पुत्रदा एकादशी 2025 : आचार्य सम्पूर्णानंद ने पुत्रदा एकादशी के बारे में दी महत्वपूर्ण जानकारी।
डिजिटल डेस्क, भागलपुर। पुत्रदा एकादशी 2025 : यह व्रत नि:संतान दंपती के लिए काफी महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से संतान की प्राप्ति होती है। यह व्रत पौष माह के शुक्ल पक्ष वाले एकादशी को मनाया जाता है। एकादशी व्रत के दौरान भगवान विष्णु की पूजा होती है। खास बात यह है कि कई व्रती इस दिन उपवास में रहते हैं या कई फलाहार भी करते हैं। श्रद्धापूर्वक यह व्रत मनाया जाता है। ऐसे लोग तो एकादशी व्रत नहीं करते हैं, वे भी इस दिन सात्विक जीवन व्यतीत करते हैं। एकादशी को चावल नहीं खाया जाता है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
किस दिन है यह व्रत
बांका जिले के बौंसी प्रखंड अंतर्गत वेद विद्यापीठ गुरुधाम के आचार्य सम्पूर्णानंद ने कहा कि वर्ष 2025 में यह पर्व “काशी और मिथिला” दोनों पंचागों के हिसाब से 30 दिसंबर को यह व्रत है। एकादशी प्रवेश समय है 30 दिसंबर को प्रातः 3:27 पर है। 31 दिसम्बर को मध्यरात्रि 1:13 बजे एकादशी तिथि की समाप्ति है। इस दृष्टिकोण से 31 दिसंबर को सूर्योदय के बाद पारण कर सकते हैं।
- पूजन विधि : विष्णु जी को पीले फूल, तुलसी दल, फल, धूप-दीप अर्पित करें “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें, एकादशी व्रत कथा का पाठ या श्रवण करें।
- व्रत नियम : अपने स्वास्थ्य के अनुसार फलाहार या जल ग्रहण किया जा सकता है। दिन भर भगवान विष्णु का स्मरण और भजन-कीर्तन करें।
पुत्रदा एकादशी का महत्व
आचार्य सम्पूर्णानंद ने कहा कि पुत्रदा एकादशी भगवान श्री विष्णु को समर्पित है। पुत्रदा का अर्थ है- संतान देने वाली। कहा जाता है कि इस व्रत को श्रद्धा व भक्ति पूर्वक करने से जिन्हें संतान नहीं है उन्हें संतान-सुख प्राप्त होता है। जिनको संतान है, वे भी इस व्रत को करते हैं, इससे संतान को कष्ट नहीं होता है। स्वस्थ जीवन जीते हैं। दीर्घायु जीवन रहता है। इस व्रत से संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है, संतान का स्वास्थ्य, बुद्धि और आयु बढ़ती है, पारिवारिक कष्ट और पापों का नाश होता है। यह पर्व पौष मास के शुक्ल पक्ष में आता है, जिसे पुत्रदा एकादशी कहते हैं। |