जागरण संवाददाता, आगरा। पुलिस कमिश्नरेट आगरा को 26 नवंबर को तीन वर्ष पूरे हो जाएंगे। पुलिस कमिश्नेट बना तो ढांचागत और व्यवस्थागत बदलाव के साथ ही पुलिस को मजिस्ट्रेटी शक्तियां मिलनेे के बावजूद कई चुनौतियां सामने थीं। इनमें पुलिस आयुक्त से लेकर एसीपी तक की कोर्ट, थानों के इंफ्रास्ट्रक्चर और अधिकारियों में अधिकारों के विकेंद्रीकरण समेत व्यवस्थाओं को मूर्तरूप देना शामिल था। अंग्रेजों के जमाने के पुलिस रेगुलेशन एक्ट 1861 में दशक दर दशक बढ़ती आबादी के साथ नए थाने खुलते गए थे। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
व्यवस्थाएं बदलती गई या कहें बदलने का दावा किया गया। मगर, थानों का हाल वही था। दशकों पुराना गेट, थाने की पट्टिका पर जमी धूल, शिकायतकर्ता के बैठने को जगह नहीं थी। पीड़ित को खड़े होकर प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। पीडित महिला हो तो भी पुरुष पुलिसकर्मी उसकी सुनवाई करता था। अंग्रेजी शासनकाल की मुंशियों के बैठने की व्यवस्था उन्हें खुद को जनता से ऊपर दिखाने की मानसिकता को दर्शाती थी। बदलाव के दावों पर सवाल खड़ा करती थी।
कब बना आगरा कमिश्नरेट?
26 नवंबर 2022 को आगरा पुलिस कमिश्नरेट बना, एक-एक करके इन व्यवस्थाओं को धरातल पर बदलने की प्रक्रिया शुरू की गई। मुंशी राज पर वार करके उसे ध्वस्त किया गया। पुलिस कमिश्नरेट के थानों और कार्यालयों के इंफ्रास्ट्रक्चर में आमूलचूल परिवर्तन शुरू किया। महिलाओं के लिए थाने में ही महिला हेल्प डेस्क बनाई गई।
इस व्यवस्था के दूरगामी परिणमाम एक दशक बाद सामने आएंगे। वर्तमान किशोरवय पीढ़ी और बच्चों के मन में थाने का स्वरूप बदल जाएगा। उनके मन के किसी कोने में बनी ब्रिटिशकालीन पुलिस की छवि विस्मृत हो जाएगी।
ढांचागत बदलाव
थानों को कारपोरेट कार्यालयों की तरह पर बनाया गया। जिसमें प्रभारी निरीक्षक, उप निरीक्षकों, विवेचकों के लिए अलग-अलग कार्यालय बनवाए गए। थाने में मेस का आधुनिकीकरण किया गया। बैठकों के लिए सभागार का निर्माण कराया गया। थाने पर आने वाले शिकायतकर्ता के बैठने की व्यवस्था की गई। थानों में मुंशियाें के कार्यालयों को इस तरह बनाया गया कि वह और शिकायकर्ता बराबरी में दिखाई दें, पुलिसकर्मी खुद को जनता से ऊपर न समझने की जगह उसका सेवक समझें।
साइबर क्राइम सेल के कार्यालय की इमारत को बेहतर बनाया गया। वर्तमान और भविष्य में साइबर अपराध की घटनाएं सबसे अधिक होंगी है। पुरानी साइबर क्राइम सेल के नए कार्यालय को कारपोरेट की तर्ज पर बनाया गया है। यहां अपडेट साफ्टवेयर समेत अन्य अत्याधुनिक उपकरण खरीदे जा रहे हैं। साइबर थाना भी नए सिरे से बनाया गया है। अपर पुलिस आयुक्त से लेकर एसीपी तक की कोर्ट बनाई गईं। इन कोर्ट को अभी तक सुविधा युक्त बनाया जा रहा है। एसीपी कोर्ट में तारीखों को आनलाइन किया गया।
व्यवस्थागत बदलाव
- -थानों से लेकर अधिकारियों के यहां आने वाले शिकायतों का निस्तारण कितनी गंभीरता से किया जा रहा है, यह जानने के लिए फीड बैक सेल बनाया गया। अधिकारियों के यहां शिकायत करने वाले पीड़ितों से संपर्क करके फीड बैक लेता है कि शिकायत के बाद थाना स्तर पर की गई कार्रवाई से वह कितना संतुष्ट हैं।
- -फीड बैक सेल की रिपोर्ट के आधार पर थानों की कार्यशैली की मानीटरिंग आसानी हुई।
- -कमिश्नरेट में वर्तमान में नौ आइपीएस तैनात हैं। इनमें पुलिस आयुक्त, अपर पुलिस आयुक्त, डीसीपी सिटी, डीसीपी पश्चिमी जोन, डीसीपी पूर्वी जोन, डीसीपी यातायात, डीसीपी मुख्यालय हैं।जबकि दो आइपीएस एसीपी सदर व हरीपर्वत सर्किल हैं।कमिश्नरेट में अधिकारों और दायित्वों का विक्रेंदीकरण किया गया।जिससे जन सुनवाई की स्थिति में सुधार हुआ।
- सभी डीसीपी को पुलिस आयुक्त ने थाना प्रभारियों के स्थानांतरण समेत अन्य अधिकार दिए।
- -विवेचक द्वारा मुकदमों में चार्जशीट लगाने का काम कंप्यूटर पर होता है।
- -कमिश्नरेट में पुलिस को हाईटेक करने के लिए दो वर्ष के दौरान 18 एप बनाए। इसमें बैरियर चेकिंग एप,क्यूआर कोड स्कैन कर एक्स पर शिकायत करने की सुविधा, पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाने के लिए डायनामिक ड्यूटी मैनेजेमेंट सिस्टम (डीडीएमएस), थानों के मालाखानों में रखे माल का पता लगाने को क्यूआर कोड की व्यवस्था प्रमुख हैं।
कमिश्नरेट कोर्ट मानीटरिंग सिस्टम
तारीख पर तारीख से बचने के लिए कमिश्नरेट कोर्ट मानीटरिंग सिस्टम सीसीएमएस तैयार किया गया।जिससे कि संबंधित कोर्ट में अपनी तारीख देख ले। उसे तारीख पर तारीख के लिए कोर्ट में भटकना नहीं पड़े।जिस दिन पुलिस कमिश्नरेट की कोर्ट में पेश होना है तभी आए। तारीख के लिए बार कोड भी बने है। जिसे स्कैन करके अपनी तारीख के बारे में जाना जा सकता है।
मानीटरिंग सेल से बढा दोषियों को सजा दिलाने का आंकड़ा
मानीटरिंग सेल का गठन किया गया। जिसने थानों के पैराकारों को गंभीर अपराधों की सूची बनाकर दी। यह सुनिश्चित किया गया कि लूट, हत्या, डकैती और दुष्कर्म जैसे गंभीर मुकदमों के गवाहों की गवाही सुनिश्चित कराइ्र। जिसके चलते 30 वर्ष से अधिक पुराने मुकदमों को निस्तारित किया जा सका।
- -इसके लिए थाने के पैरोकारों को तीन श्रेणी के तहत में मुकदमों को चुनने को कहा गया। जिसमें बड़ी आपराधिक वारदात, बड़े आर्थिक अपराध और महिला संबंधी अपराधों के दस-दस मुकदमों काे प्राथमिकता के आधार पर शामिल करने काे कहा गया ।
- -वर्ष 2024 में डकैती, लूट, हत्या और दुष्कर्म के मामलों में दोषी 96 लोगों को प्रभावी पैरवी करके आजीवन कारावास की सजा दिलाई।
- -अपराधियों काे सजा दिलाने से अपराधों पर अंकुश लगा और उनका ग्राफ गिरा। लूट, चोरी, हत्या समेत अन्य घटनाओं में कमी आयी।
|