डायबिटीज होती है। एसएन मेडिकल कालेज में टाइप वन डायबिटीज क्लीनिक संचालित है। इसमें 400 बच्चों का पंजीकरण हो चुका है।
इन बच्चों में इंसुलिन नहीं बनती है, एसएन से बच्चों को निश्शुल्क इंसुलिन उपलब्ध कराई जा रही है। इन बच्चों को दिन में तीन से चार बार इंसुलिन लगवानी होती है। इन बच्चों की एसएन में काउंसिलिंग के साथ ही खेलने के लिए खिलौने भी हैं।
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