पानी की खपत होगी कम, गन्ने का उत्पादन होगा ज्यादा।
जागरण संवाददाता, लखनऊ। खेती सबसे अधिक समय गन्ने की खेती में लगता और सबसे अधिक पानी की खपत भी गन्ने की खेती से होती है। कम लागत में अधिक उत्पादन को लेकर रायबरेली रोड स्थित भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक लगातार कार्य कर रहे हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
पिछले पांच वर्षों में एक दर्जन नई गन्ने की प्रजातियों को बना कर किसानोें को फायदा देने का कार्य कर किया। वैज्ञानिकों का दावा है कि नई प्रजातियों से 15 से 20 प्रतिशत पानी की खपत कम होगी और 10 से 15 प्रतिशत गन्ने का उत्पादन बढ़ेगा।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 15 जिलों में 22.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गन्ने की खेती होती है जबकि पूरे प्रदेश में 28.53 लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन पर गन्ने की खेती होती है, जिस पर 839 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गन्ने का उत्पादन होता है।
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के अभिषेक सिंह ने बताया कि देश में गन्ने बेहद कम पानी में भी की जा सकती है। उत्तर भारत की बात करें तो यहां पर प्रति हेक्टेयर गन्ने की खेती के लिए 1400 मिली लीटर पानी की जरूरत होती है। पिछले पांच वर्षों में गन्ने की नई प्रजातियों से चीनी की मात्रा में बढ़ोतरी के साथ ही गन्ने के उत्पादन में भी 10 से 20 प्रतिशत इजाफा हुआ है।
संस्थान द्वारा विकसित गन्ने की नई प्रजातियां
- कोलख-15201
- कोलख-15204
- कोलख- 15466
- सीओएलके- 14204
- सीओ- 15023
- सीओपीबी- 14185
- सीओएसई- 11453
- एमएस - 130081
- वीएसआइ- 12121
- सीओ - 13013
- अवनी- 14012
- कोपी- 11438
गन्ने के उत्पादन को बढ़ाने और नई प्रजातियों के निर्माण के लिए 16 फरवरी 1952 में संस्थान की स्थापना हुई। गन्ने के विकास को लेकर संस्थान की ओर से समय-समय पर शोध किए जाते हैं। कई वर्षों की मेहनत के बाद नई प्रजातियां विकसित होती हैं। कम लागत में अधिक उत्पादन बढ़ाने के साथ ही रोग नियंत्रण को लेकर शोध कार्य किए जा रहे हैं। किसानों और वैज्ञानिकों की बैठक कर जागरूक भी किया जाता है।
डा.दिनेश सिंह, निदेशक, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान |