प्रतीकात्मक तस्वीर।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। अपनी ही नाबालिग भांजी के साथ दुष्कर्म के आरोपित मामा को दोषी करार देने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने डीएनए नमूनों के परिवहन के संबंध में अहम आदेश पारित किया है। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने यौन उत्पीड़न के मामलों में डीएनए नमूनों के परिवहन में होने वाली देरी को रोकने के लिए एक समन्वय नीति बनाने को कहा है। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
समन्वय समिति में इनको किया शामिल
अदालत ने दिल्ली पुलिस, फोरेंसिक लैब और दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य और गृह विभागों के बीच एक अर्जेंट और समन्वय नीति बनाने का निर्देश दिया है। अदालत ने यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, केंद्रीय फोरेंसिक लैब द्वारा जारी दिशानिर्देशों के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी निर्देशों का सख्ती से समान पालन करें।
यौन उत्पीड़न के मामलों में 48 घंटे की समयसीमा
अदालत ने रिकाॅर्ड पर लिया कि सुप्रीम कोर्ट ने पूरे भारत के लिए दिशा-निर्देश जारी की थीं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डीएनए सुबूत सावधानी से इकट्ठा किए जाएं, वैज्ञानिक रूप से सही स्थितियों में संरक्षित किए जाएं और सुरक्षित रूप से इसे लैब तक ले जाया जाए। यह भी कहा था कि डीएनए नमूने काे एकत्रित करने से ले जाने का पूरा दस्तावेजीकरण किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि सभी डीएनए नमूने, खासकर यौन उत्पीड़न के मामलों में, बिना किसी देरी के तुरंत और किसी भी हाल में 48 घंटे के भीतर लैब तक भेजे जाएं।
ताकि न्याय में न हो कोई बाधा
कोर्ट ने कहा कि इन चिंताओं के लिए सभी हितधारकों से समन्वय और सक्रिय प्रतिक्रिया की आवश्यकता है, क्योंकि ऐसे व्यावहारिक मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं।
अदालत ने कहा कि अगर फोरेंसिक लैब वीकेंड या सार्वजनिक अवकाश पर नमूने स्वीकार नहीं करती हैं, तो यह स्पष्ट नहीं है कि जांच एजेंसियों से सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का पालन करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है कि डीएनए नमूने बिना किसी देरी के और किसी भी हाल में 48 घंटे के भीतर भेजे जाएं।
पीठ ने कहा कि इन मुद्दों को तुरंत हल किया जाना चाहिए, ताकि टाली जा सकने वाली गलतियों के कारण ऐसे मामलों में न्याय में बाधा न आए जहां आपराधिक मामले का फैसला करने के लिए सहायक फोरेंसिक सुबूत महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
क्यों दिया गया यह आदेश?
अदालत ने उक्त टिप्पणी करते हुए 17 साल की नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के मामले में अपीलकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया। याचिका के अनुसार, मामा के यौन उत्पीड़न का शिकार हुई पीड़िता बाद में गर्भवती हो गई थी।
पीठ ने सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि दोषी ने खुद के बचाव में कोई भी सुबूत पेश करने में नाकाम रहा।
वहीं, अभियोजन पक्ष ने मामले को साबित किया है कि दोषी ने नाबालिग पीड़िता के साथ यौन उत्पीड़न किया था और नाबालिग का बयान सभी जरूरी बातों पर एक जैसा रहा। अदालत ने इस दौरान नोट किया कि मामले में अहम डीएनए सुबूत इस मामले में खो गया था।
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