अब सेकेंडों में होगी लीवर संक्रमण, दूध की एलर्जी व स्मरण शक्ति की जांच।
डॉ. राकेश राय, गोरखपुर। लीवर में संक्रमण और स्मरण शक्ति का आकलन अब सेकेंडों में हो सकेगा। दूध में एलर्जी तत्व की पहचान भी आसान होगी। यह संभव होगा फोटोनिक क्रिस्टल फाइबर-सरफेस प्लाज्मोन रेजानेंस (पीसीआर-एसपीआर) नाम के तीन बायो सेंसर से, जिसका मॉडल डिजाइन किया है मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की शोधार्थी सपना यादव ने। भौतिक विज्ञान के आचार्य प्रो. डीके द्विवेदी के मार्गदर्शन में तैयार माडल में फाइबर आप्टिक का इस्तेमाल किया गया है। हल्का और छोटा होने के कारण इसे कहीं भी ले जाना आसान होगा। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
कम समय से जांच का परिणाम मिलने से रोगी का इलाज अतिशीघ्र संभव हो सकेगा। सपना के इस शोध को इंग्लैंड के \“स्प्रिंगर\“ व नीदरलैंड के \“एल्सवेयर\“ जैसे प्रतिष्ठित जर्नल ने प्रकाशित होने से अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी प्राप्त हो गई है। बायो सेंसर के डिजाइन का पेटेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई, जिसमें एक वर्ष का समय लग सकता है।
शोधार्थी सपना ने बताती हैं कि दूध की गुणवत्ता को लेकर आए दिन उठने वाले सवाल, स्मरण शक्ति कम होने और लीवर संक्रमण के बढ़ते मामलों की समस्या को देखते हुए इसे शोध का विषय बनाया। इसके लिए अलग-अलग पीसीआर-एसपीआर बायो सेंसर डिजाइन किए। बायो सेंसर के डिजाइन में भारी-भरकम प्रिज्म आधारित सेंसर की जगह फाइबर आप्टिक सेंसर का इस्तेमाल किया है।
फाइबर आप्टिक्स की व्यवस्थित वायु छिद्र वाली अनूठी संरचना प्रकाश को अतिशीघ्र व सटीक रूप से निर्देशित करेगी, जिससे जैविक अणुओं में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तन की जानकारी सेकेंडों में जाएगी। परिणाम में त्रुटि की संभावना भी नहीं के बराबर है।
पहला दोहरे कोर वाला सेंसर दूध में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले प्रोटीन बीटा लैक्टोग्लोब्युलिन की मात्रा का पता लगाता है। इसकी सांद्रता दूध की गुणवत्ता का संकेत देती है। सांद्रता की मात्रा अधिक या कम होने से पोषण संबंधी समस्या होने लगती है। एलर्जी की दिक्कत भी सामने आती है। बायो सेंसर से सांद्रता की सटीक जानकारी हो जाएगी और ऐसे दूध के इस्तेमाल पर रोक लगाना संभव होगा।
दूसरा सेंंसर लीवर एंजाइम एलेनिन एमिनी ट्रांस्फरेज की निगरानी करेगा। उसकी तरंगदैर्ध्य संवेदनशीलता मानक से अधिक होने की जानकारी देगा। इससे लीवर में होने वाले संक्रमण का अतिशीघ्र पता चल सकेगा। तीसरा सेंसर एक रसायनिक संदेशवाहक का काम करेगा।
यह तंत्रिकाओं की मांसपेशियों और अन्य न्यूरान्स के साथ संवाद करके एसिटाइलकोलाइन (महत्वपूर्ण न्यूरोटांसमीटर) की अति-उच्च परिशुद्धता के साथ पता लगाता है। इससे व्यक्ति की स्मरण क्षमता का कुछ सेकेंड में ही सटीक आकलन हो जाता है।
शोध में अपनाई गई यह प्रक्रिया
शोध के मार्गदर्शक प्रो. डीके द्विवेदी ने बताया कि हमने सेंसर का माडल तैयार करने में उन्हें अनुकूलित करने के लिए कासमोल मल्टीफिजिक्स में परिमित तत्व विधि सिमुलेशन का उपयोग किया। परिणाम की सटीकता बढ़ाने और प्रदर्शन हानि को कम करने के लिए गहन शिक्षण एल्गोरिदम को शामिल किया गया, जिससे कुशल और विश्वसनीय सेंसर डिजाइन करना संभव हुआ।
फाइबर आप्टिक पीसीआर-एसपीआर बायो सेंसर के जरिये लीवर संक्रमण, दूध की एलर्जी और मानव की स्मरण शक्ति जांच पहली बार सेंकेंडों में संभव हो सकी है। वर्तमान में यह जांचें प्रयोगशाला आधारित हैं, जिसमें घंटों से एक से दो दिन तक समय होता है।
विश्वविद्यालय का जोर ऐसे शोध पर है, जिसका विषय समाज से लिया जाए और वह शोध के परिणाम से समाज को सीधा लाभ मिले। प्रो. डीके द्विवेदी के मार्गदर्शन में हुआ यह शोध इस मानक पर खरा उतरता है। शोध के जरिये डिजाइन किया गया बायो सेंसर चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में काफी उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसा विश्वास है। प्रो. जेपी सैनी, कुलपति, एमएमयूटी। |