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पटना में तीन दिवसीय जागरण फिल्मोत्सव की हुई शुरूआत, पहले दिन दिखाई गई एक फिल्म और तीन लघु फिल्में

deltin33 2025-10-11 06:36:28 views 623

  

जागरण फिल्मोत्सव के पहले दिन एक फिल्म और तीन लघु फिल्में। फोटो जागरण



जागरण संवादाता, पटना। देशभर में घूम-घूमकर सिनेमा की दुनिया को जीवंत बनाने वाले तीन दिवसीय जागरण फिल्मोत्सव का कारवां शुक्रवार को पटना पहुंचा।

सामाजिक मुद्दों को उभारने वाली बेहतरीन फिल्मों की शृंखला की पहली कड़ी अरशद वारसी और पंचायत से ख्याति पाने वाले जितेंद्र कुमार के अभिनय से सजी \“भागवत चैप्टर 1: राक्षस\“ से हुई।

इसके पहले पीएनएम मॉल के सिनेपोलिस में उत्सव के 13वें संस्करण का उद्घाटन समाज कल्याण विभाग की सचिव वंदना प्रेयषी, दैनिक जागरण बिहार के मुख्य महाप्रबंधक आनंद त्रिपाठी, स्थानीय संपादक आलोक मिश्रा, दैनिक जागरण बिहार के डिप्टी एडिटर अश्विनी कुमार सिंह, रजनीगंधा के क्षेत्रीय प्रबंधक संजय गिरी और शाहाब ने संयुक्त रूप से किया।
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जिनका प्रचार-प्रसार कम, उनके लिए जागरण है मंच


समाज कल्याण विभाग की सचिव वंदना प्रेयषी ने आयोजक की प्रशंसा करते हुए कहा कि मैं खुद सिनेमा प्रेमी हूं। जागरण इस  

उत्सव के जरिए ऐसी फिल्मों का चुनाव करता है, जो समाज को संदेश देती है।

बहुत सी ऐसी फिल्में बन रही हैं, जो बेहतर तो हैं, पर प्रचार-प्रसार न होने की वजह से दर्शक नहीं पातीं। जागरण संदेशपरक फिल्मों का मंच है।  

उन्होंने कहा कि सरकार भी सिनेमा और इस विधा से जुड़े हुए लोगों के विकास के लिए प्रयासरत है। राज्य में फिल्म नीति बनी है।  

प्रदेश में 29 फिल्मों की शूटिंग होनी है, जिन्हें सरकार सब्सिडी देगी। राज्य के बाहर फिल्म से जुड़े संस्थानों में अध्ययन करने वालों की अकादमी फीस का सरकार वहन करेगी।  

सिने प्रेमियों के लिए अच्छी खबर यह भी है कि कैबिनेट ने प्रदेश में भी फिल्म से जुड़ी सभी विधाओं में प्रशिक्षण के लिए इंस्टीट्यूट को मंजूरी दे दी है। इस अवसर पर दैनिक जागरण के मुख्य विज्ञापन प्रबंधक संजय सिंह भी मौजूद रहे।

समाज की सच्चाई आई सामने, यही उद्देश्य

जागरण फिल्म उत्सव की उद्घाटन फिल्म \“भागवत चैप्टर 1: राक्षस\“ के निर्देशक अक्षय शेरे दर्शकों से मुखातिब हुए। उन्होंने बताया कि समाचार पत्र में छपी एक घटना की खबर पढ़कर फिल्म बनाने की सोच मन में आई।  

लड़कियों की आपबीती दिखाने की ठानी। चार साल फिल्म के निर्माण में लगे। समाज में महिलाओं को इस्तेमाल करने वाले राक्षसों की कमी नहीं है। इनकी सच्चाई किसी न किसी जरिए सामने आनी चाहिए।  

भागवत किसी राक्षस की नहीं, लड़कियों की कहानी है। मैं सिनेमा के माध्यम से जो संदेश देना चाह रहा हूं, वो सब तक पहुंचे। महिलाएं अपनी बात कहने से न हिचकें। थिएटर में सिनेमा देखने को लोग पहुंचे।
दर्शकों से बातचीत

जागरण अपने हर आयोजन से कुछ न कुछ संदेश देता है। फिल्म अगर संदेश देती हुई हो, तो मनोरंजन करते हुए हम सोचने को मजबूर होते हैं। समाज की अच्छाई और बुराई दिखती है। आयोजन का हर सिनेमा खास है। - दीपक तिवारी

इस उत्सव में चयनित फिल्में बेहतरीन होती हैं। अरशद वारसी और जितेंद्र कुमार तो बहुतों के पसंदीदा कलाकार हैं। पहली फिल्म शानदार रही। भागवत ने बताया कि किसी पर आंख मूंदकर भरोसा न करें।- स्वाति प्रिया

सिनेमा समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा है। जागरण का आयोजन हमारे आसपास घटित कहानियों को बयां करता है। फिल्म भागवत ने लड़कियों को संदेश दिया कि दब्बू बनकर न रहें। अपने दिमाग का प्रयोग करें। सामाजिक बाधाओं को लांघकर आगे बढ़ें। - प्रिया मिश्रा

हर उम्र वर्ग के लिए इस आयोजन कुछ न कुछ है। फिल्म के साथ लघु फिल्मों की लंबी सूची है। उत्सव के पहले दिन बुजुर्गों, महिलाओं के साथ बड़ी संख्या में युवा आए। यह आयोजन फिल्मों के प्रति लोगों का उत्साह बढ़ाएगा। - कर्मवीर कुमार

समाज को जागरूक करने का सबसे बेहतर जरिया सिनेमा है। अगर संदेशपरक फिल्में हों, तो परिवर्तन दिखेगा। मुझे लगता है कि ऐसे आयोजन से आने वाली पीढ़ी जागरूक होगी। - ओमराज

सिने प्रेमियों को बांधे रखती है भागवत

दमदार कलाकारों से सजी फिल्म \“भागवत चैप्टर 1: राक्षस\“ ने अनूठी कहानी की वजह से सिने प्रेमियों अंत तक बांधे रखा।  

अरशद पुलिस अधिकारी विश्वास भागवत की भूमिका में थे, तो पंचायत में सचिव का किरदार निभा ख्याति पाने वाले जितेंद्र कुमार समीर बन लड़कियों की हत्या करने के कारण राक्षस की तरह नजर आए।  

अक्षय शेरे के निर्देशन में बनी फिल्म उत्तर प्रदेश के राबर्ट्सगंज की पृष्ठभूमि पर आधारित है। लापता लड़कियों की खोज में लगे अरशद समीर की असलियत समाज के सामने लाना चाहते हैं।

क्रूर बना समीर हत्या तो करता है, कोर्ट भी खुद अपना वकील बन जाता है। अंत में एक पीड़ित लड़की मुखर होती है, कोर्ट में बयान देती है और कई लड़कियों को न्याय दिलाती है।

फिल्म महोत्सव की दूसरी पेशकश निखिल नरेश निर्देशित लघु फिल्म \“वन लास्ट टेक\“ रही। लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे युवा जोड़े की कहानी फिल्म के जरिए बयां की गईं।  

युवा जोड़े प्यार में कमी की वजह से नहीं, बल्कि विरोधी वास्तविकताओं के कारण एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। लड़का अभिनेता होने के साथ अपनी अनिश्चित सपनों को पूरा करने को भागता है, जबकि लड़की एक स्थिर आय और बढ़ती जिम्मेदारियों वाली कापरेट सेक्टर में कार्य करती है।  

अलग-अलग रास्ते पर चलने के बावजूद एक दूसरे का साथ निभाने का प्रयास करते हैं। दूसरी लघु फिल्म \“द मंकी\“ में एक बंदर की कहानी दिखाई गई, जो इंसान ने परेशान रहता है।  

उत्सव के पहले दिन की अंतिम प्रस्तुति \“मांक इन पिसेस\“ एक संगीतकार की कहानी है, जो लोगों की आलोचना को छोड़ कर अपने कार्य पर ध्यान देती है और सफल होती है।
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