चंद्र दर्शन का इस दिन विशेष महत्व है।
डिजिटल डेस्क, जागरण, जम्मू। करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही खास है। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर निर्जला व्रत रख महिलाएं पति की दुर्घायु, समृद्धि और सौभाग्य की कामना करती हैं। चंद्रोदय के समय चंद्रमा के दर्शन करने के पश्चात ही वे अपने पति के हाथों से निवाला या जल ग्रहण कर व्रत खोलती हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इस वर्ष ’करवा चौथ व्रत’ सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष माना जा रहा है क्योंकि इस बार यह व्रत तीन शुभ संयोगों, शिव योग, सिद्ध योग और सर्वार्थ सिद्ध योग में पड़ रहा है। इन तीनों योगों के संयोग से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाएगा। ज्योतिषाचार्य रोहित शास्त्री के अनुसार इस बार करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यतानुसार, इस दिन चंद्रमा की पूजा के बिना व्रत पूरा नहीं होता है। ऐसे में जानते हैं कि करवा चौथ व्रत पर चंद्रोदय का सही समय और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है।
करवाचौथ पूजन का शुभ समय
- 10 अक्टूबर (शुक्रवार) को शाम 6:05 से 7:05 बजे तक।
- इस अवधि में पूजन करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
चंद्र दर्शन का समय (जम्मू)
- रात्रि 8:20 बजे (अन्य राज्यों में समय अलग-अलग रहेगा)
करवाचौथ पूजन विधि
- 10 अक्टूबर, शुक्रवार — शाम 6:05 से 7:05 बजे तक:
- दीवार पर गेरू से फलक बनाकर, पिसे चावल के घोल से करवा चित्रित करें (चित्र बाजार से भी मिलते हैं)
- आठ पूरियों की अठावरी बनाएं, मीठा एवं विविध पकवान तैयार करें
- लकड़ी के आसन पर गौरी माता की स्थापना कर सोलह श्रृंगार करें
- करवे में गेहूं और ढक्कन में बूरा (शक्कर) भरें
- करवे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं
- श्रीगणेश, शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रदेव और करवे का पूजन करें
पति की दीर्घायु की कामना हेतु मंत्र जाप करें
- “ॐ नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्।
- प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥“
- अन्य पूजन मंत्र:
- “ॐ शिवायै नमः” – पार्वती के लिए
- “ॐ नमः शिवाय” – शिव के लिए
- “ॐ षण्मुखाय नमः” – स्वामी कार्तिकेय
- “ॐ गणेशाय नमः” – गणेश जी
- “ॐ सोमाय नमः” – चंद्र देव
कथा एवं व्रत पारण:
- करवे पर 13 बिंदी लगाएं, 13 गेहूं/चावल के दाने हाथ में लें
- करवाचौथ व्रत कथा स्वयं पढ़ें या सुनें
- कथा के बाद करवे को घुमाकर सास-ससुर व बड़ों का आशीर्वाद लें।
- रात को छलनी से चांद के दर्शन करें, उन्हें अर्घ्य (जल) अर्पित करें
- पति के चरण स्पर्श कर उनके हाथ से जल पिएं व भोजन करें
- स्वयं भोजन कर व्रत का विधिपूर्वक पारण करें
पूजन सामग्री:
- करवा (मिट्टी/चांदी/पीतल), ढक्कन
- दीपक, रुई, गेहूं, बूरा
- हल्दी, कुमकुम, शहद, महावर
- बिंदी, कंघा, चुनरी, चूड़ियाँ
- बिछुआ, पायल, गजरा, धूप-अगरबत्ती
- दूध, दही, घी, शक्कर, नारियल
- मिठाई, चंदन, चावल, सिंदूर
- पीली मिट्टी (गौरी के लिए), लकड़ी का आसन
- अठावरी (आठ पूरियाँ), फूलमाला
- छलनी, गंगाजल
- दान के लिए दक्षिणा
उद्यापन (मोख) समय
- इस वर्ष करवाचौथ व्रत का उद्यापन लिए पूरा दिन शुभ है
- यह व्रत आमतौर पर 12 या 16 वर्षों तक रखा जाता है।
- अवधि पूर्ण होने पर इसका विधिवत उद्यापन/उपसंहार किया जाता है।
- इच्छुक महिलाएं इसे जीवनभर भी रख सकती हैं।
करवाचौथ व्रत कथा (संक्षेप)
करवाचौथ व्रत की परंपरा महाभारत काल से जुड़ी मानी जाती है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को विजय प्राप्त हुई और द्रौपदी का सौभाग्य सुरक्षित रहा। कथा के अनुसार, एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या के लिए गए थे। उस समय द्रौपदी चिंतित थीं, क्योंकि जंगल में अनेक विघ्न-बाधाएं और जीव-जंतु रहते थे। संकट की घड़ी में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया और उनसे कष्ट निवारण का उपाय पूछा।
तब श्रीकृष्ण ने उन्हें करवाचौथ व्रत की विधि और महिमा बताई। श्रीकृष्ण ने कहा कि इस व्रत को करने से पति की रक्षा होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। द्रौपदी ने उस व्रत को विधिपूर्वक किया और फलस्वरूप उन्हें मानसिक शांति मिली तथा पांडवों को सफलता प्राप्त हुई। करवाचौथ व्रत की और भी लोकप्रिय पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें इसकी महत्ता को विस्तारपूर्वक बताया गया है।
महिलाओं के लिए स्वास्थ्य-संबंधी सावधानी
जो महिलाएं पहले से ही हृदय रोग, मधुमेह (डायबिटीज़), उच्च रक्तचाप (बीपी) या अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं, उन्हें यह व्रत डॉक्टर की सलाह लेकर ही करना चाहिए। यदि बिना चिकित्सकीय सलाह के व्रत रखा जाए, तो यह स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। |