सात समंदर पार पहुंच रही पिहारी के पेड़े का स्वाद।
नवनीत बाजपेई, पिहानी। कटरा बाजार में रामलाल दादा की दुकान के पेड़े का नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। 70 साल पहले खुली दुकान भले ही छोटी हो, पर इस दुकान के पेड़े की मिठास सात समंदर पार तक पहुंच चुकी है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
इन पेड़ों की पहचान इस जनपद तक में ही नहीं बल्कि विदेशों तक में पहुंच चुकी है। लोगों का कहना है कि बिना मिलावट बनने वाला यह पेड़ा 50 साल बाद भी पिहानी की पहचान बना हुआ है।
पिहानी में रामलाल दादा की मिठाई की दुकान है। रामलाल दादा तो अब दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनका नाम अभी भी लोगों की जुबां पर जीवित है। रामलाल दादा के नाम से मशहूर मिठाई की छोटी सी दुकान लगभग 70 पहले खुली थी, जब उन्होंने दुकान खोली होगी, तब उन्हें भी अंदाजा भी नहीं होगा, कि उनके बनाए पेड़े अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करेंगे।
लगभग 25 साल पहले रामलाल दादा का निधन हो गया। तब उनके बेटे रामसरन ने दुकान संभाल ली। अपने पिता की बनाई पहचान उन्होंने कम नहीं होने दी। खोया, शकर, लौंग, इलाइची के मिश्रण से तैयार पेड़े को विदेशों में भी खूब पसंद किया जाता है।
अमेरिका, लंदन, सऊदी अरब, ईरान इराक आदि देशों में पिहानी के बड़े पेड़े पसंद किए जाते हैं, पिहानी के लोग जो अन्य देशों में हैं, वो लोग जब भी पिहानी आते हैं, तो बड़े पेड़े जरूर ले जाते हैं। वैसे तो उसी डिजाइन और कलर के अन्य मिठाई दुकानदार भी पेड़े बनाते हैं, लेकिन ग्राहकों को वो स्वाद अन्य कहीं नहीं मिलता।
हालांकि रामलाल दादा के राम सरन भी अब लगभग 60 वर्ष के हो गए हैं, अब रामसरन भी स्वादिष्ट पेड़े बनाने का हुनर अपने बेटे राधेश्याम को दे रहे हैं। तीसरी पीढ़ी तक पेड़े के स्वाद को बनाए रखने के लिए वह सभी गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करते।
पिता ने उन दिनों भी 100 रुपये प्रति किलो बेचा पेड़ा
रामसरन बताते हैं कि उनके पिता ने 100 रुपये किलो तक पेड़े बचे हैं, जबकि आजकल एक किलो पेड़े का भाव 400 रुपये है, उनका कहना है कि मांग ज्यादा है, जिसे हम सामान्य दिनों में भी मांग को पूरा नहीं कर पाते हैं। त्योहार पर तो अन्य मिठाइयां ही बनती हैं।
बड़े पेड़े सिर्फ विशेष ऑर्डर पर दे पाते हैं। प्रतिदिन लगभग 10 किलो पेड़े बाहर ही जाते हैं। पिहानी और आसपास के लोगों का दिल्ली में आना जाना रहता है, इसलिए वो लोग पहले से आर्डर करके दिल्ली के लिए पेड़े ले जाते हैं।
दुकान साधारण, पर स्वाद अनोखा
आजकल के ट्रैंड में ग्राहकों को रिझाने के लिए दुकान को चमकाने पर ज्यादा फोकस किया जाता है, लेकिन रामलाल दादा की दुकान का पैटर्न चकाचौंध का नहीं है, बल्कि मिठाई की गुणवत्ता पर ही फोकस होता है, इसलिए साधारण से दिखने वाली मिठाई की दुकान पर सुबह से लेकर देर रात तक ग्राहकों की भीड़ रहती है।
कस्बे के सुनील गुप्ता, अंशु कपूर, गौरव कपूर, नितिन आदि का कहना है, ग्राहक उम्मीद के साथ बड़े पेड़े लेने आते हैं, लेकिन जब नहीं मिलते तो उन्हें निराश होना पड़ता है। |