9 महीने बाद क्यों होता है जन्म (Image Source: AI-Generated)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। इंसान का जन्म 9 महीने बाद ही क्यों होता है, यह प्रश्न जितना वैज्ञानिक है, उतना ही आध्यात्मिक और पौराणिक भी है। जहां आधुनिक विज्ञान इसे भ्रूण के विकास और \“ऑब्स्टेट्रिकल डिलेमा\“ (Obstetrical Dilemma) से जोड़कर देखता है। वहीं, हमारे धर्म ग्रंथ और प्राचीन दर्शन इसमें सृष्टि के गूढ़ रहस्यों और ग्रहों की चाल का संकेत देते हैं। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
आइए जानते हैं धार्मिक दृष्टिकोण से 9 महीने के इस चक्र का क्या महत्व है
1. नवग्रहों का प्रभाव
भारतीय ज्योतिष और आयुर्वेद (विशेषकर \“गर्भावक्रांति\“ विज्ञान) के अनुसार, गर्भ में पल रहे शिशु पर हर महीने एक विशिष्ट ग्रह का प्रभाव होता है। गर्भधारण से लेकर जन्म तक की प्रक्रिया को 9 ग्रहों की ऊर्जा से गुजरना पड़ता है।
पहले महीने का स्वामी शुक्र है, जो बीज (शुक्र और शोणित) का निर्माण करता है।
अगले महीनों में मंगल, गुरु, सूर्य, चंद्र, शनि और बुध क्रमश: अंगों, हड्डियों, चेतना और बुद्धि का विकास करते हैं।
नौवां महीना चंद्रमा और लग्न का होता है, जो शिशु को जन्म की ऊर्जा प्रदान करता है। माना जाता है कि जब तक इन 9 शक्तियों का चक्र पूरा नहीं होता, जीव पूर्ण रूप से पृथ्वी पर आने के योग्य नहीं बनता।
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2. सांख्य दर्शन और नौ द्वार
योग और सांख्य दर्शन के अनुसार, मानव शरीर को \“नौ द्वारों का नगर\“ (नवद्वारपुर) कहा गया है। इसमें दो आंखें, दो कान, दो नथुने, एक मुख और दो विसर्जन मार्ग शामिल हैं। गर्भ के 9 महीनों को इन नौ शक्ति केंद्रों या द्वारों की शुद्धि और निर्माण का काल माना जाता है।
3. \“गर्भ उपनिषद\“ का रहस्य
प्राचीन \“गर्भ उपनिषद\“ में विस्तार से बताया गया है कि नौवें महीने में ही जीव को अपने पूर्व जन्मों का स्मरण होता है। इस महीने में जीव ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसे इस अंधकारमय गर्भ से बाहर निकाले ताकि वह शुभ कर्म कर सके। शास्त्रों के अनुसार, नौवां महीना \“चेतना की पूर्णता\“ का समय है। इससे पहले जन्म लेने पर जीव शारीरिक या मानसिक रूप से अपूर्ण रह सकता है। इसके बाद गर्भ में रुकना जीव के लिए कष्टकारी होता है।
4. प्रकृति का अंक 9
अंकशास्त्र में \“9\“ को पूर्णता का अंक माना गया है। सनातन धर्म में 9 अंक का विशेष महत्व है- नवरात्रि, नवग्रह और भक्ति के नौ प्रकार (नवधा भक्ति)। 9 महीने का समय यह दर्शाता है कि आत्मा ने प्रकृति के सभी तत्वों के साथ सामंजस्य बैठा लिया है और अब वह \“माया\“ के संसार में प्रवेश करने के लिए तैयार है।
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