रेलू राम पुनिया हत्याकांड के दोषी सोनिया-संजीव 22 साल बाद रिहा, 2002 की पुरानी नीति का सहारा लेकर हुए बरी

cy520520 2025-12-10 14:37:37 views 519
  

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने रेलू राम पुनिया हत्याकांड में दोषी सोनिया और उसके पति संजीव कुमार की समयपूर्व रिहाई को मंजूरी दे दी (फाइल फोटो)



राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने मंगलवार को बहुचर्चित रेलू राम पुनिया हत्याकांड से जुड़े मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए दोषी सोनिया और उसके पति संजीव कुमार की उम्रकैद से समयपूर्व रिहाई को मंजूरी दे दी। विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

समाचार लिखे जाने तक कोर्ट के आदेश की कापी जारी नहीं हुई थी। हालांकि कोर्ट की वेबसाइट पर याचिका मंजूर होने की स्थिति अपडेट थी। याची की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने बताया कि पीठ ने दोनों की प्री-मेच्योर रिलीज़ की अर्जी स्वीकार कर ली है।

सोनिया और संजीव ने हरियाणा सरकार द्वारा उनकी समयपूर्व रिहाई की मांग ठुकराने के आदेश को चुनौती दी थी। उनका कहना था कि वे नीति और कानून के तहत तय सभी शर्तें पूरी कर चुके हैं।

अगस्त 2001 में हिसार के लितानी गांव स्थित फार्म हाउस पर हुए इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड में पूर्व विधायक रेलू राम पूनिया (50), उनकी पत्नी कृष्णा देवी (41), बच्चे प्रियंका (14), सुनील (23), बहू शकुंतला (20), पोता लोकेश (चार) और दो पोतियों शिवानी (दो) तथा 45 दिन की प्रीति की हत्या कर दी गई थी।

बेटे-संबंधियों सहित तीन पीढ़ियों के आठ लोगों की लोहे की राड से हत्या की गई थी। मई 2004 में हिसार अदालत ने दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी। 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा था।

राज्यपाल और राष्ट्रपति ने भी दया याचिकाएं खारिज कर दी थीं। बाद में 2014 में दया याचिका में देरी को लेकर आए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी फांसी को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था।

हाई कोर्ट में दायर याचिका में दंपती ने राज्य स्तरीय समिति के छह अगस्त 2024 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि दोनों जेल में “आजीवन” ही रहेंगे। दलील दी गई कि ऐसा निर्देश संविधानिक अदालत के बिना संभव नहीं है और यह कानून के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ है।

कोर्ट को बताया गया कि संजीव 20 साल से अधिक की वास्तविक कैद काट चुका है, जबकि सोनिया की अवधि 20 वर्ष से अधिक बनती है। दोनों ने 2002 की समयपूर्व रिहाई नीति के तहत अपनी पात्रता का दावा किया।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट के मरु राम बनाम यूनियन आफ इंडिया, राजकुमार बनाम यूपी राज्य और वी श्रीहरन मामले में आए संविधान पीठ के फैसलों का हवाला देते हुए कहा गया कि कार्यपालिका किसी कैदी को “आजीवन कारावास आखिरी सांस तक ” नहीं दे सकती, जब तक अदालत ऐसा न कहे।

साथ ही यह भी आरोप लगाया गया कि समिति ने उनके आचरण, शिक्षा और जेल रिकार्ड पर ध्यान नहीं दिया, जबकि कानून ऐसे मामलों में निष्पक्ष विचार की अपेक्षा करता है। हाई कोर्ट द्वारा याचिका स्वीकार किए जाने के साथ अब दोनों दोषियों की रिहाई का रास्ता साफ हो गया है।
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